स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क
लखनऊ। मई के अंतिम सप्ताह में किसान मेंथा की फसल काटकर उसकी पेराई शुरू कर देते हैं। ऐसे में सावधानी न बरतने वाले किसानों को नुकसान उठाना पड़ सकता है।
बाराबंकी जिला मुख्यालय से लगभग 30 किमी. दूर मसौली ब्लॉक के मेढ़िया गाँव के किसान रामसिंह (65 वर्ष) ने पांच बीघा में मेंथा लगायी है। राम सिंह बताते हैं, “इस बार पांच बीघा में मेंथा लगाया है। अब पेराई का समय आ रहा है। उसी मेंथा में कभी ज्यादा तेल निकलता है तो कभी कम निकलता है, जबकि हम अच्छे से पेराई करते हैं।”
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केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौध संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. सौदान सिंह पेराई के समय बरती जाने वाली सावधानी के बारे बताते हैं, “पौधों का ढेर लगाने पर उसमें गर्मी पैदा होती है, जिससे तेल वाष्पित हो जाता है। कटाई के बाद पौधों को खेत में या आसवन यूनिट के पास फैलाकर नहीं रखना चाहिए।” मेंथा की कटाई बारिश से पहले मई-जून में की जाती है। एक हेक्टेयर मेंथा की फसल से लगभग 150 किलो तेल प्राप्त हो जाता है, यदि अच्छे से प्रबंधन किया जाए और समय से रोपाई हुई हो तो 200 से 250 किलो तेल प्रति हेक्टेयर प्राप्त हो जाता है।
मेंथा के तेल के लिए मेंथा की फसल को कटाई करने के बाद तेल निकालने वाले संयंत्र में फसल को ले जाते हैं। फिर कटे हुए मेंथा को कुछ समय के लिए फैला देते हैं, जिससे पत्तियां कुछ पीली पड़ जाती हैं और वजन भी कम हो जाता है, उसके बाद डिस्टिलेशन संयंत्र में भरकर इसे गर्म करते हैं, इस तरह भाप के साथ तेल बाहर आता है, जहां पहले से ही भाप को ठंडाकर इकठ्ठा कर लिया जाता है और आखिर में पानी से तेल को अलग कर लेते हैं। बचा हुआ अवशेष मल्चिंग और खाद के रूप में प्रयोग किया जाता है।
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डॉ सौदान आगे बताते हैं, “मेंथा की कटाई के बाद 72 घंटों के अंदर ही आसवन कर लेना चाहिए। आसवन के पहले ध्यान रखें कि कंडेन्सर के पानी को ठंडा रखें, वो गर्म नहीं होना चाहिए। कंडेन्सर में जहां से पानी निकलता है उसे छू कर देखें अगर पानी ज्यादा गर्म निकल रहा है तो इसका मतलब कंडेन्सर ठीक से काम नहीं कर रहा है। ऐसे में गर्म पानी से तेल भाप बनकर उड़ जाता है, जिससे किसानों को नुकसान हो जाएगा।”
मेंथा आयल को टिन या फिर एल्यूमिनियम के ड्रमों में रखना चाहिए, ड्रमों में भरकर इसे एयर टाइट कर सूर्य के प्रकाश से दूर रखना चाहिए, साथ ही जिस कमरे में रखा जाए वो कमरा ठंडा हो, सूर्य के सीधे प्रकाश से मेंथॉल पीले रंग से हरे रंग में बदल जाता है, जिससे तेल की गुणवत्ता कम हो जाती है। उत्तर प्रदेश में इसके व्यापारी बाराबंकी, रामपुर, चंदौसी, बदायूं और बरेली में हैं, जो छोटे व्यापारियों से तेल की खरीददारी करते हैं, अधिकांशतः जिन लोगों ने डिस्टिलेशन प्लॉट लगा रखे हैं, वो फसल से तेल निकालने के बाद, उत्पादित तेल किसानों से खरीद लेते हैं।
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