दुनिया को भारत सिखाएगा कैसे उगाए बंपर धान , पीएम के संसदीय क्षेत्र में खुलेगा राइस इंस्टीट्यूट

Ashwani NigamAshwani Nigam   17 July 2017 9:24 PM GMT

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दुनिया को भारत सिखाएगा कैसे उगाए बंपर धान , पीएम के संसदीय क्षेत्र में खुलेगा राइस इंस्टीट्यूटधान की उन्नत किस्म।

लखनऊ। दुनिया में सबसे ज्यादा खाए जाने वाले खाद्यान धान की नई किस्में और उत्पादन बढ़ाने के तरीके अब उत्तर प्रदेश में सिखाए जाएंगे। फिलीपींस के मनीला के बाद वाराणसी में अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान की स्थापना की जाएगी, जिससे भारत के अलावा, नेपाल समेत दक्षिण एशिया के दर्जनों देशों को सीधा फायदा होगा।

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चावल विश्व के प्रमुख तीन खाद्यान में शामिल है, विश्व के 2 अरब 70 करोड़ लोग चावल और इसके उत्पादों को मुख्य भोजन के रुप में खाते हैं। दुनिया को भुखमरी से बचाने के लिए कई देशों में चावल के क्षेत्रफल और उत्पादन बढ़ाने पर काम जारी है। लेकिन हरित क्रांति के बाद धान का उत्पादन स्थिर हो गया है, ऐसे में भारत सरकार फिलीपींस में स्थित दुनिया के एक मात्र इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट यानि आईआरआरआई के सहयोग से वाराणसी में अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (आईआरआरआई) केन्द्र स्थापित करने जा रही है। जहां दुनियाभर के वैज्ञानिक शोध कर किसानों को बेहतर उत्पादन की बेहतर तकनीकी बताएंगे। मनीला आईआरआरआई वो संस्थान है, जिसके सहयोग भारतीय कृषि वैज्ञानिक डॉ. गुरूदेव सिंह ने चमत्कारी कहे जाने वाले आईआर-8 को विकसित करने में योगदान दिया था। इस चावल ने दुनिया की बड़ी आबादी को भुखमरी से बचाया था।

धान की मड़ाई

कृषि वैज्ञानिक, जानकार और नीति निर्माता कई दशकों से एशिया में ऐसे रिसर्च सेंटर की स्थापना की मांग कर रहे थे। पिछले दिनों केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र में इस प्रस्ताव को मंजूरी दी है। '' उत्तर प्रदेश में अंतरराष्ट्रीय स्तर का चावल अनुसंधान संस्थान स्थापित करने का फैसला हो चुका है। राष्ट्रीय बीज अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केन्द्र (एनएसआरटीसी) वाराणसी के परिसर में यह संस्थान काम काम करने लगेगा।'' यूपी के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने बताया।

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उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान संस्थान के परिषद के महानिदेशक राजेन्द्र कुमार इसे यूपी समेत पूरे भारत के किसानों के लिए गर्व और अवसर की बात मानते हैं। वो कहते हैं, “विश्व में अभी लगभग 150 मिलियन हेक्टेयर, एशिया में 135 मिलियन हेक्टेयर और भारत में 44 मिलियन हेक्टेयर में धान की खेती हो रही है। ऐसे में उत्तर प्रदेश में अंतरराष्टीय स्तर का चावल अनुसंधान खुलने से धान उत्पादन बढ़ने के साथ ही यहां के किसानों को बहुत लाभ मिलेगा।”

चावल

उत्तर प्रदेश के लगभग 70 जिलों में जिलों में चावल की खेती होती है। लेकिन हरितक्रांति के बाद पूरी दुनिया के साथ ही भारत में भी धान का उत्पादन स्थिर हो गया है, माना जा रहा है प्रदेश में इस केंद्र की स्थापना के बाद नई किस्में और तकनीकें किसानों की आय बढ़ाने में मददगार साबित होंगी। उत्तर प्रदेश के कृषि निदेशक ज्ञान सिंह ने कहते हैं, “निसंदेह संस्थान खुलने से धान की उत्पादकता बढ़ेगी, जो किसानों की आमदनी को बढ़ाएगी, हमारे पास पर्याप्त जमीन है, अगर नई किस्में आएंगी तो सबको लाभ होगा।” कृषि विभाग के मुताबिक प्रदेश में इस वर्ष 59.66 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में धान खेती और इससे 151.30 लाख मीट्रिक टन धान उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है।

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चावल और पुआल की पौष्टिकता सुधारने में मिलेगी मदद

आईआरआरआई भारत की समृद्ध जैव विविधता का इस्तेमाल कर चावल की उन्नत किस्में विकसित करने में मददगार होगा। इस चावल संस्थान में एक आधुनिक प्रयोगशाला भी होगी जिसमें चावल और पुआल में भारी घातुओं की गुणवत्ता और स्तर का पता लगाने की क्षमता होगी। यह केन्द्र चावल के विभिन्न उत्पादों की श्रृंखला को सशक्त बनाने के लिए काम करेगा। धान की ऐसी किस्में भी यह संस्थान विकसित करेगा, जो पोषक तत्व भरपूर होने के साथ ही देश में धान की प्रति हेक्टेयर अधिक उपज भी दे सकें। यह संस्थान चावल अनुंसधान के लिए दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय केन्द्र (आईएसएआरसी) के रूप में भी काम करेगा। भारत ही नहीं पूरे दक्षिण एशिया और अफ्रीकी देशों के लिए भी यह खाद्यान उत्पादन और कौशल विकास के क्षेत्र में अहम भूमिका निभाएगा।

मनीला के संस्थान से एमओयू, निजी कंपनियां भी होंगी होंगी शामिल

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में स्थापित होने वाले इस संस्थान में केंद्र सरकार, यूपी सरकार, नेपाल, बंगलादेश और निजी क्षेत्र के प्रतिनिधि इसके सदस्य होंगे। केन्द्र की स्थापना के लिए फिलीपींस के इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट और भारत सरकार के बीच एक भारत सरकार के बीच एक समझौता होगा।

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धान की चमत्कारी किस्म आईआर-8 को पिछले दिनों पूरे हुए 50 साल

1960 में अमेरिकी दो चैरिटी संस्थाओं फोर्ड और राकफेलर ने दुनिया को भूखमरी से निजात दिलाने के लिए फिलीपींस में इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना की थी। इसके सहयोग से ही आईआर-8 को विकसित किया गया था। कृषि एवं आनुवंशिकी वैज्ञानिक डा. गुरूदेव सिंह खुश ने बताया कि कृषि के विश्व इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ था जब चावल की पैदावार दोगुनी हो हुई हो। लेकिन आईआर-8 ने इसको कर दिखाया। आईआर-8 की सफलता पर डॉ. खुश ने बताया कि एशिया की आबादी लगभग साढ़े चार अरब है। यहां के अधिकांश लोग चावल खाते हैं। एक आंकड़े के मुताबिक 1980 में जहां एशिया की 50 फीसदी आबादी भूखी थी वहीं आज यह आंकड़ा गिरकर 12 प्रतिशत रहा गया है। इसमें आईआर-8 का बहुत योगदान है।

    

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