बिहार के साथ ही सात दूसरे राज्यों में भी लीची की खेती को मिलेगा बढ़ावा

राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र, मुजफ्फरपुर देश के सात राज्यों में लीची की नई किस्मों की खेती शुरू करने की तैयारी में है। अब इन राज्यों में किसान नई किस्मों की खेती करेंगे।

Divendra SinghDivendra Singh   28 Jun 2021 12:40 PM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
बिहार के साथ ही सात दूसरे राज्यों में भी लीची की खेती को मिलेगा बढ़ावा

अभी बिहार के मुजफ्फरपुर में लीची की सबसे अधिक पैदावार होती है। फोटो: पिक्साबे

जल्द ही देश के अलग-अलग हिस्सों में लीची की खेती होने लगेगी, इससे वहां के किसानों और आम लोगों दोनों को फायदा होगा।

राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र, मुजफ्फरपुर लीची की तीन किस्मों गंडकी योगिता, गंडकी लालिम और गंडकी संपदा को देश के सात राज्यों में भेजने की योजना बना रहा है। इन तीनों किस्मों को मुजफ्फरपुर में ही विकसित किया गया है।

राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के निदेशक डॉ. शेषधर पांडेय गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "अखिल भारतीय समन्वित फल अनुसंधान परियोजना के तहत हम अलग-अलग राज्यों में लीची के पौधे भेजने का प्लान बना रहे हैं। जैसे ही मंजूरी मिल जाती है अलग-अलग राज्यों के अपने केंद्रों पर पौधे भेज देंगे।

तीन किस्मों गंडकी योगिता, गंडकी लालिम और गंडकी संपदा के पौधे पश्चिम बंगाल, नॉर्थ ईस्ट, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, झारखंड और छत्तीसगढ़ में भेजे जाएंगे। मुजफ्फरपुर में इन किस्मों के 500-500 पौधे तैयार किए जा रहे हैं।

फोटो: पिक्साबे

भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान के अनुसार, इस समय पूरे देश में लगभग 83 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में लीची की खेती होती है। विश्व में चीन के बाद सबसे अधिक लीची का उत्पादन भारत में ही होता है। इसमें बिहार में 33-35 हज़ार हेक्टेयर में लीची के बाग हैं। भारत में पैदा होने वाली लीची का 40 फीसदी उत्पादन बिहार में ही होता है। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे प्रदेशों में भी लीची की खेती होती है। अकेले मुजफ्फरपुर में 11 हजार हेक्टेयर में लीची के बाग हैं।

पंजाब कृषि विश्वविद्यालय लुधियाना, पंजाब, बिधान चंद्र कृषि विश्वविद्यालय मोहनपुर, पश्चिम बंगाल, गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, पंतनगर, उत्तराखंड, आरसीइआर रिसर्च सेंटर नामकुम रांची, झारखंड, डॉ. यशवंत सिंह परमार बागवानी और वानिकी विश्वविद्यालय सोलन, हिमाचल प्रदेश और भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, कर्नाटक में इन तीन किस्मों के पौधे भेजने का योजना है।

डॉ. शेषधर पांडेय आगे कहते हैं, "इन राज्यों में पहले दूसरी किस्मों की लीची की खेती हो रही है, अगर इस परियोजना की अनुमति मिल जाती है तो सभी राज्यों में लीची के पौधे पर परीक्षण किया जाएगा कि कहां पर कैसी पैदावार है और फलों की कैसी गुणवत्ता है। अगर वहां पर इनका अच्छा उत्पादन मिलता है तो वहां के किसानों को आसानी से उनके राज्यों में पौधे मिल जाएंगे।"

राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र, मुजफ्फरपुर के पूर्व निदेशक डॉ. विशाल नाथ इन तीनों किस्मों की खासियतें बताते हैं, "साल 2017 में हमने इन तीनों को विकसित किया था, अभी तक किसान शाही, चाइना, रोज सेंटेड, पूर्बी जैसी किस्मों की खेती कर रहे हैं, अब किसानों को इन किस्मों से भी परिचय कराया जा रहा है।

क्या है इन किस्मों की खासियतें

गंडकी संपदा किस्म, फोटो: लीची अनुसंधान केंद्र

गंडकी संपदा

इस किस्में में मध्य जून में फल तैयार होते हैं। बड़े आकार के फलों का वजन लगभग 35-42 ग्राम तक होता है। पल्प रिकवरी 80 से 85 प्रतिशत होती है। उत्पादन 120-140 किलो प्रति पेड़ मिलता है।

गंडकी योगिता किस्म, फोटो: लीची अनुसंधान केंद्र

गंडकी योगिता

इसके पेड़ बौने होते हैं, मध्य जुलाई में इसके फल पकने लगते हैं। इसमें पल्प रिकवरी 70-75 प्रतिशत तक होती है और उत्पादन प्रति 70-80 किलो प्रति पेड़ मिलता है।

गंडकी लालिमा, फोटो: लीची अनुसंधान केंद्र

गंडकी लालिमा

ये देर से तैयार होने वाली किस्म है, जून के दूसरे सप्ताह में फल पकने लगते हैं। इसके फल का वजन 28-32 ग्राम होता है। 60 प्रतिशत से ज्यादा पल्प रिकवरी होती है और उत्पादन 130-140 किलो प्रति पेड़ मिलता है।

#litchi #Muzaffarpur litchi National Research Centre on Litchi #story 

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.