लखनऊ। डेयरी और पशुपालकों को सबसे ज्यादा नुकसान उस वक्त होता है जब किसी की गाय-भैंस या बकरी की मौत हो जाती है। ऐसी दशा में किसान की उसके दूध आदि से होने वाली आमदनी तो जाती ही है, हजारों रुपए के पशु की मौत होने से जमा पूंजी भी डूब जाती हैं।
लेकिन पशुपालक अगर थोड़ी सावधानी बरतें और पशुओं का बीमा करा लें तो वो ऐसे जोखिम से बच सकते हैं। सरकार की योजना के तहत एक पशुपालक अपनी 50 हजार रुपए तक की गाय-भैंस का बीमा सिर्फ 80 पैसे रोज में एक साल के लिए करवा सकता है। पशुपालकों के जोखिम को कम करने के लिए पशु बीमा योजना का सामान्य परिस्थितियों में 50 फीसदी प्रीमियम केंद्र सरकार, 25 फीसदी राज्य सरकार और बाकी का 25 फीसदी लाभार्थी को देना होता है।
पिछले वर्ष शुरू हुई इस योजना के तहत पशु के बाजार मूल्य के आधार पर बीमित किया जाता है। गाय और भैंस का मूल्य उसके प्रतिदिन देय दूध या उसके ब्यात पर निर्भर करता है। पशु की न्यूनतम बाजार दर गाय के लिए 3000 रुपए प्रति लीटर और भैंस के लिए 4000 रुपए लीटर है। इसके अलावा राज्य सरकार द्वारा मान्य स्थानीय बाजार पर भी बीमा किया जा सकता है।
पशुपालन विभाग के अनुसार यूपी में एक साल में डेढ़ लाख से ज्यादा पशुओं का बीमा किया जा चुका है। उत्तर प्रदेश पशुधन विकास परिषद के मुख्य कार्रकारी अधिकारी डॉ. एएन सिंह बताते हैं, “योजना काफी सफल रही है, प्रीमियम का बड़ा हिस्सा सरकार खुद ही दे रही हैं। ऐसे में मात्र कुछ रुपए प्रतिदिन का देकर पशुपालक किसी जोखिम से बच सकते हैं। हम लोग लोगों को जागरूक करने के लिए कई तरह के प्रयास भी कर रहे हैं।’
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उत्तर प्रदेश में बीमा का जिम्मा ओरिएटंल इंश्योरेंस कं. लिमिटेड को दिया गया है। जिसके तहत दो तरह से बीमा किया जाता है। अगर सिर्फ मृत्यु या चोरी आदि के लिए बीमा कराना है तो बीमा की दर पशु के मूल्य की 2.32 फीसदी होगी एक साल के लिए, जबकि अगर इसमें पूर्ण विकलांगता शामिल किया जाता है तो ये दर बढ़कर 2.98 फीसदी हो जाता है।
19वीं पशुगणना के अनुसार भारत में कुल 51.2 करोड़ पशु हैं। जबकि उत्तर प्रदेश में पशुओं की संख्या 4 करोड़ 75 लाख (गाय-भैंस, बकरी, भेड़ आदि सब) है। उत्तर प्रदेश दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में सबसे आगे हैं। लेकिन कुछ साल पहले तक बीमा सिर्फ प्रगतिशील डेयरी किसान ही कराते थे, इस योजना में आम किसानों को तवज्जो दी गई है।
योजना को छोटे किसानों के लिए लाभकारी बताते हुए गोरखपुर के पशु चिकित्साधिकारी आैर पीवीएस एसोसिएशन उत्तर प्रदेश राकेश शुक्ला बताते हैं, “हमारे गोरखपुर में एक साल में 3200 पशुओं बीमा हुआ है। इस दौरान 50-60 पशुपालकों को जानवर की क्षति होने पर बीमा भी मिला है। योजना का लाभ पाने के लिए कोई ज्यादा कागजी भी नहीं है, बस जिले के पशु चिकित्सक के यहां आवेदन करना है। पशुपालक के पास आधार और बैंक खाता होना चाहिए मृत्यु होने पर पैसा खाते में आता है। बाकी काम बीमा और विभाग के कर्मचारी खुद करते हैं।’
प्रीमियम का गणित और गुणाभाग सरल शब्दों में बताते हुए वो कहते हैं, 10 हजार रुपए तक के पशु के लिए जो प्रीमियम सामान्य पशुपालक को देना है वो है मात्र 58 रुपए। यानि हर 10 हजार पर 58 रुपए। ऐसे में अगर किसी भैंस का मूल्य 50 हजार है तो उसका सालाना प्रीमियम 280 रुपए होगा।’ यानि रोज का महज 80 पैसे। इसी तरह अगर किसी बकरी का मूल्य 2000 रुपए है तो उसके लिए पशुपालक को करीब 12 रुपए देने होंगे। योजना पहले से पारदर्शी है जिसमें वाट्सएप नंबर से क्लेम की स्टेटस भी जानी जा सकती है, साथ ही र्काई शंका होने पर सीधे मोबाइल से संपर्क किया जा सकता है। योजना में एजेंट बनने पर युवाओं को रोजगार भी मिल सकता है जिसके लिए प्रति पशु बीमा कराने पर 50 रुपए दिए जाते हैं।
योजना में पिछड़े लोगों का खास ख्याल रखा गया है। चंदौली, मिर्जापुर और सोनभद्र को छोड़कार बाकी 72 जिलों में बीपीएल, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लाभार्थियों के लिए केंद्र 40 फीसदी, राज्य 50 फीसदी जबकि लाभार्थी को सिर्फ 10 फीसदी प्रीमियम देना होता है, जो ऊपर खबर में किए गए गणित से भी काफी कम होगा। अनुसूचित जाति के पशुपालकों के लिए केवल 23 रुपए प्रति 10000 कीमत के पशु के लिए प्रीमियम देय है।
पशुपालकों जबकि लेफ्ट विंग एक्सट्रीमिस्ट तीन जिलों( चंदौली, मिर्जापुर और सोनभद्र ) में बीपीएल, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए केंद्र 50 फीसदी और राज्य सरकार 50 फीसदी प्रीमियम में हिस्सेदारी देते हैं यानी इन जिलों के उक्त वर्गों में आने वाले पशुपालकों के लिए ये योजना पूरी तरह मुफ्त है। लेकिन इन्हीं तीन जनपदों के बाकी वर्गों के लिए लाभार्थी को 15 फीसदी बीमा प्रीमियम का वहन करना होगा।
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योजना को लेकर पशुधन विकास परिषद में पशु चिकित्साधिकारी डॉ. वीनू पांडेय बताती हैं, “योजना के तहत छोटे और मंझोले पशुपालकों पर पूरा जोर है, ज्यादा से ज्यादा छोटे किसानों को लाभ मिले इसके लिए एक लाभार्थी के 5 बड़े पशुओं को भी बीमा के दायरे में लाया गया है।”
बीमा कराने तरीका, लाभ पाने का तरीका
- जिले के पशुचिकित्सा अधिकारी के यहां आवेदन करें।
- लाभार्थी के पास आधार कार्ड और बैंक खाता होना जरुरी है।
- बीमा कंपनी के कर्माचरी, पशु चिकित्सक की मौजूदरी में पशु का मूल्य निर्धाकरण कर उसके कान में एक टैग (बिल्ला) लगाएंगे। किसान को इस टैग और पशु के साथ एक फोटो कंपनी में जमा करानी होगी।
- मृत्यु होने पर पशुपालकों को बीमा कंपनी को तुरंत सूचना देनी होगी। बीमा कंपनी का एजेंट शव का मुआयना करेगा जिसके बाद चिकित्सका पोस्टमार्टम करेंगे,।
- पशु मृत्यु का दावा फार्म, पोस्टमार्टम रिपोर्ट, पशु के कान का टैग, मूल्याकन पत्र बीमा कंपनी को उपलब्ध कराने पर 15 दिनों में बीमा कंपनी दावों का निस्तारण करेंगी और एक महीने, ज्यादा से ज्यादा तीन महीनों में बीमे का पैसा खाते में जाएगे।
- बीमा का पैसा, पशु की उम्र, दूध देने की स्थिति आदि के अनुसार पशु मूल्य के अनुपात में कम हो सकता है।