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गेहूं की बुवाई कर चुके किसान इन बातों का रखें ध्यान, पछेती गेहूं की खेती करने वाले किसान इन खास किस्मों की करें बुवाई

खेती में सबसे महत्वपूर्ण होता है बीजों का चयन, इसलिए बुवाई करते समय किसानों को सही बीजों का चुनाव करना चाहिए, जैसे कि अगेती और पछेती किस्मों के हिसाब से बुवाई करें।
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ज्यादातर किसानों ने गेहूं की बुवाई कर ली है, जबकि बहुत से ऐसे भी किसान हैं जो देरी से गेहूं की बुवाई करते हैं। ऐसे में किसानों को कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए।

किसानों के ऐसे ही कई सवालों के जवाब इस हफ्ते के पूसा समाचार में दिए गए हैं। आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान हर हफ्ते किसानों के लिए पूसा समाचार जारी करता है। संस्थान के आनुवांशिकी संभाग के वैज्ञानिक डॉ शैलेंद्र झा गेहूं की खेती के बारे में जानकारी दे रहे हैं।

डॉ शैलेंद्र झा बताते हैं, “ज्यादातर किसानों ने गेहूं की बुवाई कर ली होगी, उनकी फसल 20-25 दिन की हो गई होगी, तो ऐसे में फसल में एक महत्वपूर्ण अवस्था आती है, जिसे हम मुख्य जड़ का विकास कहते हैं, इसमें गेहूं की जड़ें विकसित होती हैं, इस अवस्था में हमें सिंचाई करनी होती है।”

वो आगे कहते हैं, “इसलिए किसान भाई जल्दी से जल्दी सिंचाई कर लें और जब फसल 30-35 दिनों की हो जाए तो खरपतवारनाशी का प्रयोग करें, क्योंकि अगर खेत में खरपतवार होगा तो आपकी उपज पर असर पड़ेगा, इसके लिए मैटसल्फ्यूरॉन या सल्फोसल्फ्यूरॉन 16 ग्राम प्रति 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ में छिड़काव करें।”

देरी से बुवाई करने वाले किसान इन बातों का रखें ध्यान

कुछ किसान ऐसे भी होंगे जिन्होंने अभी तक बुवाई नहीं की होगी, ऐसे किसान जो गन्ने की फसल, कपास के बाद, या फिर आलू की फसल के बाद गेहूं की बुवाई करना चाहते हैं। वो देरी से गेहूं की बुवाई करते हैं।

देर से गेहूं की बुवाई करने के लिए किसानों को कुछ खास किस्मों का चयन करना चाहिए, जैसे कि वो जल्दी पकने वाली (120-125 दिनों), दाना भरने की अवस्था में उनमें ताप सहने की क्षमता होनी चाहिए और ऐसा भी देखा गया है कि देर से बोई जाने वाली किस्मों में रतुआ यानी रस्ट की समस्या आती है। इसलिए इन बीमारियों की प्रतिरोधी किस्मों की ही बुवाई करें।

इन्हीं सबका ध्यान रखते हुए पूसा संस्थान के वैज्ञानिकों ने कुछ खास किस्में विकसित की हैं।

एचडी 359 जिसे पूसा पछेती भी कहते हैं, ये भारत के उत्तर पश्चिमी क्षेत्रों के लिए विकसित की गई है, जैसे कि पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इसकी बुवाई की जा सकती है। साथ ही रतुआ प्रतिरोधी भी होती है। इस किस्म की उपज क्षमता 55 से 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।

एचडी- 3118 ये उत्तर पूर्वी मैदानी क्षेत्रों के लिए विकसित की गई है। इसकी भी उपज क्षमता बढ़िया है, प्रति हेक्टेयर 60-65 क्विंटल उत्पादन मिल जाता है। ये भी रतुआ प्रतिरोधी किस्म है।

कुछ किसान ऐसे भी होंगे जो दिसंबर के आखिर में या जनवरी के पहले सप्ताह में गेहूं की बुवाई करेंगे, इस तरह के अवस्था के लिए भी आईएआरआई ने कुछ किस्में विकसित की हैं। जिसमें एचडी-3271, एचडी-3298 और एचआई-1621 है।

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