लखनऊ। सर्दी के मौसम में मशरूम हर जगह उपलब्ध होता है, लेकिन गर्मी और बरसात के मौसम में पहले यह बाजार में मिलता ही नही, और मिलता भी है तो बहुत महंगा। लोगों को गर्मी के मौसम में आसानी से मशरूम मुहैया कराने के लिए केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान, रहमानखेड़ा ने ग्रीष्म कालीन दूधिया मशरुम को रेडी टू फ्रूट मशरूम बैग के माध्यम से घर-घर उगवाने का प्रयास प्रारम्भ किया है।
केंद्रीय उपोषण बागवानी संसथान निदेशक डॉक्टर शैलेंद्र राजन ने बाताया, ” पूरे वर्ष मशरूम की खेती से रोजगार उपलब्ध कराने को ध्यान में रखते हुये संस्थान द्वारा मशरूम की बटन, ओयस्टर तथा दूधिया किस्मों को अपनाने पर जोर दिया जा रहा है। मशरूम उत्पादन प्रणाली के अंतर्गत किसान बटन मशरूम को दिसंबर से फरवरी की बीच बेच सकते हैं जबकि ओयस्टर को अक्टूबर से अप्रैल के प्रथम पखवाड़े के मध्य। दूधिया मशरूम की बिक्री अप्रैल के दूसरे पखवाड़े से मध्य अक्टूबर तक की जा सकती है। दूधिया और आयस्टर मशरूम गेहूँ के भूसे पर उगाये जाते हैं। भूसे का उपचार गर्म पानी या रसायनों (कार्बेन्डाजिम तथा फॉर्मेलिन) द्वारा करके 60-65 प्रतिशत नमी पर बिजाई करते हैं। इनको उगने में 20 से 25 दिन का समय लगता है तथा उत्पादन 30 से 35 दिन के बाद प्रारंभ हो जाता है जो कि अगले 40 से 45 दिनों तक जारी रहता है। “
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” किसानों को सम्बंधित त्वरित सलाह और बारीकियों को समझने के लिए संस्थान ने दो व्हाट्सएप समूह भी बनाये हैं जिन पर संसथान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. प्रभात कुमार शुक्ल प्रतिदिन सुबह-शाम किसानों द्वारा भेजे गए चित्रों को देख कर सलाह देते हैं। व्हाट्सएप समूह का सबसे बड़ा लाभ यह पाया गया की समूह पर सदस्य अनुभव के आधार पर आपस में बात करके समस्याओं का निराकरण भी कर लेते हैंI साथ ही वह अपनी सफलता और असफलता के कारण साझा करके महत्वपूर्ण योगदान करते हैं जिससे बहुत से लोग वही गलती करने से बच जाते हैंI” डॉक्टर राजन ने आगे बताया।
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मशरूम उत्पादन भोजन की गुणवत्ता में सुधार करने और उत्तम स्वास्थ्य में सहायक हो सकता है। वहीं व्यापारिक स्तर पर उगाने पर आजीविका का श्रोत भी बन सकता है। इस दिशा में केंद्रीय उपोषण बागवानी संस्थान, रहमानखेड़ा प्रयासरत है और धीरे धीरे उत्पादकों की संख्या में बृद्धि हो रही है। कुछ किसान इसको अपना कर 20 -30 लाख रुपये तक का विपणन कर रहे हैं। और अन्य छोटे स्तर पर उगा कर स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर रहे हैं।
मशरूम, अन्य सभी फसलों की अपेक्षा न्यूनतम स्थान से, न्यूनतम जल उपभोग से अधिकतम उत्पादन देने वाली फसल है। इसे मौसम के अनुरूप सामान्य परिस्थितियों में बंद कमरों में उगाया जाता है। ग्रीष्म काल में दूधिया (कैलोसाइब इंडिका) मशरूम और शीतकाल में ढींगरी (प्लूरोटस प्रजाति) तथा बटन (एगेरिकस बाइस्पोरस) मशरूम उगाया जाता है।
ढींगरी और दूधिया मशरूम को जिस भूसे पर उगाते हैं, मशरूम उत्पादन के बाद उस भूसे की पशुओं को खिलाने हेतु गुड़वत्ता और बढ़ जाती है। ढींगरी और दूधिया मशरूम को उगाने पर भूसे में उपस्थित कार्बोहाइड्रेट्स के कुछ भाग का उपभोग हो जाता है तथा इसमें प्रोटीन की मात्रा बढ़ जाती है। बटन मशरुम की खेती कम्पोस्ट बनाकर की जाती है और मशरूम उत्पादन के उपरांत यह कम्पोस्ट खेतों में प्रयोग करने पर सामान्य कम्पोस्ट की अपेक्षा फसलों के लिए कही अधिक लाभकारी होती है। चूँकि बटन कम्पोस्ट एक विशेष विधि से बनायीं जाती है अतः इसमें पोषक तत्वों की मात्रा भी अधिक होती है और इसमें उपस्थित विशेष शूक्ष्म जीव फसलों के लिए अधिक लाभकारी होते हैं।
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