कांजीकोविल (इरोड), तमिलनाडु। राष्ट्रीय राजमार्ग 544 से थोड़ी दूर ही कांजीकोविल की नगर पंचायत है, जहां पर 31 जुलाई को नेल तिरुविज़ा बीज उत्सव से पहले एक मैरिज हॉल में तैयारी चल रही थी। हर साल उत्सव आमतौर पर तमिलनाडु में धान की बुवाई शुरू होने से पहले मई महीने के आखिर में आयोजित किया जाता है, लेकिन इस साल महामारी के कारण इसमें देरी हुई।
वार्षिक तिरुविज़ा में राज्य भर के सैकड़ों की संख्या में धान किसान राज्य में जैविक धान की खेती पर चर्चा करने और एक दूसरे के साथ देसी धान के बीज साझा करने के लिए एक जगह पर इकट्ठा होते हैं। यह अनोखा बीज उत्सव 15 साल पहले शुरू हुआ था और पहले ही साल में राज्य में 150 से अधिक धान की देशी किस्मों को पुनर्जीवित करने में कामयाब रहा है।
इस वर्ष, आमतौर पर तिरुवरूर में होने वाले वार्षिक कार्यक्रम तिरुविज़ का आयोजन तिरुवन्नामलाई, इरोड, कुड्डालोर, तिरुवरूर और चेंगलपेट, मदुरै और तिरुनेलवेली जिलों में किया गया है।
कांजीकोविल में मैरिज हॉल के अंदर, पांच तरह के परंपरागत धान के बीज – मपिल्लई सांबा, तंगा सांबा, सोरनामुसिरी, किचिली सांबा और तुया मल्ली -पीले कपड़े के थैलों (मांजा पाई कहा जाता है) में पैक किए गए, जो कई जिलों से वहां आने वाले किसानों की राह देख रहे थे। इरोड, नमक्कल, सत्यमंगलम और गोबिचेट्टीपलायम जिलों के लगभग 150 जैविक धान किसान राज्य की राजधानी चेन्नई से लगभग 415 किलोमीटर दक्षिण पश्चिम में इरोड जिले के पेरुंदुरई तालुका के कांजीकोविल में इकट्ठा हुए।
“किसान अपनी पसंद के दो किलो बीज लेंगे और हम उन्हें अगले साल दोगुनी मात्रा में बीज वापस करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, जिसे हम अन्य किसानों को मुफ्त में देते हैं, “पी दुरइसिंहम, अध्यक्ष, उपभोक्ता अनुसंधान शिक्षा, एक्शन , प्रशिक्षण एवं अधिकारिता (क्रिएट) ने गांव कनेक्शन को बताया।
“क्या आप हमारे हरे तुंड (कपड़े का एक गमझा) के किनारे पर सफेद पट्टी देख रहे हैं? जबकि तमिलनाडु के सभी किसान सादे हरे रंग का तुंड पहनते हैं, अतिरिक्त सफेद पट्टी हमें जैविक खेती करने वालों के रूप में पहचान दिलाती है, “दुराईसिंगम ने गर्व के साथ समझाया।
चावल के बारे में किया जा रहा जागरूक
क्रिएट, रामनाथपुरम जिले के परमकुडी में स्थित एक गैर-लाभकारी संस्था, नेल तिरुविज़ा के पहले कार्यक्रम में सबसे आगे रही है, क्योंकि यह 2006 में तिरुवरूर जिले के तिरुतुराईपोंडी में शुरू हुई थी। इसने राज्य में किसानों के साथ मिलकर काम किया है, उन्हें जैविक खेती के लिए प्रोत्साहित किया है और उनकी मदद की है।
क्रिएट के प्रोजेक्ट डायरेक्टर सुरेश कन्ना, जो अपने मोबाइल पर किसी को आखिरी मिनट में निर्देश दे रहे थे, तिरुविज़ा के महत्व को समझाने के लिए काफी देर तक रुक गए।
सुरेश कन्ना ने कहा, “लगभग पांच हजार किसानों ने हर साल तिरुविज़ा में हिस्सा लेते हैं और यहां विरासत में मिले धान के बीज लेते हैं, जिसे वे अपने गांवों और जिलों में साथी किसानों के साथ साझा करते हैं।” उन्होंने कहा, “सटीक संख्या देना मुश्किल है, यह पचहत्तर हजार से लेकर एक लाख किसानों तक कुछ भी हो सकता है जो तिरुविज़ा आंदोलन की शुरुआत से ही इसका हिस्सा रहे हैं।”
कोई नहीं जानता कि तमिलनाडु में देशी चावल की कितनी किस्में थीं। कुछ का कहना है कि 20,000 से अधिक किस्में थीं। अफसोस की बात है कि उनमें से कई अब केवल किताबों में या फिर किसी बुजुर्ग किसान की लुप्त होती यादों में पाए जा सकते हैं। “लेकिन क्रिएट ने उन चावल की पचपन किस्मों की खेती को पुनर्जीवित करने में कामयाबी हासिल की है, “कन्ना ने कहा। इस बीच, ग्लोबल ग्रीनग्रांट्स फंड, एक यूएस-आधारित चैरिटेबल फाउंडेशन, जो पृथ्वी और लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए जमीनी स्तर के प्रयासों का समर्थन करता है, ने अपने बीज संरक्षण और बीज उत्सव पहल को आगे बढ़ाने के लिए क्रिएट को एक परियोजना अनुदान दिया है।
चावल कार्यकर्ताओं का मानना है कि पारंपरिक, देशी चावल की किस्में अधिक टिकाऊ होती हैं, उगाने में आसान होती हैं, अच्छी पैदावार होती हैं और उनमें औषधीय गुण होते हैं। पारंपरिक और देशी दवाओं में इनमें से कई चावल की किस्में शामिल हैं।
कैसे शुरू हुआ नेल तिरुविज़ा
तमिलनाडु में नेल तिरुविज़ा का जन्म ‘द सेव अवर राइस मूवमेंट’ से हुआ था, जिसकी जड़ें केरल के कोच्चि के कुंबलंगी गांव में थीं, जो अपनी पारंपरिक पोक्कली धान की खेती प्रणाली (मछली और चावल) के लिए जाना जाता है।
“2004 में, हमने वहां किसानों और चावल की खेती से जुड़े लोगों के लिए दो दिवसीय कार्यशाला आयोजित की। पेस्टिसाइड एक्शन नेटवर्क, एशिया पैसिफिक इसमें शामिल हुआ और मलेशिया, फिलीपींस और थाईलैंड के धान विशेषज्ञ शामिल हुए। भारत के 10 राज्यों के चावल किसानों ने भी भाग लिया, “त्रिवेंद्रम स्थित चावल कार्यकर्ता, और एक पर्यावरण संगठन, थानल की सह-संस्थापक, उषा सूलापानी ने गांव कनेक्शन को बताया। 58 वर्षीय सुलापानी केरल और राष्ट्रीय स्तर पर रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों और आनुवंशिक रूप से संशोधित बीजों के उपयोग के खिलाफ पर्यावरण आंदोलनों में सबसे आगे रही हैं।
जी नम्मालवर, हरित योद्धा, कृषि वैज्ञानिक, पर्यावरण कार्यकर्ता और जैविक खेती विशेषज्ञ ने 2004 में कुंभलंगी कार्यशाला में भाग लिया और इसे ‘ऐतिहासिक’ बताया। सुलापानी ने कहा, “यह उनके माध्यम से था कि हमने धान की देशी किस्मों को तमिलनाडु में बचाने के लिए अपना अभियान चलाया, जहां हमने क्रिएट के साथ साझेदारी में काम किया, जो राज्य में अभियान का नेतृत्व कर रहा है।”
नम्मलवार के साथ, नागरकोइल स्थित आर पोन्नम्बलम, जो विनियमित बाजार के अधीक्षक के रूप में रिटायर हुए हैं, ने भी कुंभलंगी कार्यशाला में भाग लिया। पोन्नम्बलम ने याद किया कि वह 2004 में केरल में तमिलनाडु से देशी चावल की पांच किस्मों को लेकर कार्यशाला में गए थे। वह अपनी स्थापना के समय से ही क्रिएट के मैनेजिंग ट्रस्टी रहे हैं।
“हर साल हम हजारों किसानों तक पहुंचते हैं। नेल तिरुविज़ा में, जैविक चावल की खेती और नीतियों के सामने आने वाली समस्याओं पर चर्चा की जाती है। और हम उन्हें सरकार को सौंपते हैं, “77 वर्षीय पोन्नम्बलम ने गांव कनेक्शन को बताया। “हम सरकार पर एक जैविक नीति घोषित करने के लिए दबाव डाल रहे हैं। हमें उम्मीद है कि इससे कुछ निकलेगा, “उन्होंने आगे कहा।
पोन्नम्बलम के अनुसार, कोई भी नेल तिरुविज़ा, सरकार को बिना बताए और भाग लेने के लिए आमंत्रित किए बिना नहीं आयोजित किया जाता है। उन्होंने कहा, “सैकड़ों स्वयंसेवी संगठन नेल तिरुविज़ा मॉडल का अनुसरण कर रहे हैं।” उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने भी राज्य भर में जैविक खेती के संदेश को फैलाने में मदद करने के लिए उनसे संपर्क किया है।
इस बीच, द सेव अवर राइस मूवमेंट, जो चावल-पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण, पारंपरिक कृषि पद्धतियों को पुनर्जीवित करने और धान की खेती की एक स्थायी और जैविक प्रणाली को बढ़ावा देने के लिए काम करता है, ने केरल के सात राज्यों तमिलनाडु, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, झारखंड और मध्य प्रदेश में चावल की विविधता वाले ब्लॉक और स्वदेशी चावल की किस्मों के बीज बैंक बनाए हैं।
साझा करते हैं पारंपरिक ज्ञान
कांजीकोविल में, 66 वर्षीय धान किसान मोहना सुंदरम, जिन्होंने अपने हरे तुंड को सफेद पट्टी के साथ सम्मान बैज की तरह पहना था, ने जैविक खेती और इसकी स्थिरता पर एक भावपूर्ण बात की। जैसा कि सुंदरम ने पारंपरिक चावल के स्वास्थ्य लाभों के बारे में बात की, सभी को करुप्पु कवुनी चावल (काले चावल) से बनी स्वादिष्ट कांजी परोसे गए। करुप्पु कवुनी को इतना खास माना जाता था कि इसे खाने का अधिकार केवल राजघरानों को था। यह किस्म ज्यादातर तमिलनाडु के आठ कावेरी डेल्टा जिलों में उगाई जाती है।
“तिरुविज़ा के प्रयासों में से एक वैज्ञानिक प्रमाण के साथ कुछ चावलों के वास्तविक लाभों का बैकअप लेना है, “दुरईसिंघम ने कहा। “पहले कई वर्षों में किसानों को जैविक खेती, बीज की बचत, आदि की ओर आकर्षित करने पर ध्यान केंद्रित किया गया था, लेकिन इस वर्ष, क्रिएट बाजार उपलब्ध कराने पर विशेष ध्यान देगा,” उन्होंने कहा।
गोबिचेट्टीपलायम जिले के धान की खेती करने वाले किसान, कुमार करुप्पनसामी और वेंकटचलम कंडासामी, अपने साथ उगाए गए चावल की काला नमक और इलुपाइपू सांबा किस्मों को बेचने के लिए लाए थे।
उपभोक्ता की मदद से ही कर सकते हैं संरक्षण
“पारंपरिक या देशी चावल की किस्मों को संरक्षित करना अकेले किसान की जिम्मेदारी नहीं है। यह एक साझा जिम्मेदारी है कि हमें उपभोक्ताओं के रूप में किसानों के साथ साझेदारी करने की जरूरत है, “श्रीदेवी लक्ष्मीकुट्टी, 12 साल से चावल कार्यकर्ता, और जो चावल बचाओ अभियान का हिस्सा थीं, ने गांव कनेक्शन को बताया। वह बायो बेसिक्स की सह-संस्थापक भी हैं जो सीधे जैविक किसानों का समर्थन करती है और उपभोक्ताओं तक उनकी उपज तक पहुंचती है।
“हमें इन्हीं चावल को घर लाना है और इन्हीं चावलों को खाना है, उनके नाम सीखना है, स्वादों को पहचानना है और किस्मों को महत्व देना है, “उन्होंने आगे कहा।
लक्ष्मीकुट्टी ने कहा, “इन चावलों के प्रति हमारी पसंद और उपयोग किसानों को सीजन दर सीजन देशी किस्मों को उगाने के लिए प्रेरित करेगा।”
मपिल्लई सांबा चावल से बने टमाटर चावल के लंच के बाद और आलू की सब्जी और बाजरा व दही से बने एक व्यंजन को खाने के बाद , किसानों ने कांजीकोविल से देशी धान के बीज वाले अपने कीमती मांजा पाई (थैले) को लेकर और अगले साल ज्यादा देशी धान की किस्मों को आपस में साझा करने के वादे के साथ अपने-अपने घरों के लिए निकल लिए।
“काश हमारे शेफ विरासत के अनाज को स्वीकार करते और उनका उपयोग करते, और लोगों को उन्हें आज़माने के लिए उत्साहित करते। यह हमारे किसानों और उनके द्वारा उगाए गए अनाज को मानचित्र पर रखेगा, और उन्हें वह सम्मान देगा जिसके वे हकदार हैं, “लक्ष्मीकुट्टी ने निष्कर्ष निकाला।
अनुवाद: संतोष कुमार