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कहीं अवैध कटान की भेंट न चढ़ जाए दशहरी

Malihabad

मलिहाबाद (लखनऊ)। अपने दशहरी आम के स्वाद से पूरी दुनिया में शोहरत हासिल करने वाला मलिहाबाद अब भी विकास की आस पर टिका है।

राजधानी से काकोरी में पहुंचते ही हरदोई रोड की बायीं ओर पर एक सड़क गाँव दशहरी की ओर गई है। लगभग डेढ़ किलोमीटर तक इस सड़क पर चलने के बाद दशहरी गाँव आया। जहां गाँव के आखिर में सड़क पर बरगदनुमा एक आम का पेड़ है। इस आम के पेड़ को चारों ओर से रस्सियों से घेर कर संरक्षित करने की कोशिश की गई है। दुनिया भर में अपने स्वाद और खुशबू का डंका पीटने वाले दशहरी आम का ये पहला पेड़ है। दशहरी गाँव के नाम से ही आम की इस प्रजाति का नाम दशहरी पड़ गया। चुनावी माहौल में राजधानी की “मैंगो बेल्ट” में भी सरगर्मियां तेज हैं। मगर यहां का जो बड़ा सवाल वह चुनाव में नहीं उठता है।

दशहरी पेड़ों की अवैध कटान और बागों में प्लाटिंग का खेल भविष्य में दशहरी को अतीत की एक कहानी में तब्दील कर सकता है। यहां बागबान से लेकर आम लोग इस कटाई को लेकर परेशान हैं। जिसमें पुलिस भूमाफिया मिलीभगत को रोक पाना संभव नहीं हो रहा है।

बागबानों का कहना है कि कुछ लोग इस तरह से बागों को खत्म कर रहे हैं और लग रहा है कि आने वाले 10 साल में कहीं धीरे धीरे कर के दशहरी की ये प्रजाति विल्पुत ही न हो जाए।

दशहरी गाँव में आम के सबसे पहले पेड़ के सामने जब हम पहुंचे तब हमारी मुलाकात स्कूल प्रबंधक सुशील कुमार सिंह लोध से हुई। दशहरी पेड़ों की कटान को लेकर सुशील व्यथित हैं। कहते हैं, “बहुत मुश्किल से इस सबसे पहले पेड़ को बचा पाये हैं। यहां नगर निगम कूड़ा निस्तारण संयंत्र स्थापित करने जा रहा था। मगर लंबी लड़ाई के बाद उसको रोक पाये वरना ये ऐतिहासिक पेड़ काट दिया जाता है। इस पेड़ को तो बचा लिया है मगर बाग के बाग पूरी रात में काट दिये जाते हैं। भूमाफिया और पुलिस की मिलीभगत से ये हो रहा है। पिछले करीब पांच साल में लगभग 20 फीसदी आम के पेड़ कम हो गए हैं। जगह जगह मैंगो बेल्ट में प्लाटिंग की जा रही है। मगर नेता जब वोट मांगने आते हैं तब अपनी धरोहर को बचाने की बात कभी नहीं करते हैं। विकास अपनी जगह मगर हमारी पहचान तो आम है”।

उनके साथ ही हाल ही में कामर्स स्नातक कर चुके जियाउल खड़े थे। जियाउल सोशल मीडिया पर बहुत सक्रिय हैं। मगर अपना बचपन में बागों में खेलना बहुत याद आता है। बताते हैं कि दशहरी गाँव के ही हैं। कहते हैं कि “जब छोटे थे तब इस सबसे पुराने पेड़ के पास खेला करते थे। इस पर चढ़ कर आम तोड़ते थे। कई बार पेड़ से गिरे भी हैं। मगर आज दुख इस बात का है कि दशहरी के पेड़ों पर खतरा है। जबकि जिस आम की वजह से पूरे देश में मलिहाबाद की पहचान है, उसका संरक्षण होना चाहिये। “मैंगो बेल्ट” को पर्यटन स्थल तरह विकसित करना चाहिये। ताकि दूरदराज से लोग यहां आएं। इस चुनाव में कम से कम उम्मीद करेंगे कि यहां से जीतने वाले उम्मीदवार इस मुद्दे पर भी ध्यान देंगे।”

पास के ही एक अन्य गाँव के रहने वाले करीब 60 वर्षीय रमेश नाई का काम करते थे। मगर डेढ़ साल पहले उनके दाहिने हाथ का अंगूठा कट गया। अब उनके बेटे कमाते हैं और वे घरेलू काम में मदद करते हैं। कहते हैं कि “ये पेड़ कितना पुराना है, मैं नहीं बता सकता हूं। मेरे बचपन से मैं ऐसा ही देख रहा हूं। मगर आम के पेड़ों की कटाई ऐसे न जाने कितने ही पेड़ों को लील चुकी है। बाग के बाग साफ हो जाते हैं। नेताओं के लिए अब दश्हरी को बचाने के लिए जुटना बहुत जरूरी है।”

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