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इनसे सीखिए सहफसली खेती के फायदे, मटर के साथ करते हैं कद्दू की खेती

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बाराबंकी। क्या कभी आपने हरी मटर और कद्दू की सहफसली खेती के बारे में सुना अगर नहीं तो हम बताते हैं आप भी हरी मटर के साथ कद्दू की सहफसली खेती करके कम लागत में अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। ये बेहद कम लागत में सहफसली खेती आपके लिए साबित हो सकती है

हरी मटर की खेती देश के उत्तर प्रदेश, हरियाणा, महाराष्ट्र, बिहार, पश्चिम बंगाल जैसे प्रदेशों में की जाती है। उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद, मेरठ, गोरखपुर, आगरा और बाराबंकी जिले बड़े पैमाने पर की जाती है।

बाराबंकी जिला मुख्यालय से 38 किलोमीटर उत्तर दिशा में तहसील फतेहपुर के रहने वाले ननकऊ राजपूत हरी मटर के साथ कद्दू की सहफसली खेती करते हैं। ननकऊ राजपूत पढ़े लिखे तो नहीं है पर कद्दू और हरी मटर की सहफसली खेती के गणित को समझाते हुए बताते हैं, “हरी मटर की खेती अक्टूबर मध्य और नवंबर के प्रथम सप्ताह में हम सब कर देते हैं। पिछले कई वर्षों से हम मटर की खेती करते आ रहे हैं, लेकिन कई बार बेमौसम बरसात हो जाने के कारण हमें घाटा हो जाता था। फिर हमने मटर के साथ कद्दू की फसल भी लेना शुरू किया, जिससे मुझे काफी अच्छा मुनाफा होने लगा और अब हर वर्ष हम हरी मटर के साथ कद्दू की सहफसली खेती करते हैं।


हरी मटर की खेती मे 12 फीट के अंतराल पर एक नाली बनाते हैं, जिसके बीच मे कद्दू की बुवाई करते हैं। हरी मटर के साथ ही हम कद्दू की भी बुवाई कर देते हैं। मटर हमारी लगभग फरवरी में खत्म हो जाती है दिसंबर और जनवरी में अधिक ठंड पड़ने के कारण कद्दू के पौधे विकास नहीं करते हैं। जिससे कद्दू के पौधों से मटर को होने वाला नुकसान भी नहीं होता है और मार्च आते-आते मटर खत्म हो जाती है मार्च में तापमान में कुछ गर्मी आने लगती है और कद्दू का पौधा बढ़ने लगता है।

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आगे बताते हैं, “मटर खत्म होने के बाद कद्दू के पौधे के दोनों तरफ मिट्टी चढ़ा देते हैं, ताकि पानी लगाने में आसानी रहे मटर खत्म होने के लगभग 20 से 25 दिन के अंतराल पर कद्दू का भी उत्पादन शुरू हो जाता है कद्दू और हरी मटर की सहफसली खेती में बहुत कम ही लागत आती है, जिससे हमें अच्छा मुनाफा होता है।


आगे कहते हैं, “हम पिछले कई वर्षों से लगभग एक एकड़ क्षेत्रफल में मटर की खेती करते आ रहे थे। पिछले वर्ष से ही हमने कद्दू और हरी मटर कि सहफसली खेती चालू की है। एक एकड़ क्षेत्रफल में हरी मटर की फलियां लगभग 70 से 80 कुंतल तक का उत्पादन हो जाता है जबकि कद्दू एक एकड़ में ढाई सौ से 300 कुंतल तक का उत्पादन होता है सहफसली खेती करने के लिए मटर के हमें उन बीजों को चुनाव करना होता है जो जल्दी तैयार हो जाए इसलिए हम अगेती बीज ही बोते हैं ये मटर 65 से 70 दिन में तैयार हो जाती है।

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लागत और बचत के बारे में बताते है, “एक एकड़ में लगभग 15 से 20 हजार की लागत आती है। हरी मटर शुरू में दो हजार रुपए प्रति कुंतल से लेकर फरवरी जब फसल खत्म के कगार पर होती है सात-आठ सौ रुपए कुंतल तक बिक जाती है। इसी तरह कद्दू की फसल भी मार्च के अंतिम सप्ताह और अगस्त के प्रारंभ मे अगर फसल का उत्पादन शुरू हो जाता है तो एक हजार से 15 सौ रुपए प्रति कुंतल तक का भाव मिलता है। मई के लास्ट जून के प्रारंभ होने पर फसल खत्म होने लगती है और कद्दू का भाव भी 300 से 400 रुपए प्रति कुंतल तक आ जाता है कुल मिलाकर अगर शुद्ध मुनाफे की बात की जाए तो ढाई से तीन लाख तक का शुद्ध मुनाफा हो जाता है।” 

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