उत्तर प्रदेश के सीतापुर मक्के की फसल में दिखा खतरनाक कीट 'फॉल आर्मी वर्म'
Mohit Shukla 17 Aug 2019 2:08 PM GMT
सीतापुर (उत्तर प्रदेश)। तीन साल पहले अफ्रीका में मक्के की खेत में तबाही मचाने वाला कीट फॉल आर्मी वर्म कर्नाटक और तमिलनाडू, छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले के बाद उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में मक्का की फसल में दिखा है। ये कीट एक दर्जन से अधिक तरह की फसलों को बर्बाद कर सकता है।
उत्तर प्रदेश के सीतापुर जनपद के लहरपुर तहसील के ग्राम बरबटा ज़ालिमपुर के किसान नन्द किशोर ने करीब एक एकड़ में मक्के की बुवाई है। वो बताते हैं, "बहुत साल से मक्के की खेती करते आ रहा हूं, लेकिन इस बार पता नहीं कौन सा कीड़ा लगा है, जो पहले कभी नहीं लगा था। ये कीड़ा तेजी से मक्के की फसल को बर्बाद कर रहा है।"
वो आगे कहते हैं, "इस बारे में जब मैंने उस कीड़े की तस्वीर कृषि विज्ञान केंद्र कटिया के फसल सुरक्षा वैज्ञानिक डॉ दया शंकर श्रीवास्तव को भेजा तो उन्होंने खेत पर आकर देखा तो बताया यह कीड़ा फाल आर्मी वर्म है। अगर समय रहते हुए इसका समुचित निदान नहीं हुआ तो फसल बर्बाद हो जाएगी।
कृषि वैज्ञानिक डॉ दया शंकर श्रीवास्तव बताते हैं, "इस कीड़े का नाम 'फॉल आर्मी वर्म' नाम से जाना जाता है,इसको भारत मे पहली बार मई 2018 में कर्नाटक के शिवमौगा जनपद में मक्के की फसल में देखा गया था। उसके बाद तमिलनाडु, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, मिजोरम में भी यह कीड़ा तेजी से पैर पसार चुका है। उत्तर प्रदेश में एक बड़े पैमाने पर गन्ने व मक्के की खेती की जाती है। इस लिए इस कीड़े का प्रदेश में पाया जाना एक बहुत ही गम्भीर चिंता का विषय है। इसकी पहचान व अस्थायी रोकथाम निम्न प्रकार है।"
फॉल आर्मी वर्म कीड़े की पहचान व लक्षण
यह कीड़ा दिखने में सुंडी की तरह ही दिखाई देता है किंतु सिर के अग्र भाग पर उल्टे वाई के निशान स्पष्ट रूप से दिखाई देते है। शरीर के पृष्ट भाग पर आठवें उदर खण्ड पर चार काले बिन्दु वर्गाकार दिखाई देते हैं। यह कीड़ा मक्के व गन्ने की फसल में जहां से तना निकलना शुरू होता है, वहीं से तने को खाना शुरू कर देता है। वहीं पौधे पर अधिक इसका मल व पौधे की पत्तियों के कटे भाग सामान्यतः दिखाई देते है।
इस कीड़े का अभी तक भारत में पूर्णतः नियंत्रण की खोज की जा रही है, तब तक किसान भाई इस फसल विनाशक कीड़े की रोकथाम के लिए सबसे पहले जिस खेत मे इस कीट का प्रकोप दिखाई दे उसमे सूखा बालू कल्ले निकलने के स्थान पर डाल दें। शाम को खरपतवारों को जला कर के खेत के किनारे किनारे धुआं करें। वनस्पतिक कीट नाशक में नीम सीड करनल इस्ट्रेक्ट पांच ग्राम प्रति लीटर पानी मे जैविक कीटनाशी में न्यूमेरिया तीन ग्राम प्रति लीटर और बीटी दो ग्राम प्रति लीटर। बुवाई के पन्द्रह से पच्चीस दिन के उपरान्त प्रयोग करें।
रासायनिक कीट नाशकों में इमामेक्टिन बेंजोएट 0.4 ग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब से प्रयोग कर के इस से बचाव किया जा सकता है।
दो साल पहले अफ्रीका में इस कीट को देखा गया था। आकार में ये कीट भले ही छोटे हों, लेकिन ये इतनी जल्दी अपनी आबादी बढ़ाते हैं कि देखते ही देखते पूरा खेत साफ कर सकते हैं। यही वजह है कि पिछले दो वर्षों में अफ्रीका में ज्वार, सोयाबीन आदि की फसल के नष्ट हो जाने से करोड़ों का नुकसान हुआ। इस कीट के प्रकोप से परेशान श्रीलंका ने अपने देश मे मक्के की फसल के उत्पादन और इम्पोर्ट पर रोक लगा दी है।
इसके लार्वा मक्का, चावल, ज्वार, गन्ना, गोभी, चुकंदर, मूंगफली, सोयाबीन, प्याज, टमाटर, आलू और कपास सहित कई फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं। क्योंकि इन कीटों को खत्म करने के लिए संसाधन उपलब्ध नहीं रहते हैं, इसलिए इन्हें खत्म करना आसान नहीं होता है।
भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, के प्रधान वैज्ञानिक कीट विज्ञान डॉ एसएन सुशील कहते हैं, "फ्रेरोमेंन ट्रेप एक एकड़ में 5 से 6 लगा दे इस से इसके एडल्ट पकड़ कर नष्ट किए जा सकते हैं। इस कीड़े का प्रकोप जो है वो जुलाई से सितम्बर माह तक ज़्यादा रहता है। इसके लिए किसान भाई खेत की रखवाली सुबह शाम अवश्य करें।"
चन्द्रशेखर आज़ाद यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी कानपुर के प्रोफसर प्रो डॉ कृपा शंकर कहते हैं, "यह कीड़ा बहुत ख़तरनाक कीड़ा है, झुंड के माध्यम से हमला करता है। और इसमें कोई कीटनाशक काम नहीं कर पाता है, क्योंकि इसका जो मल रहता है वो पौधे में जो छिद्र बनाता है उनको मल से अवरूद्ध कर देता है। इसके लिए जैविक विधि से रोकथाम करें किसान भाई, नियमित रूप से रोजाना खेतों की निगरानी करें।
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