जिस अफ्रीका को खेती सिखाई वो हमे बेच रहा दाल

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जिस अफ्रीका को खेती सिखाई वो हमे बेच रहा दालgaonconnection

लखनऊ। हाल ही में अफ्रीका के छोटे से देश मोज़ाम्बिक से भारत का दालों का आयात दोगुना करने को लेकर समझौता हुआ। सरकारी गलियारों व मीडिया में इस मुद्दे पर हुई चर्चाओं में ये आशय निकला कि इससे दलहन की त्रासदी हल हो सकती है। जानकारों के मुताबिक त्रासदी का हल दूसरे देश में खेती को बढ़ावा देकर और वहां से महंगे दामों पर दाल खरीदकर नहीं, बल्कि अपने देश के किसानों को दाल उगाने के लिए प्रोत्साहित करने से निकलेगा।

“आयात से समस्या का हल नहीं निकलेगा। देश में कमाई बढ़ने के साथ ही दालों की मांग भी और बढ़ेगी। ऐसे में अपने किसानों को दाल उगाने के लिए लाभ देकर रकबा बढ़ाना ही उपाय हो सकता है,” जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के कृषि अर्थशास्त्री हिमांशु ने गाँव कनेक्शन को फोन पर बताया।

भारत की दालों की घरेलू मांग लगभग दो से ढाई करोड़ टन सालाना है। वर्ष 2015-16 में देश में 1.7 करोड़ टन दलहन उत्पादन का अनुमान है, कमी को पूरा करने को अब तक पांच लाख 70 हज़ार टन दलहन आयात हो चुका है फिर भी दामों पर लगाम नहीं लग रही है। 

“कुछ साल पहले तब के कृषि मंत्री रहे बलराम जाखड़ ने भी अफ्रीका में दालें उगा कर आयात करने का प्रस्ताव दिया था। शरद पवार ने भी कृषि मंत्री रहते हुए बर्मा और उरुग्वे से दालों के आयात की बात कही थी। अब मेरे समझ में ये नहीं आता कि अगर भारत सरकार अफ्रीका, बर्मा और उरुग्वे को दाल के लिए ऊंचे दाम देने को तैयार है तो अपने खुद के किसानों को वही ऊंचे दाम क्यों नहीं देती, इससे उत्पादन देश में ही बढ़ जाएगा।” विख्यात कृषि एवं खाद्य-नीति विश्लेषक देविन्दर शर्मा ने गाँव कनेक्शन से कहा।

मोज़ाम्बिक कोई पहला देश नहीं जिससे भारत दालें आयात करेगा, लंबे समय से देश 40 से भी ज्यादा अलग-अलग देशों से दालें आयात करता रहा है। भारत सबसे ज्यादा दालें कैनेडा से आयात करता है। देश में दालों के संकट से निपटने के लिए सरकार का लगातार आयात की ओर बढ़ता रुझान भी जानकारों की राय में नया संकट लाएगा।

“दालों का आयात करने वाले देशों की संख्या बहुत कम है, ऐसे में अगर भारत आयात पर निर्भरता बढ़ाता रहेगा तो बाहर देशों को पता चल जाएगा कि आपकी आवश्यकता है इससे दालों के ग्लोबल ट्रेडर भारत के लिए दालों के भाव बढ़ा सकते हैं,” हिमांशु ने चेताया।

देश में दालों का पारिदृश्य दरअसल, 90 के दशक के बाद से ही बिगड़ा, जब से सरकारों का सारा रुझान और सारी वित्तीय मदद धान व गेहूं की ओर मुड़ गई। पिछले 15-20 सालों में न तो दलहन के शोध पर ज्यादा पैसा खर्च किया गया न ही उसके बाज़ारों को विकसित करने पर।

देश में दलहन की स्थिति सुधारने के लिए कृषि अर्थशास्त्री हिमांशु जिन चरणबद्ध तरीकों का जि़क्र करते हैं वो हैं: सबसे पहले देश में किसानों को दालों की बेहतर एमएसपी के साथ उनकी खरीद की व्यवस्था करना। अभी सरकार बफर स्टाक बना रही है पर वो काफी नहीं। दलहन खरीद को देश भर में गेहूं और चावल की खरीद जितना ही विस्तार देना होगा। दलहन की उन्नत किस्में तैयार करनी होंगी, जो मौजूद हैँ उनकी जानकारी किसानों तक पहुंचानी होगी।

दलहन उत्पादन की देश में एक बड़ी समस्या ये भी है कि ज्यादातर खेती उन इलाकों में होती है जो सिंचाई के लिए पूरी तरह बारिश पर आधारित हैं। इससे किसानों की मुश्किलें और बढ़ जाती हैं। “बारिश पर आधारित इलाकों में उत्पादन होने के कारण सरकार को चाहिए की दलहन की खेती में वित्तीय सहायता को गेहूं और धान से ज्यादा बढ़ावा दें” हिमांशु ने बताया।

 

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