मानव शरीर की तरह पौधों या फसल को भी पोषत तत्वों की जरूरत होती है। जो उनके उगने, बढ़वार और फिर फल देने में मददगार साबित होते हैं। वैज्ञानिकों के शोध के अनुसार पौधों के लिए 17 पोषक तत्व चाहिए होते हैं। इन पोषक तत्वों में सबसे अपने-अपने कार्य हैं।
ज्यादातर किसान खेतों में डीएपी, एनपीके, यूरिया, पोटाश आदि डालते हैं। कुछ जागरूक किसान जिंक और दूसरे माइक्रोन्यूटेट (सूक्ष्म पोषकत्तवों) का इस्तेमाल करते हैं। इनमें से कई पोषक तत्व गोबर की खाद, हरी खाद या फिर केंचुआ खाद में होते हैं। जबकि कुछ को अलग से डालना पड़ता है। जो किसान सिर्फ नाइट्रोजन (यूरिया), फॉस्फोरस और पोटाश ही देते हैं उन्हें नुकसान उठाना पड़ जाता है। इसलिए किसानों को संतुलित पोषक तत्व देने चाहिए। कई बार पत्तियों की रंगत और पौधे खुद बताते हैं कि उनमें किस पोषक तत्व की कमी है।
राजस्थान में उदयपुर के कृषि विज्ञान केंद्र वैज्ञानिक डॉ. दीपक जैन कहते हैं ” किसान अगर पत्तियों की रंगत पर नजर रखे तो वो आसानी से समझ सकता है कि उनमें किस पोषत तत्व की कमी है। या कौन सा रोग लगा है।” मक्के का उदाहरण देते हुए वो एक चार्ट पर 8 पत्तियों की रंगत दिखाते हुए बताते हैं “अगर पत्तियां लाल और बैंगनी हो रही हैं तो इसका मतलब फॉस्फोरस की कमी है। पत्तियां किनारे से पीली पड़ रहीं मतलब कि पोटाश की कमी है और अगर बीच में पीलापन है तो पत्तियां नाइट्रोजन, जबकि धारियां नजर आने पर मैग्नीशियम की कमी के लक्षण हैं।”
अपनी बात को सरल करते हुए डॉ. जैन कहते हैं “आखिर में हर पत्ती को पीला पड़ना है लेकिन रोग और पोषक तत्व की कमी के लक्षण कुछ नई तो कुछ पुरानी पत्तियों में देखे जा सकते हैं। जैसे सिंचाई की जरूरत होने पर पत्तियां सिकुड़ने लगती हैं तो झुलसा रोग लगने या फिर किसी कीटनाशक या फफूंदनाशक के ज्यादा होने पर भी उनमें धब्बेदार पीला पन आ सकता है।”
ये भी पढ़ें- सलाह: बीज शोधन से आलू को झुलसा रोग से बचाएं किसान
उदयपुर के कृषि वैज्ञानिक डॉ. सुरेश जैन किसानों को सलाह देते हैं कि बिना पूरी जानकारी के किसानों को कभी कीटनाशकों की दुकान पर नहीं जाना चाहिए। वो कहते हैं “किसान जब किसी दवा की दुकान पर जाकर ये कहता है कि उसकी फसल अच्छी नहीं है तो दुकानदार कोई न कोई कीटनाशक, खरपतावार नाशक या माइक्रोन्यूटेट दे देता है। यानि वो कुछ न कुछ पैसे खर्च करा लेता है। लेकिन उससे फसल को फायदा हो ये जरूरी नहीं, इसलिए पहले फसल में क्या कमी ये समझना चाहिए या किसी जानकार से मिलकर बात करनी चाहिए।” देश के हर जिले और ब्लॉक में कृषि प्रसार के अधिकारी, कृषि रक्षा पदाधिकारी तैनात किए गए हैं। इसके साथ ही जिलों में कृषि विज्ञान केंद्र भी होते हैं, जहां किसान अपनी समस्या के बारे में पूछ सकता है। सरकार ने किसानों के कई हेल्पलाइन नंबर भी जारी किए हैं। डिजिटल युग में कई ऐप और किसान संचार जैसे माध्यमों भी किसान कृषि वैज्ञानिक और जानकारों से सलाह ले सकते हैं।
कितने तरह के होते हैं पोषक तत्व
किसी भी उपजाऊ जमीन या फसल के लिए सबसे जरूरी होता है कार्बन तत्व (जीवाश्म) होते हैं। इसके अलावा नाइट्रोजन, पोटाश, फास्फोरस, लौह तत्व, तांबा, जस्ता, मैंग्नीज, बोरान, मालिब्डेनम, क्लोरीन और निकिल की भी पौधों को जरूरत होती है। जानिए किस पोषक तत्व का क्या कार्य होता है।
नाइट्रोजन
नाइट्रोजन या नत्रजन से प्रोटीन बनती है जो जीव द्रव्य का अभिन्न अंग है। ये पत्तियों को हरा रंग देने और उनके विकास में सहायक हैं। अनाज और चारे वाली फसलों में प्रोटीन की मात्रा को बढ़ाता है। दाना बनने में भी मदद करता है। नाइट्रोजन की कमी से पौधे हल्के रंग के दिखाई देने लगते हैं और निचली पत्तियां झड़ने लगती हैं, जिसे क्लोरोसिस भी कहते हैं। पौधे की बढ़वार का रुकना, कल्ले कम बनना, फूलों का कम आना। फल वाले वृक्षों का गिरना। पौधों का बौना दिखाई पड़ना। फसल का जल्दी पक जाना।
फॉस्फोरस न्यूक्लिक अम्ल, फास्फोलिपिड्स व फाइटीन के निर्माण में सहायक है। प्रकाश संश्लेषण में सहायक है। यह कोशा की झिल्ली, क्लोरोप्लास्ट तथा माइटोकान्ड्रिया का मुख्य अवयव है। फास्फोरस मिलने से पौधों में बीज स्वस्थ पैदा होता है तथा बीजों का भार बढ़ना, पौधों में रोग व कीटरोधकता बढ़ती है। फास्फोरस के प्रयोग से जड़ें तेजी से विकसित तथा मजबूत होती हैं। पौधों में खड़े रहने की क्षमता बढ़ती है। इससे फल जल्दी आते हैं, फल जल्दीबनते है व दाने जल्दी पकते हैं। यह नत्रजन के उपयोग में सहायक है तथा फलीदार पौधों में इसकी उपस्थिति से जड़ों की ग्रंथियों का विकास अच्छा होता है।
फॉस्फोरस की कमी के लक्षण
फॉस्फोरस कम होने पर पौधे छोटे रह जाते हैं, पत्तियों का रंग हल्का बैगनी या भूरा हो जाता है। फास्फोरस गतिशील होने के कारण पहले ये लक्षण पुरानी (निचली) पत्तियों पर दिखते हैं। दाल वाली फसलों में पत्तियां नीले हरे रंग की हो जाती हैं। पौधों की जड़ों की वृद्धि व विकास बहुत कम होता है कभी-कभी जड़े सूख भी जाती हैं। अधिक कमी में तने का गहरा पीला पड़ना, फल व बीज का निर्माण सही न होना। इसकी कमी से आलू की पत्तियां प्याले के आकार की, दलहनी फसलों की पत्तियाँ नीले रंग की तथा चौड़ी पत्ती वाले पौधे में पत्तियों का आकार छोटा रह जाता है।
ये भी पढ़ें- फेरोमोन ट्रैप का इस्तेमाल कर करिए कीट और कीटनाशकों की छुट्टी
पोटैशियम
पोटैशियम जड़ों को मजबूत बनाता है एवं सूखने से बचाता है। फसल में कीट व रोग प्रतिरोधकता बढ़ाता है। पौधे को गिरने से बचाता है। स्टार्च व शक्कर के संचरण में मदद करता है। पौधों में प्रोटीन के निर्माण में सहायक है। अनाज के दानों में चमक पैदा करता है। फसलों की गुणवत्ता में वृद्धि करता है। आलू व अन्य सब्जियों के स्वाद में वृद्धि करता है। सब्जियों के पकने के गुण को सुधारता है। मृदा में नत्रजन के कुप्रभाव को दूर करता है।
पोटैशियम कमी के लक्षण
पोटैशियम की कमी से पत्तियां भूरी व धब्बेदार हो जाती हैं तथा समय से पहले गिर जाती हैं। पत्तियों के किनारे व सिरे झुलसे दिखाई पड़ते हैं। इसी कमी से मक्का के भुट्टे छोटे, नुकीले तथा किनारों पर दाने कम पड़ते हैं। आलू में कन्द छोटे तथा जड़ों का विकास कम हो जाता है पौधों में प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया कम तथा श्वसन की क्रिया अधिक होती है।
कैल्सियम
कैल्सियम दलहनी फसलों में प्रोटीन निर्माण के लिए बहुत आवश्यक है। यह तत्व तम्बाकू, आलू व मूँगफली के लिए अधिक लाभकारी है। यह पौधों में कार्बोहाइड्रेट संचालन में सहायक है। कैल्सियम-कमी के लक्षण नई पत्तियों के किनारों का मुड़ व सिकुड़ जाना। आगे की कलिका का सूख जाना। जड़ों का विकास कम तथा जड़ों पर ग्रन्थियों की संख्या में काफी कमी होना। फल व कलियों का अपरिपक्व दशा में मुरझाना।
मैग्नीशियम
मैग्नीशियम, क्रोमोसोम, पोलीराइबोसोम तथा क्लोरोफिल का अनिवार्य अंग है। पौधों के अन्दर कार्बोहाइड्रेट संचालन में सहायक है। पौधों में प्रोटीन, विटामिन, कार्बोहाइड्रेट तथा वसा के निर्माण मे सहायक है। चारे की फसलों के लिए महत्वपूर्ण है। मैग्नीशियम की कमी होने पर पत्तियां आकार में छोटी तथा ऊपर की ओर मुड़ी हुई दिखाई पड़ती हैं। दलहनी फसलों में पत्तियों की मुख्य नसों के बीच की जगह का पीला पड़ना।ये भी पढ़ें- प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में कई बड़े बदलाव, जानिए आपके लिए क्या है खास
सल्फर
सल्फर यानि गंधक अमीनो अम्ल, प्रोटीन (सिसटीन व मैथिओनिन), वसा, तेल एव विटामिन्स के निर्माण में सहायक है। विटामिन्स (थाइमीन व बायोटिन), ग्लूटेथियान एवं एन्जाइम 3ए22 के निर्माण में भी सहायक है। तिलहनी फसलों में तेल की प्रतिशत मात्रा बढ़ाता है। यह सरसों, प्याज व लहसुन की फसल के लिए जरूरी है। तम्बाकू की पैदावार 15-30 प्रतिशत तक बढ़ती है। गन्धक कमी की कमी होने पर नई पत्तियों का पीला पड़ना व बाद में सफेद हो जाती हैं। तने छोटे एवं पीले पड़ जाते हैं। मक्का, कपास, तोरिया, टमाटर के तने लाल हो जाते हैं। ब्रेसिका जाति (सरसों) की पत्तियों का प्यालेनुमा हो जाना।
लोहा
आयरन साइटोक्रोम्स, फैरीडोक्सीन व हीमोग्लोबिन का मुख्य अवयव है। क्लोरोफिल एवं प्रोटीन निर्माण में सहायक है। यह पौधों की कोशिकाओं में विभिन्न ऑक्सीकरण-अवकरण क्रियाओं मे उत्प्रेरक का कार्य करता है। श्वसन क्रिया में आक्सीजन का वाहक है। लोहा-कमी के लक्षण पत्तियों के किनारों व नसों का अधिक समय तक हरा बना रहना। नई कलिकाओं की मृत्यु को जाना तथा तनों का छोटा रह जाना। धान में कमी से क्लोरोफिल रहित पौधा होना, पैधे की वृद्धि का रूकना।
ये भी पढ़ें- प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में कई बड़े बदलाव, जानिए आपके लिए क्या है खास
जस्ता (जिंक)
जस्ता (जिंक) कार्य कैरोटीन व प्रोटीन संश्लेषण में सहायक है। हार्मोन्स के जैविक संश्लेषण में सहायक है। यह एन्जाइम (जैसे-सिस्टीन, लेसीथिनेज, इनोलेज, डाइसल्फाइडेज आदि) की क्रियाशीलता बढ़ाने में सहायक है। क्लोरोफिल निर्माण में उत्प्रेरक का कार्य करता है। जस्ता की कमी होने पर पत्तियों का आकार छोटा, मुड़ी हुई, नसों मे निक्रोसिस व नसों के बीच पीली धारियों का दिखाई पड़ती हैं। गेहूं में ऊपरी 3-4 पत्तियों का पीला पड़ना। फलों का आकार छोटा व बीज की पैदावार का कम होना। मक्का एवं ज्वार के पौधों में बिलकुल ऊपरी पत्तियाँ सफेद हो जाती हैं। धान में जिंक की कमी से खैरा रोग हो जाता है। लाल, भूरे रंग के धब्बे दिखते हैं।
ताँबा (कॉपर)
यह इंडोल एसीटिक अम्ल वृद्धिकारक हार्मोन के संश्लेषण में सहायक है। ऑक्सीकरण-अवकरण क्रिया को नियमितता प्रदान करता है। अनेक एन्जाइमों की क्रियाशीलता बढ़ाता है। कवक रोगों के नियंत्रण में सहायक है। ताँबे की कमी से फलों के अंदर रस का निर्माण कम होता है। नींबू जाति के फलों में लाल-भूरे धब्बे अनियमित आकार के दिखाई देते हैं। अधिक कमी के कारण अनाज एवं दाल वाली फसलों में रिक्लेमेशन नामक बीमारी हो जाती है।
जलवायु परिवर्तन: जैविक कीटनाशक और प्राकृतिक उपाय ही किसानों का ‘ब्रह्मास्त्र’
बोरान
यह पौधों में शर्करा के संचालन मे सहायक है। परागण एवं प्रजनन क्रियायों में सहायक है। दलहनी फसलों की जड़ ग्रन्थियों के विकास में सहायक है। यह पौधों में कैल्शियम एवं पोटैशियम के अनुपात को नियंत्रित करता है। यह डीएनए, आरएनए, एटीपी पेक्टिन व प्रोटीन के संश्लेषण में सहायक है।
मैंगनीज
मैंगनीज क्लोरोफिल, कार्बोहाइड्रेट व मैंगनीज नाइट्रेट के स्वागीकरण में सहायक है। पौधों में ऑक्सीकरण-अवकरण क्रियाओं में उत्प्रेरक का कार्य करता है। प्रकाश संश्लेषण में सहायक है। मैंगनीज-कमी के लक्षण पौधों की पत्तियों पर मृत उतको के धब्बे दिखाई पड़ते हैं। अनाज की फसलों में पत्तियाँ भूरे रंग की व पारदर्शी होती है तथा बाद मे उसमे ऊतक गलन रोग पैदा होता है। जई में भूरी चित्ती रोग, गन्ने का अगमारी रोग तथा मटर का पैंक चित्ती रोग उत्पन्न होते हैं।
क्लोरीन
यह पर्णहरिम के निर्माण में सहायक है। पोधों में रसाकर्षण दाब को बढ़ाता है। पौधों की पंक्तियों में पानी रोकने की क्षमता को बढ़ाता है। क्लोरीन की कमी से गमलों में क्लोरीन की कमी से पत्तियों में विल्ट के लक्षण दिखाई पड़ते हैं। कुछ पौधों की पत्तियों में ब्रोन्जिंग तथा नेक्रोसिस रचनायें पाई जाती हैं। पत्ता गोभी के पत्ते मुड़ जाते हैं तथा बरसीम की पत्तियाँ मोटी व छोटी दिखाई पड़ती हैं।
ये भी पढ़ें- धान की फसल में बालियां बनते समय किसान को रखना चाहिए इन बातों का ध्यान
मालिब्डेनम
यह पौधों में एन्जाइम नाइट्रेट रिडक्टेज एवंनाइट्रोजिनेज का मुख्य भाग है। यह दलहनी फसलों में नत्रजन स्थिरीकरण, नाइट्रेट एसीमिलेशन व कार्बोहाइड्रेट मेटाबालिज्म क्रियायों में सहायक है। पौधों में विटामिन-सी व शर्करा के संश्लेषण में सहायक है। मालिब्डेनम की कमी से सरसों जाति के पौधों व दलहनी फसलों में पत्तियों का रंग पीला हरा या पीला हो जाता है तथा इसपर नारंगी रंग का चितकबरापन दिखाई पड़ता है। टमाटर की निचली पत्तियों के किनारे मुड़ जाते हैं तथा बाद में मोल्टिंग व नेक्रोसिस रचनाएं बन जाती हैं। इसकी कमी से फूल गोभी में व्हिपटेल एवं मूली मे प्याले की तरह रचनायें बन जाती हैं। नींबू जाति के पौधों में मॉलिब्डेनम की कमी से पत्तियों मे पीला धब्बा रोग लगता है।