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जम्मू-कश्मीर: ‘बैंगनी क्रांति’ के केंद्र डोडा जिले में हो रहा लैवेंडर फेस्टिवल

सीएसआईआर-आईआईआईएम ने भारत को लैवेंडर तेल का एक प्रमुख निर्यातक बनाने का लक्ष्य रखा है। भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय का अरोमा मिशन इस दिशा में कार्य कर रहा है, और किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उनकी मदद कर रहा है।
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जम्मू-कश्मीर में लैंवेडर की खेती और सुगंधित तेल उत्पादन के माध्यम से ‘बैंगनी क्रांति’ में मिसाल कायम करने वाला डोडा जिला अब ‘लैवेंडर फेस्टिवल’ का गवाह बनने जा रहा है।

केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), डॉ जितेंद्र सिंह 26 मई को बैंगनी एयर बैलून छोड़कर इस फेस्टिवल का औपचारिक उद्घाटन करेंगे।

वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के अरोमा मिशन के अंतर्गत ‘लैवेंडर फेस्टिवल’ का आयोजन सीएसआईआर की जम्मू स्थित प्रयोगशाला इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंटिग्रेटिव मेडिसन (आईआईआईएम) द्वारा किया जा रहा है। डोडा जिले के भद्रवाह में स्थित हायर सेकेंडरी स्कूल में आयोजित होने वाले ‘लैवेंडर फेस्टिवल’ में किसान, कृषि उद्यमी, सुगंधित तेल उत्पादक, स्टार्टअप उद्यमी शामिल हो रहे हैं।

इससे पहले भद्रवाह सामुदायिक केंद्र में 25 मई को आयोजित होने वाले सम्मेलन में सुगंधित तेल और औषधीय उत्पादों से जुड़े उद्यमी, अकादमिक विशेषज्ञ, और किसान अरोमा मिशन के अंतर्गत लैवेंडर की खेती, प्रसंस्करण और विपणन से जुड़ी चुनौतियों व उनके संभावित समाधान पर चर्चा करेंगे।

सीएसआईआर-आईआईआईएम का कहना है कि लैवेंडर के खेतों की सैर के साथ-साथ डिस्टलेशन इकाइयों को देखने, और लैवेंडर किसानों व उद्यमियों के अनुभव जानने के लिए यह फेस्टिवल एक अनूठा अवसर है। स्थानीय लोक कलाकारों द्वारा सांस्कृतिक प्रस्तुति इस आयोजन का एक अन्य प्रमुख आकर्षण होगा।

इस अवसर पर केंद्रीय मंत्री डॉ जितेंद्र सिंह किसानों व कृषि उद्यमियों से संवाद करेंगे। डिस्टलेशन इकाइयों, लैवेंडर नर्सरी व खेतों का दौरा करने का भी उनका कार्यक्रम निर्धारित किया गया है। उल्लेखनीय है कि सीएसआईआर-आईआईआईएम ने भारत को लैवेंडर तेल का एक प्रमुख निर्यातक बनाने का लक्ष्य रखा है। भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय का अरोमा मिशन इस दिशा में कार्य कर रहा है, और किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उनकी मदद कर रहा है।

सुगंधित पौधों की खेती एवं अरोमा इंडस्ट्री के लिए आवश्यक प्रौद्योगिकी का विकास, किसानों की बेहतर आमदनी, जीवन की गुणवत्ता में सुधार, फसलों की सुरक्षा, और बंजर भूमि के समुचित उपयोग के माध्यम से जन-सशक्तिकरण को बढ़ावा देना अरोमा मिशन के उद्देश्यों में शामिल है। इस मिशन का उद्देश्य पूरे देश में किसानों और उत्पादकों को सुगंधित उत्पादों के आसवन और मूल्य संवर्द्धन के लिए तकनीकी और ढांचागत सहायता प्रदान करना तथा सुगंधित नकदी फसलों की खेती का विस्तार करना है।

कई दशकों के वैज्ञानिक हस्तक्षेप से, सीएसआईआर-आईआईआईएम जम्मू ने लैवेंडर की एक विशिष्ट किस्म (आरआरएल-12) और कृषि प्रौद्योगिकी विकसित की है। लैवेंडर की यह किस्म कश्मीर घाटी और जम्मू संभाग के समशीतोष्ण क्षेत्रों सहित भारत के समशीतोष्ण क्षेत्र के वर्षा सिंचित क्षेत्रों में खेती के लिए अत्यधिक उपयुक्त पायी गई है।

अरोमा मिशन का दायरा लैवेंडर की खेती से लेकर इसके प्रसंस्करण और विपणन तक विस्तृत है। यह पहल भारतीय किसानों और सुगंध उद्योग को वैश्विक स्तर पर स्थापित करने के विज़न का हिस्सा है। अरोमा मिशन के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर के डोडा, उधमपुर, कठुआ, बांदीपोरा, किश्तवाड़, राजौरी, रामबन, अनंतनाग, कुपवाड़ा और पुलवामा जैसे जिलों में किसानों को लैवेंडर की खेती, प्रसंस्करण, मूल्यवर्द्धन और विपणन से जुड़ी सहायता के साथ-साथ गुणवत्तापूर्ण रोपण सामग्री और एक संपूर्ण प्रौद्योगिकी पैकेज उपलब्ध कराया जा रहा है।

किसानों को उनकी उपज के प्रसंस्करण में सहायता के लिए, सीएसआईआर-आईआईआईएम ने सीएसआईआर-अरोमा मिशन के तहत जम्मू-कश्मीर में विभिन्न स्थानों पर 50 आसवन इकाइयां (45 स्थायी एवं 05 मोबाइल) स्थापित की हैं। लैवेंडर की खेती ने जम्मू-कश्मीर के दूरदराज के इलाकों में लगभग 5000 किसानों और युवा उद्यमियों को रोजगार दिया है। सीएसआईआर-आईआईआईएम के अनुसार जम्मू-कश्मीर में 1000 से अधिक किसान परिवार वर्तमान में प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में लैवेंडर की खेती कर रहे हैं। इस पहल से महिला सशक्तीकरण को भी बल मिल रहा है। कई युवा महिला उद्यमियों ने लैवेंडर के तेल, हाइड्रोसोल और फूलों के मूल्यवर्द्धन के माध्यम से छोटे पैमाने पर व्यवसाय शुरू किये हैं।

अरोमा मिशन के अंतर्गत सीएसआईआर-आईआईआईएम ने अब तक कई कौशल विकास कार्यक्रम आयोजित किये हैं, और लैवेंडर की खेती, प्रसंस्करण, मूल्यवर्धन और विपणन पर जम्मू-कश्मीर के 2500 से अधिक किसानों और युवा उद्यमियों को प्रशिक्षित किया है। (इंडिया साइंस वायर

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