Gaon Connection Logo

आम का पेड़ सूख रहा है तो न करें नज़र अंदाज़, इस उपाय से होगा ठीक

अगर आपके बगीचे में लगे आम की डालियाँ सूखने लगी हैं तो इसे बिल्कुल भी अनदेखा न करें; ये समस्या डाईबैग के लक्षण हो सकते हैं, समय रहते नियंत्रण किया जा सकता है।
#mango

आम में शीर्ष मरण (डाइबैक) एक ऐसी स्थिति है, जिसमें पेड़ की डालियाँ ऊपर से नीचे की तरफ सूखना शुरू हो जाती है, जिसके कारण आम के पेड़ पूरी तरह से सूख जाते हैं।

फंगल संक्रमण, कीट संक्रमण, पोषण संबंधी कमी, पर्यावरणीय तनाव जैसे कारणों के कारण ऐसा होता है। डाइबैक को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए, ज़रूरी कृषि कार्य, रासायनिक और जैविक नियंत्रण रणनीतियों का समायोजन ज़रूरी है।

आम के पेड़ों में शीर्ष मरण (डाइबैक) होने के प्रमुख कारण

फंगल संक्रमण

रोगजनक कवक, जैसे कि कोलेटोट्राइकम ग्लियोस्पोरियोइड्स, आम के पेड़ों पर आक्रमण कर सकते हैं, जिससे डाईबैक होता है। इसमें सबसे पहले पत्तियों पर गहरे चॉकलेटी रंग के धब्बे बनते हैं, जो अनुकूल वातावरण मिलने पर ये धब्बे बड़े धब्बों में बदल जाते हैं, जिससे पत्तियाँ पीली पड़ जाती हैं और झड़ जाती हैं। ऊपर से नीचे की तरफ सूखना शुरु होता है और धीरे धीरे पूरा पेड़ सूख जाता है।

कीट संक्रमण

तना बेधक जैसे कीट शाखाओं को कमज़ोर करने में मदद करते हैं, जिससे शाखाएँ मरने लगती हैं।

पोषण संबंधी कमी

ज़रूरी पोषक तत्वों, विशेष रूप से पोटेशियम और मैग्नीशियम की कमी, आम के पेड़ों को मरने के प्रति अधिक संवेदनशील बनाती है।

पर्यावरणीय तनाव

प्रतिकूल पर्यावरणीय स्थितियाँ, जैसे सूखा या अत्यधिक तापमान, मृत्यु को बढ़ा सकती हैं।

गलत कृषि कार्य

अपर्याप्त कटाई छंटाई, सिंचाई, या खराब मिट्टी प्रबंधन डाईबैक के विकास में योगदान करता है।

बीमारी से बचाव का क्या है उपाय?

निम्नलिखित निवारक उपाय करके शीर्ष मरण रोग को प्रबंधित करने में सहायता मिलती है जैसे..

उचित कटाई छंटाई

नियमित और सही छंटाई एक संतुलित छत्र बनाए रखने में मदद करती है, जिससे मरने का ख़तरा कम हो जाता है।

उचित सिंचाई

लगातार और पर्याप्त पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करने से तनाव और निर्जलीकरण को रोकने में मदद मिलती है।

मृदा प्रबंधन

उचित मृदा पोषण और पीएच प्रबंधन को लागू करने से एक स्वस्थ पेड़ को बढ़ावा मिलता है।

मल्चिंग

पेड़ के आधार के चारों ओर मल्चिंग करने से नमी बनाए रखने में मदद मिलती है और मिट्टी का तापमान नियंत्रित रहता है।

रासायनिक नियंत्रण

शीर्ष मरण रोग को समय पर प्रबंधित नही किया गया तो पेड़ कुछ दिन के बाद मर जाएगा। उसे प्रबंधित करने के लिए कुछ ज़रूरी उपाय करना चाहिए।

कवकनाशी छिड़काव (स्प्रे)

कवकनाशी लगाने से डाइबैक से जुड़े फंगल संक्रमण को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है। रोगग्रस्त हिस्से को चाकू या सिकेडीयर से काटने के बाद उसी दिन साफ़ 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए, दस दिन के बाद ब्लाइटॉक्स 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए। रोग की उग्रता में कमी नहीं होने पर सभी घोल से एक बार फिर छिड़काव करना चाहिए।

पेड़ के चारों तरफ, ज़मीन की सतह से 5-5.30 फीट की ऊंचाई तक बोर्डों पेस्ट से पुताई करनी चाहिए। सवाल यह उठता है कि बोर्डों पेस्ट बनाते कैसे हैं। अगर बोर्डों पेस्ट से साल में दो बार प्रथम जुलाई- अगस्त और दुबारा फरवरी- मार्च में पुताई कर दी जाए तो अधिकांश फफूंद जनित बीमारियों से बाग को बचा लेते हैं। इस रोग के साथ साथ शीर्ष मरण, आम के छिलकों का फटना इत्यादि विभिन्न फफूंद जनित बीमारियों से आम को बचाया जा सकता है। इसका प्रयोग सभी फल के पेड़ों पर किया जाना चाहिए।

बोर्डों पेस्ट बनाने के लिए ज़रूरी सामान

कॉपर सल्फेट, बिना बुझा चुना (कैल्शियम ऑक्साइड ), जूट बैग, मलमल कपड़े की छलनी या बारीक छलनी, मिट्टी/ प्लास्टिक/ लकड़ी की टंकी और लकड़ी की छड़ी।

1. कॉपर सल्फेट 1 किलो ग्राम

2. बिना बुझा चूना -1 किलो

3. पानी 10 लीटर

बनाने की विधि

पानी की आधी मात्रा में कॉपर सल्फेट, बुझा चूना, शेष आधे पानी में मिलाएँ इस दौरान लकड़ी की छड़ी से लगातार हिलाते रहें।

ध्यान रखने योग्य बातें

• किसानों को बोर्डो पेस्ट का घोल तैयार करने के तुरंत बाद ही इसका उपयोग बगीचे में कर लेना चाहिए।

• कॉपर सल्फेट का घोल तैयार करते समय किसानों लोहे/गैल्वेनाइज्ड बर्तन को काम में नहीं लेना चाहिए।

• किसानों को यह ध्यान रखना होगा कि वे बोर्डो पेस्ट को किसी अन्य रसायन या पेस्टिसाइड के साथ में इसका इस्तेमाल नहीं करें।

कीटनाशक

कीटनाशकों के लक्षित उपयोग से उन कीटों के संक्रमण को नियंत्रित किया जा सकता है जो मृत्यु में योगदान करते हैं।

पोषक तत्वों की ख़ुराक

पोषक तत्वों की कमी को दूर करने के लिए संतुलित उर्वरक प्रदान करना निवारक देखभाल के लिए महत्वपूर्ण है। अगर आप का पेड़ 10 वर्ष या 10 वर्ष से ज़्यादा है, तो उसमे 500-550 ग्राम डाइअमोनियम फॉस्फेट, 850 ग्राम यूरिया और 750 ग्राम म्यूरेट ऑफ़ पोटाश और 25 किग्रा खूब अच्छी तरह से सड़ी गोबर की खाद पौधे के चारों तरफ मुख्य तने से 2 मीटर दूर रिंग बना कर खाद और उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए।

जैविक नियंत्रण

1. प्राकृतिक शिकारी: प्राकृतिक शिकारियों की उपस्थिति को प्रोत्साहित करने से कीटों की आबादी को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।

2. लाभकारी सूक्ष्मजीव: लाभकारी सूक्ष्मजीवों का प्रयोग रोगजनक कवक को दबा सकता है।

(लेखक वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक हैं )

More Posts

मोटे अनाज की MSP पर खरीद के लिए यूपी में रजिस्ट्रेशन शुरू हो गया है, जानिए क्या है इसका तरीका?  

उत्तर प्रदेश सरकार ने मोटे अनाजों की खरीद के लिए रजिस्ट्रेशन शुरू कर दिया है। जो किसान भाई बहन मिलेट्स(श्री...

यूपी में दस कीटनाशकों के इस्तेमाल पर लगाई रोक; कहीं आप भी तो नहीं करते हैं इनका इस्तेमाल

बासमती चावल के निर्यात को बढ़ावा देने और इसे अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने...

मलेशिया में प्रवासी भारतीय सम्मेलन में किसानों की भागीदारी का क्या मायने हैं?  

प्रवासी भारतीयों के संगठन ‘गोपियो’ (ग्लोबल आर्गेनाइजेशन ऑफ़ पीपल ऑफ़ इंडियन ओरिजिन) के मंच पर जहाँ देश के आर्थिक विकास...