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उत्तर प्रदेश: मोटे अनाज की खेती को बढ़ावा देने के लिए प्रोसेसिंग और बाजार उपलब्ध कराने की है जरूरत

उत्तर प्रदेश में ज्वार, बाजरा, कोदो, कुटकी जैसे मोटे अनाजों की खेती को बढ़ावा देने के लिए उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान परिषद (उपकार) ने वेबिनार का आयोजन किया, जिसमें देश के अलग-अलग हिस्सों से विशेषज्ञों ने भाग लिया।
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उत्तर प्रदेश में मोटे अनाज के उन्नत किस्मों के बीजों को किसानों को उपलब्ध कराने के लिए कृषि विश्विविद्यालयों में सीड हब बनाए जाएंगे। बुंदेलखंड में मोटे अनाज की खेती का क्षेत्रफल बढ़ाने के लिए किसानों को उन्नत किस्म के बीज भी उपलब्ध कराए जाएंगे।

उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान परिषद (उपकार) के 32वें स्थापना दिवस के अवसर पर आयोजित ‘स्वस्थ भोजन के लिए मोटे अनाज : प्रतिरक्षा एवं पोषण सुरक्षा को बढ़ावा देने हेतु सम्भावनाएं एवं अवसर’ विषय पर आयोजित कार्यक्रम में मोटे अनाजों की खेती को बढ़ावा देने की बात की गई।

ऑनलाइन वेबिनार के उद्घाटन सत्र में उपकार के महानिदेशक डॉ. बिजेन्द्र सिंह ने कहा, “मोटे अनाज में धान-गेहूं की तुलना में विटामिन और खनिज पदार्थ प्रचुर मात्रा में पाये जाते है। अतः इम्यूनिटी को सुदृढ़ किये जाने के लिए जरूरी है कि हम मोटे अनाज को प्रतिदिन के खाने में शामिल करें।” महानिदेशक ने उपकार द्वारा प्रदेश के कृषि क्षेत्र में किये जाने वाले कार्यो की भी संक्षिप्त चर्चा की।

वेबिनार की मुख्य अतिथि, उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनन्दीबेन पटेल ने कहा, “प्रदेश में कृषि अनुसंधान परिषद थिंक टैंक के रूप में गठित है और पिछले 32 वर्षों से कृषि व तत्संबंधी विषयों पर शोध और शिक्षा के लिए निरन्तर अथक प्रयास कर रहा है।”

उपकार द्वारा आयोजित वेबिनार में यूपी की राज्यपाल आंनदी बेन पटेल।

राज्य पाल ने आगे कहा कि 40 से 50 वर्ष पहले की बात करें तो उस समय हमारे खाने में कदन्नों (मायनर मिलेट्स) और मोटे अनाज की संतुलित मात्रा सम्मिलित रहती थी, लेकिन हरित क्रान्ति की सफलता के बाद ज्यादा आर्थिंक लाभ को ध्यान में रखते हुए किसानों का ध्यान धान, गेहूं, गन्ना और सब्जी उत्पादन की ओर हो गया जिसके कारण हमारे भोजन की थाली से मोटे अनाज लगभग गायब हो गये। इसके कारण हमारे शरीर में कई प्रकार की दैहिकीय समस्यायें और गंभीर बीमारियों की समस्याएं हो गयी।

उत्तर प्रदेश का बुन्देलखण्ड क्षेत्र और दक्षिण-पश्चिम का मैदानी क्षेत्र इन फसलों की खेती खेती के लिए सही है, जहां पर कई दशकों से मिलेट्स की खेती सफलतापूर्वक की जाती रही है। इन क्षेत्रों में फिर से मोटे अनाज के फसलों की खेती को बढ़ाने के लिए सभी सम्भावनाओं की तलाश की जानी चाहिए। मोटे अनाज के फसल उत्पादन के साथ मूल्य संवर्धन और खाद्य प्रसंस्करण आवश्यक प्रक्रिया बन गई है। अतः हमें इस प्रकार के अनुसंधान की आवश्यकता है जिससे इन फसल उत्पादों का सहजता के साथ मूल्य संवर्धन किया जा सके तथा कृषकों के स्तर से ही अथवा ब्लॉक स्तर पर प्रसंस्करण की सुविधा उपलब्ध हो जाये। मोटा अनाज मिड डे मिल मे भी सम्मिलित किये जाने पर विचार किया जा रहा है।

कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि एवं अपर मुख्य सचिव, कृषि शिक्षा एवं अनुसंधान, उ.प्र. शासन डॉ देवेश चतुर्वेदी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए बताया कि इस समय मोटे अनाज को गरीबों का भोजन की संज्ञा दी जाती है जिस कारण से धीरे-धीरे उत्तर प्रदेश में इनकी खेती का क्षेत्र बहुत कम हो गया है। इसलिए मोटे अनाज की पोषकता के बारे में किसानों को बताना आवश्यक है साथ ही प्रदेश के कम वर्षा वाले क्षेत्रों में मोटे अनाज की खेती को महत्वपूर्ण स्तर तक बढ़ाया जाना चाहिए।

कार्यक्रम में उन्होंने कोविड महामारी में इम्युनिटी बढ़ाने के लिए मोटे अनाजों को महत्वपूर्ण बताया। मोटे अनाजों को खाने से धीमा पाचन होता है जिससे भूख कम लगती है और वजन कम करने में सहायक होता है। पोषक आहार स्थानीय, पोषण युक्त और फूड हेरेटेज का हिस्सा होना चाहिए, जो मोटे अनाज से पूर्ण होता है। न्यूट्रीसीरियल्स को बढ़ाने पर बल दिया जाना होगा।

इन्हें क्षेत्र विशेष में पापुलराइज करने कर एफ.पी.ओ. गठित करने पर विचार करना होगा। किसानों को इन्सेन्टिव भी देना होगा। बाजरे की खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य पर की जाय और अन्य मोटे अनाजों के लिए समर्थन मूल्य तय किये जायें। पीडीएस के माध्यम से इसे उपभोक्ता तक पहुंचाया जाय। उन्होने कहा कि इस वेबिनार की संस्तुतियों को शासन द्वारा लागू किया जायेगा।

तकनीकी सत्र के अध्यक्ष, डॉ तिलक राज शर्मा, उपमहानिदेशक (फसल), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, ने बताया, “हमारे खाद्य तंत्र में मोटे अनाज की सहभागिता मात्र 6 प्रतिशत है जबकि इनका एक बड़ा हिस्सा पशुचारे के रूप में उपयोग किया जाता है। डा. शर्मा ने बताया कि वर्तमान में कृषि की मुख्य समस्या के रूप में बढ़ता हुआ वैश्विक तापमान, कार्बन डाइआक्साइड गैस का बढ़ता स्तर तथा कम वर्षा और भूमि स्वास्थ्य।

इन समस्त समस्याओं के निदान के रूप में मोटे अनाज की खेती को एक समाधान के रूप में देखा जा सकता है क्योंकि ये फसलें कम वर्षा वाले क्षेत्र में, खाद्य एवं उर्वरक की न्यूनतम आवश्यकताओं के साथ अधिक तापमान में आसानी से उगाई जा सकती है। उन्होंने बताया कि मोटे अनाज में बाजरे की खेती सफलता के साथ की जा रही है जबकि द्वितीय स्थान पर ज्वार और तृतीय स्थान पर रागी की खेती की जा रही है अन्य फसलों यथा कोदो, सावा, किन्की इत्यादि की खेती को भी बढ़ावा दिया जाना आवश्यक है। 

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