छोटे किसानों की चिंता दूर करेंगे वैज्ञानिक, बताएंगे सहफसली खेती के लाभ 

Sundar ChandelSundar Chandel   17 Dec 2017 3:09 PM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
छोटे किसानों की चिंता दूर करेंगे वैज्ञानिक, बताएंगे सहफसली खेती के लाभ स्ट्रोबेरी और मिर्च की सहफसली खेती।

कृषि वैज्ञानिकों के शोध अब सीधे छोटे किसानों तक पहुंचेंगे। यही नहीं वैज्ञानिक छोटे किसानों को समय-समय पर बताएंगे कि ये कब और कौन सी फसल की बुवाई करें। वैज्ञानिकों का जोर छोटे किसानों पर सहफसली कृषि प्रणाली अपनाने पर है। पिछले एक साल से देश के 31 स्थानों पर शोध कार्य चल रहा है। शोध में आए परिणामों से वैज्ञानिक उत्साहित हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि छोटे किसानों को खेती के लिए प्रोत्साहित नहीं किया तो वो दिन दूर नहीं जब देष में खाद्यान का संकट भी खड़ा हो जाएगा। इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए छोटे किसानों तक पहुंचने का प्लान है।

ये भी पढ़ें: जानिए किस तरह की मिट्टी में लेनी चाहिए कौन सी फसल

तेजी से घट रही जोत कृषि वैज्ञानिकों के लिए चिंता विषय बनता जा रहा है। कृषि विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. आरवी सिंह बताते हैं, "जिस तरह से खेती घट रही है, उससे लगता है आने वाले समय में देश के लिए खाद्यान का संकट आएगा। छोटी जोत और सिंमात किसानों को खेती की लागत बढ़ जाने से मोह भंग हो रहा है। ऐसे में वैज्ञानिकों ने उनकी हर संभव मदद करने के लिए शोध कार्य किए हैं, ताकि छोटे किसान खेती को अच्छे तरीके से करते रहें। वैज्ञानिकों ने कम लागत पर अधिक उत्पादन की कृषि प्रणाली बनाई है। जिसे किसानों तक पहुंचाया जाएगा।"

आर्थिक स्थिति होगी मजबूत

वैज्ञानिकों पर किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत करने तथा खेती के साथ रोजगार दिलाने की भी चुनौती है। अखिल भारतीय समन्वित कृशि प्रणाली अनुसंधान परियोजना के तहत देषभर में लगभग 31 स्थानों पर शोध जारी है। मोदीपुरम स्थित कृषि प्रणाली अनुसंधान परियोजना के तहत फिल्ड शोध चल रहा है।

शोध के दौरान किसानों के लिए ऐसी सहफसली प्रणाली दी जाएगी, जिससे वे एक साथ दो फसलें आसानी से ले सकें। किस क्षेत्र में कौन सी फसल अधिक लाभकारी होगी, यह भी शोध में शामिल किया गया है। वहीं खेती के साथ पशुपालन के बारे में टिप्स भी किसानों को दिए जाएंगे। ताकि उनकी आर्थिक स्थिति हर हाल में सुधारी जा सके। साथ ही वेस्ट पदार्थ से जैविक खाद बनाकर उसका उपयोग और बिक्री के तरीके भी वैज्ञानिक किसानों को बताएंगे।

ये भी पढ़ें: सावधान ! आपके खेत कहीं रेगिस्तान न बन जाएं?

इन पर रहेगा जोर

डॉ. गंगवार बताते हैं, "पशुपालन में दुधारू पशुओं समेत मतस्य पालन, बकरी पालन, मुर्गी पालन, रेशम कीट पालन आदि को शामिल किया जाएगा। साथ ही छोटे किसानों को वैज्ञानिक तरीके से फूलों की खेती व सब्जियों की खेती के लिए प्रेरित किया जाएगा। मशरूम की खेती को भी छोटे व सिमांत किसानों तक पहुंचाया जाएगा। साथ ही सरकार से मिलने वाली मदद व संसाधनों का सदउपयोग करने की तरीके भी शोध में शामिल किए गए हैं। साथ ही छोटे किसानों को सब्सिडी पर बीज व खाद्य उपलब्ध कराने की भी योजना है।

देश में छोटे किसानों की संख्या 70 प्रतिशत है। साथ ही छोटे किसानों तक कृषि वैज्ञानिकों के शोध नहीं पहुंच पाते हैं। ऐसे किसानों के लिए ही समन्वित खेती प्रणाली तैयार की जा रही है।
डॉ. बी गंगवार, निदेशक, पीडीएफएसआर मोदीपुरम

प्रोजेक्ट में शामिल किसान

इस प्रोजेक्ट में उन किसानों को शामिल किया जाएगा, जिनकी कृषि जोत एक से ढाई एकड़ तक है। साथ ही किसानों को समय-समय पर खेती करने का प्रशिक्षण भी दिया जाएगा। जागरूक किसानों को फिल्ड भ्रमण कराकर उनके अनुभव भी शोध में शोमिल किए जाएंगे। ताकि वे गाँव मे जाकर अन्य किसानों को जागरूक कर सकें।

वीडियो, क्या होती है मल्टीलेयर फ़ार्मिंग, लागत 4 गुना कम, मुनाफ़ा 8 गुना होता है ज़्यादा

No post found for this url

यह भी पढ़ें: भुखमरी से दुनिया को बचाएगा बाजरा

भारतीय मिलेट्स को जानने के लिए बेंगलुरू में जुटेंगे दुनियाभर के लोग

ये भी पढ़ें- नए जमाने की खेती- छत पर ली जा रही हैं फसलें 

ये भी पढ़ें- स्ट्रॉबेरी है नए ज़माने की फसल : पैसा लगाइए, पैसा कमाइए

   

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.