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इंटीग्रेटेड फार्मिंग : खेती के साथ ही मुर्गी, बकरी और मछली पालन से कमाई का तरीका

युवा किसान दिशांत सिंह इंटीग्रेटेड फार्मिंग करते हैं, खेती की इस तकनीक में वो मुर्गी, बकरी और मछली पालन के साथ खेती भी करते हैं, इसमें कुछ भी बर्बाद नहीं जाता, सब एक-दूसरे के काम आ जाता है।
#intigrated farming

खेती कैसे फायदेमंद हो सकती है? क्योंकि समय के साथ लागत और मेहनत तो बढ़ गई है, लेकिन मुनाफा नहीं बढ़ रहा है। लेकिन कुछ किसान ऐसे भी हैं जो खेती में नए प्रयोग करके अच्छी कमाई भी कर रहे हैं। ऐसे ही एक युवा किसान दिशांत सिंह भी हैं।

मध्य प्रदेश के सतना जिले में इटमा गाँव के किसान दिशांत सिंह ने वैसे तो कई साल मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी की, लेकिन अब वो खेती के साथ ही पोल्ट्री, बकरी और मछली पालन भी कर रहे हैं। दिशांत बताते हैं, “इंदौर में पढ़ाई के बाद कई मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी की। इन नौकरियों के समय हमेशा अपने पैतृक व्यवसाय खेती के लिए सोचता रहता था। यही कारण था कि एक दिन मैंने अपने पिता, बड़े भाई और पत्नी से नौकरी छोड़ने के बारे में बताया और खेती करने का विचार भी। परिवार की हरी झंडी मिलते ही सीधे चला आया। साल 2019 में अपने गांव इटमा चला आया। यहां खेती शुरू की, पोल्ट्री फार्म बनवाया। अब इसी में लगा रहता हूं।”

करीब कई में फैले इस देशी स्टाइल के फार्म में खेती के साथ-साथ पोल्ट्री, बकरी पालन और मछली पालन का काम है। उड़द सड़ गई तो उसी को खाने वाली मछली डाल दी, मुर्गी की बीट का उपयोग कम्पोस्ट खाद के रूप में कर लिया। दिशांत कहते हैं, “करीब 22 एकड़ में बांध पर उड़द बोई थी। इस साल अचानक हुई बारिश के कारण पूरा बांध लबालब हो गया। उड़द सड़ गई। इससे एक रुपया आमदनी नहीं होने वाली थी। इसलिए ग्रासकॉर्प मछली डाल दी। यह मछली सड़े अनाज का भोजन करती है। इस बांध में दिवाली तक पानी रहेगा। तब तक यह मछली एक से डेढ़ किलो की हो जाएगी। यहां इसका दाम 150 रुपए किलो है। इस तरह से जहां हमे एक रुपये नहीं मिलने वाले थे लेकिन 25 हजार ग्रासकॉर्प से 2 से 3 लाख रुपए कमा सकता हूं।”

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दिशांत ने पोल्ट्री फार्म पर कई नस्ल के मुर्गे भी पाल रखे हैं। वो कहते हैं, “सतना में अकेले 15 हजार किलो चिकन की डिमांड है यही कारण था कि पोल्ट्री फार्म बनाया। जिसमें कड़कनाथ सहित अन्य देशी मुर्गे मुर्गे भी पाल रखी हैं। इनसे अंडा और चिकन दोनों का काम चल रहा है। यहां ब्रायलर की डिमांड है जो दवाओं से तैयार किया जाता है। कड़कनाथ के अलावा हैदराबाद का वनराजा भी पोल्ट्री फार्म में है। इसके लिए मझगवां कृषि विज्ञान केन्द्र और भारतीय कुक्कुट अनुसंधान केन्द्र हैदराबाद की वैज्ञानिकों की सलाह भी ली जिसके बाद से काम अच्छा हो चला है।”

दिशांत बताते हैं कि इस फार्म में जो भी काम चल रहे हैं वह एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। यहां कोई भी अनुपयोगी वस्तु है वह दूसरे के लिए उपयोगी बनाई जा रही है। उदाहरण के लिए मुर्गी के बैठने के लिए धान की भूसी और लकड़ी का बुरादा उपयोग करते हैं। इसमें मुर्गी बीट करती है। जब यह बाहर जाता है तो इस बीट भूसी को खाद के रूप में उपयोग करते हैं जो अपने खेतों के काम आती है। इसी तरह कभी मुर्गी में कोई समस्या आई या मर गई तो उसे यहीं पंगेशियस नामक मछली पाल रखी है उसको फीड के रूप में दे देता हूं। इस तरह से इस फार्म में हर वेस्टेज किसी न किसी के काम आ रहा है।

इसके साथ ही दिशांत ने बकरियां भी पाल रखी हैं, गुजरात से सिरोही नस्ल की बकरियां लेकर आए हैं। “इसके लिए मध्यप्रदेश सरकार की बकरी पालन योजना का लाभ लिया है। इसके लिए जो भी उपयोगी खाना पान की वस्तुएं हैं कहीं से नहीं यहीं उगाता हूं। दिशांत बताते हैं कि इस फार्म के माध्यम से अन्य युवाओं को भी बकरी, मछली पालन आदि की सीख दे रहा हूं। ताकि आपदा के समय किसी को हाथ न खड़ा करना पड़े।” दिशांत ने आगे बताया।

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