औषधीय फसलें बना सकती हैं आपकी अनुपजाऊ जमीन को उपजाऊ 

खस

किसानों को औषधीय फसलों की खेती कर के लाभ तो हो ही रहा है, साथ ही कुशा प्रजाति की इन फसलों को लगाने से उनकी अनुपजाऊ बंजर जमीन भी उपजाऊ हो रही है।

प्रतापगढ़ जिले में अब तक कई एकड़ जमीन खस की खेती से उपजाऊ हो गई है। पट्टी ब्लॉक के धौरहरा गाँव में पिछले कई वर्षों से बंजर पड़े खेतों में अब औषधीय फसल खस की खेती हो रही है। धौरहरा गाँव के किसान रमेश यादव (45 वर्ष) कहते हैं, “हमारे गाँव में ऐसी बहुत सी जमीन है, जिसका कोई उपयोग नहीं है, इतनी ज्यादा ऊसर है कि यहां पर कुछ भी नहीं हो पाता था, लेकिन अब खस अच्छी तैयार हो गयी है, इससे अच्छा फायदा भी हुआ है।”

कृषि क्षेत्र में काम करने वाली गैर सरकारी संस्था तरुण चेतना ने पट्टी ब्लॉक के कई गाँवों के दर्जनों किसानों को खस के पौधे दिए थे, जिनसे वो अपनी ऊसर खेत को उपजाऊ बना रहे हैं। ये संस्था किसानों को पौध उपलब्ध कराने के साथ ही उन्हें बाजार भी उपलब्ध कराती है, ताकि किसानों को तैयार खस बेचने में कोई परेशानी न हो।

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धौरहरा गाँव के किसान राम आधार शुक्ला (55 वर्ष) ने भी एक बीघा में खस की फसल लगायी थी। अब तक कई बार उत्पादन भी ले चुके हैं। राम आधार कहते हैं, “ऊसर जमीन में खेती करने में बहुत मेहनत करनी पड़ी, पहले साल जब पौधे मिले तो उन्हें लगाना इतना आसान नहीं था, लेकिन दो साल में अच्छी फसल तैयार हो गई।”

उत्तर प्रदेश भूमि सुधार निगम ने ऊसर सुधार के लिए विश्व बैंक की सहायता से प्रदेश में उत्तर प्रदेश सोडिक लैंड रिक्लेमेशन तृतीय परियोजना चलायी है। परियोजना के माध्यम से प्रदेश के 29 ज़िलों में एक लाख तीस हज़ार हेक्टेयर ऊसर भूमि सुधार का लक्ष्य रखा गया है। ये पौधे ऊसर भूमि से क्षारीयता कम करके उसे उपजाऊ बनाने में मदद करते हैं।

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वर्ष 1993 में उत्तर प्रदेश में कुल 12 लाख हेक्टेअर जमीन ऊसर थी। उत्तर प्रदेश भूमि सुधार निगम द्वारा चलायी जा रही है। कई योजनाओं के बाद अभी प्रदेश में कुल चार लाख हेक्टेयर जमीन ऊसर और अनुपजाऊ है।

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उत्तर प्रदेश भूमि सुधार निगम के प्रबंधक डॉ. केबी त्रिवेदी कहते हैं, ‘‘ऊसरीली ज़मीन में हमेशा फसल लगी होनी चाहिए अगर जमीन खाली होती है तो मिट्टी की क्षारीयता बढ़ जाती है और खेत किसी काम के नहीं रहते हैं। नींबू घास और पामारोजा, खस जैसी फसलें कुशा प्रजाति की फसलें आसानी से ऊसर जमीन में भी तैयार हो जाती हैं और ये फसलें चार-पांच साल तक खेत में लगी रहती हैं, जिससे मिट्टी का पीएच सामान्य हो जाता है। इससे अनुपजाऊ खेत भी उपजाऊ बन जाते हैं।”

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