कुछ वर्षों पहले तक खेती में यंत्रों का उपयोग बहुत कम किया जाता था, लेकिन समय के साथ-साथ खेती में हुए बदलावों के साथ-साथ यंत्रों का इस्तेमाल बढ़ने लगा। पहले किसान जुताई बैलों के द्वारा करते थे लेकिन अब ज्यादा तर किसान ट्रैक्टर से जुताई करते हैं, जिनके पास ट्रैक्टर नहीं हैं वो भी किराये पर अपना खेत जुतवाते हैं। इसके अलावा अब किसान बीज की बुवाई करने के लिए भी मशीनों का इस्तेमाल करने लगे हैं, जबकि कुछ समय पहले तक किसान बीजों की बुवाई हाथों से ही करते थे।
भारतीय किसान पहले की तुलना में तेजी से खेती के यंत्रों को अपना रहे हैं। यह जानकारी केन्द्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट मामलों के मंत्री अरुण जेटली ने आज संसद में आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 प्रस्तुत करने के दौरान दी। आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि ट्रैक्टरों की बड़ी संख्या में बिक्री यांत्रिकीकरण के स्तर को दिखाती है।
खेती में यंत्रों को शामिल करने से किसानों का समय के साथ-साथ मेहनत भी कम लगती है। इसके अलावा अगर मशीन से बुवाई करते हैं तो बीज कम लगता है और जमाव अच्छा होता है।
विश्व बैंक अनुमान के अनुसार, भारत की आधी आबादी 2050 तक शहरी हो जाएगी। ऐसा अनुमान है कि कुल श्रम बल में कृषि श्रमिकों का प्रतिशत 2001 के 58.2 प्रतिशत से गिरकर 2050 तक 25.7 प्रतिशत तक आ जाएगा। इसलिए, देश में कृषि यांत्रिकी के स्तर को बढ़ाने की आवश्यकता है। विभिन्न कृषि परिचालनों में श्रम की मजबूत भागीदारी के कारण कई फसलों में उत्पादन की लागत काफी अधिक है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान यांत्रिकी और बिजली के स्रोतों के उपयोग की दिशा में बदलाव आया है।
आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, भारतीय कृषि में छोटे परिचालनगत जोतों की संख्या काफी अधिक है। इसलिए, कृषि यांत्रिकीकरण का लाभ उठाने के लिए भूमि जोतों के संघटन की जरूरत है।