लखनऊ। मंडियों में इस समय धान की खरीदी जोरों पर है लेकिन कुछ किसान हाइब्रिड किस्म की धान लगाने के कारण परेशान हैं। उनकी उपज को न तो सही दाम मिल रहा और न ही खरीददार। जबकि ज्यादा उत्पादन के लिए किसानों का जोर हाइब्रिड धान पर ज्यादा है।
जिला सीतापुर, बिसवां के किसान पद्मकांत सिंह 20 अक्टूबर को जब धान लेकर खरीदी केंद्र गये तो उनकी उपज मंडी में नहीं बिकी। हाइब्रिड बीज का धान होने के कारण रिजेक्ट कर दिया गया। इस बारे में पद्मकांत कहते हैं ” मैंने बीज सरकारी खरीदी केंद्र से ये कहकर खरीदा था कि ज्यादा उपज वाला बीज चाहिए, किस्म का ध्यान मुझे नहीं है, लेकिन सरकार एजेंसियों ने खरीदा ही नहीं, उनका कहता था कि धान ज्यादा टूटा है।”
इस साल देशभर के 356.83 हेक्टेयर रकबे में धान की रोपाई हुई थी। अलग-अलग सेक्टरों की रिपोर्ट पेश करने वाली वेबसाइट इंडस्ट्री इस्टीमेट डॉट कॉम के आंकड़ों के अनुसार इसमें से लगभग 26.6 लाख हेक्टेयर में हाइब्रिड धान की खेती की गयी इसमें से 83 फीसदी खेती प्रदेश उत्तर प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और ओडिशा में की गई। संकर बीज (हाइब्रिड बीज) वे बीज कहलाते हैं जो दो या अधिक पौधों के संकरण (क्रास पालीनेशन) द्वारा उत्पन्न होते हैं। संकरण की प्रक्रिया अत्यंत नियंत्रित व विशिष्ट होती है। इससे पैदावार 10 से 25 फीसदी तक ज्यादा होती है।
ज्यादा उत्पादन के लिए हाइब्रिड किस्मों की खेती करने वाले किसानों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। मध्य प्रदेश के जिला सिवनी के रहने वाले किसान शिवम बघेल कहते हैं ” हाइब्रिड किस्म की धान लगाने के कुछ फायदे भी हैं। इसमें ट्रैक्टर सीड्रिल से खेत में सीधे बोनी कर देते हैं जिससे रोपाई विधि में लगने वाली मेहनत और लागत बचती है और कम बारिश में भी इसकी पैदावार अच्छी होती है। जबकि नुकसान यह है कि इस किस्म की धान में खरपतवार ज्यादा लगता और फिर सबसे बड़ी दिक्कत आती है जब इसे बाजार में ले जाया जाता है। इसकी सरकार कीमत पहले ही कम होती है, उसके बाद व्यापारी इसे लेने से मना करते हैं, वे कभी ज्यादा नमी का तर्क देते हैं तो कभी कहते हैं धान टूटा ज्यादा है, इसलिए नहीं खरीद सकते। ऐसे में किसान किसी भी कीमत में उपज बेच देते हैं।”
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इसी साल जुलाई में धान की सामान्य किस्म का एमएसपी 200 रुपए प्रति क्विंटल बढ़ाया गया, जो अब तक का रिकॉर्ड है। यह 1,550 से 1,750 रुपए क्विंटल हो गया है। ग्रेड-ए किस्म के धान का समर्थन मूल्य 180 रुपए बढ़ाकर 1,590 से 1,770 रुपए क्विंटल किया गया।
जर्मनी की कंपनी बायर के मार्केटिंग हेड अजीत चहल बताते हैं ” देसी किस्म की बीजों से एक एकड़ में 15 कुंतल से ज्यादा धान की पैदावार नहीं होती जबकि हाइब्रिड किसान इतनी ही जमीन में 25 कुंतल तक पैदावार करता है। ऐसे में किसान ज्यादा पैदावार की तरफ तो भागेगा ही।” इंटरनेशन कंपनी बायर का भारत के हाइब्रिड बीजों के बाजार में 35 फीसदी हिस्सेदारी है। कंपनी का दावा है कि वो हर साल लगभग 38,000 टन हाइब्रिड धान के बीज का कारोबार करती है जिसकी कीमत 250-300 रुपए प्रति किलो है।
उत्तर प्रदेश बीज विकास निगम के अतिरिक्त निदेशक (सीड एंड फार्म) डॉ वीपी सिंह कहते हैं ” हमारे यहां तो हर तरह की किस्म मिलती है। अब ये किसानों पर निर्भर करता है कि उन्हें क्या लगाना है। किसान अपनी फसल के अनुसार बीजों का चयन करता है। कई बार देर होने पर जल्दी कटाई कर देता है जिस कारण उपज गीली ही रह जाती है और फिर मंडी में उसकी खरीदी नहीं होती। इसके लिए किसान जिम्मेदार है। बाकि सरकार की तरफ से हाइब्रिड की खरीदी पर कोई रोक नहीं है। जबकि हाइब्रिड बीज का प्रयोग एक ही बार होता है। वहीं अगर देसी किस्मों का प्रयोग किया जाये तो इसका बीज आगे भी काम आता है। किसानों के बीच हाइब्रिड की 6644, पायनियर 27P31, 27P27, 27P63, शबाना सेवा 127, और एडवांटा 120 किस्मे ज्यादा लोकप्रिय है। इनमें से कई किस्में जिनकी उपज 100 से 120 दिनों में ही पक जाती है।”
इंडस्ट्री इस्टीमेट डॉट कॉम के आंकड़ों की मानें तो इस साल उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा 2500 हजार हेक्टेयर में हाइब्रिड धान की खेती की गई। इसके बाद बिहार में 1050, झारखंड में 733, छत्तीसगढ़ में 633, हरियाणा में 313, मध्य प्रदेश में 283, ओडिशा में 250, गुजरात में 225, पंजाब में 175, असम में 142, महाराष्ट्र में 104, वेस्ट बंगाल में 67, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक के 25 हजार हेक्टेयर में हाइब्रिड धान रोपा गया।
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उत्तर प्रदेश की मंडियों में धान की खरीदी कर रही एजेंसी उत्तर प्रदेश कोआपरेटिव फेडरेशन लि. के मंडल प्रबंधक लखनऊ, वैभव कुमार कहते हैं ” कोई भी एजेंसी सीधे यह कह कर धान की खरीदी करने से नहीं मना कर सकती कि वह हाइब्रिड है। हां मिलों की कुछ अपनी शर्तें जरूर होती हैं। हम मॉइश्चर देखते हैं, 17 से ज्यादा होने पर खरीदी नहीं की जाती।” धान क्रय नीति के अनुसार इस वर्ष उत्तर प्रदेश के लिए 50 लाख मीट्रिक टन धान क्रय का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
इस बारे में आर जी उद्योग राइस मिल लखनऊ के संचालक आशीष कुमार बताते हैं ” हाइब्रिड में सभी किस्मों के साथ दिक्कत नहीं है। कुछ किस्में बहुत ज्यादा टूटती हैं इस कारण हमे उन्हें खरीदने से मना कर देते हैं। हालांकि कई बार ऐसा भी होता कि मिल के मालिक सस्ते में हाइब्रिड धान खरीदकर महंगे दामों में बेचते हैं।”
केंद्र सरकार की मीलिंग नीतियों के अनुसार फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया ग्रेड ए और बी के तहत 25 और 16 फीसदी से ज्यादा टूटे धान की खरीदी नहीं करता।
छत्तीसगढ़, महासमुंद के बागबहरा निवासी किसान दिनेश पैकरा ने अपने पांच एकड़ खेत में पिछले साल हाइब्रिड अरारइज 644 लगाया था लेकिन धान की बाली खराब हो गयी। इस बारे में दिनेश कहते हैं ” खून पसीने की पूरी कमाई बर्बाद हो गयी थी। इस साल मैंने अब देसी किस्म की धान की रोपाई की। पैदावार भले ही कम हो लेकिन इसमें खाद कम लगती है और मंडी में खरीद में आनाकानी भी नहीं होती। मेरे क्षेत्र के किसान अब फरी, जौ फूल, कालाजीरा, दूबराज जैसी देसी चावल की किस्मों की ओर रुख कर रहे हैं।”
पंजाब, फाजिल्का के किसान और भारतीय किसान यूनियन राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य निर्पेन्द्र सिंह झिंझा कहते हैं ” पंजाब सरकार ने एग्रीकल्चर वेरायटी 212 लांच किया जिसे पहले परमल धान बताया गया था और अब बोल रहे हैं कि हाइब्रिड है। इसका मॉयश्चर 18 तय किया गया। आज धान काटे हुए 15 दिन हो गया है फिर भी मॉयश्चर 19-20 से जा रहा। इस कारण किसानों को एक कुंतल के पीछे 15 से 20 किलो का नुकसान हुआ, ऐसे में किसान किसी भी दाम पर फसल बेचने को तैयार हो जाता है। खरीददार सात से आठ किलो कट मांगने लगते हैं। किसान हाइब्रिड से परेशान हो रहे हैं।”
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पंजाब राइस मिलर्स एसोसिएशन के बाल कृष्णा बाली कहते हैं ” इसके लिए किसानों को जागरूक होना पड़ेगा। सरकार हाइब्रिड को ज्यादा बढ़ावा दे रही है क्योंकि उसमें पानी की खपत कम है। लेकिन फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया सरकार को ये नहीं समझा पा रही है कि हाइब्रिड से पैदावार भले ही ज्यादा होती है लेकिन ये खरीद के अनुकूल नहीं होती क्योंकि इसके अनाज 50 से 60 फीसदी तक टूटे होते हैं।”