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अप्राकृतिक है पौध रोपण की मियावाकी तकनीक, इसके अंधाधुंध इस्तेमाल से बचें

मियावाकी तकनीक ऐसी जगहों के लिए सही नहीं होती है, जहां पर नमी नहीं पाई जाती है। नम समशीतोष्ण, उपोष्णकटिबंधीय या द्वीप पारिस्थितिकी जैसे जापान और इसी तरह के इलाकों के लिए तो ठीक है, लेकिन दूसरे इलाके विशेष रूप से उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में के लिए अनुपयुक्त होती है, जहां पानी जलवायु की दृष्टि से दुर्लभ है या साल भर में कम उपलब्ध होता है।
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इसकी शुरूआत एक कहानी से करते हैं, जो असल जिंदगी से मिलती जुलती रहती है।

कल्पना करें कि आप के 10 भाई बहन हैं जो एक छोटे से कमरे में रहते हैं, जिसे आप के माता पिता ने बहुत ही मेहनत से बनाया है। संक्षेप में कहूं तो आप या तो झुग्गी झोपड़ी में रहते हैं या किसी छोटे से मकान में रहते हैं।

जब आप छोटे थे तो घर में दूसरों के साथ थोड़ी सी जगह साझा करना नामुमकिन नहीं था, लेकिन मुश्किल जरूर था। जैसे-जैसे आप बड़े होते गए आप के भाई बहनों के बीच खाने-पीने, स्कूल यूनिफ़ॉर्म के लिए पैसे ,किताबें, फीस, ट्रांसपोर्ट के साथ साथ इस छोटी सी जगह में अपनी ज़रूरत को पूरा करने के लिए भी मुकाबला शुरू हो गया की कहां खाएं, कहां पढ़ें, कहां सोएं और कहां अपना सामान रखें। पर्याप्त स्थान और जिंदगी की अन्य जरूरतों को पूरा करना हर दिन के लिए संघर्ष का विषय बन गया। क्योंकि आप के माता पिता के पास आप की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए सिमित संसाधन थे।

अब आप के पास एक परोपकारी व्यक्ति आए और कहे कि मैं आपके जीवन की तमाम ज़रूरत को पूरी करने के लिए तैयार हूं, इस शर्त के साथ कि तुम अपनी ज़िन्दगी एक कमरे के घर में गुजारोगे। तो आप कहेंगे कि क्या बकवास है। मेरी अपनी व्यक्तिगत जरूरतें हैं जो हमेशा एक छोटे से मकान में पूरी नहीं हो सकती है।

आइए विचार करें।

आप पेड़ पौधे लगाने के एक नए तरीके को लेकर उत्साहित हैं और आप 1 वर्ग मीटर के एरिया में दस पेड़ लगाते हैं। आप बहुत खुश होते हैं जब ये शुरूआत में उगते हैं। लेकिन जल्द ही जब आप इसमें पीले या मुरझाए हुए पत्ते और प्राकृतिक शाखाओं का अभाव पाते हैं तो परेशान होने लगते हैं।

आप बीमारी के कारण को समझने में असमर्थ रहते हैं और एक एक्सपर्ट से सलाह लेते हैं आप से कहा जाता है कि उस सिमित संस्थान में मिट्टी के पोषक तत्व पानी और सूरज की रोशनी एक बाधा कारक बन गया है आप को बेहतर ढंग से खाद और पानी डालना शुरू कर देना चाहिए। और कमज़ोर पौधों में कीड़ों मकोड़ो का भी ख्याल रखें क्योंकि उनको दूर रखना मुश्किल होगा।

लेकिन आप सूरज की रोशनी के बारे में सवाल करते हैं? ठीक है कि ये एक सीमा है, जिसके साथ आप के पेड़ पौधों को जीना सीखना होगा, जिसमें कुछ बहुत सीधे दबे हुए बढ़ते हैं। यहां मजबूत उत्तरजीविता प्रतियोगिता चल रही है। आप सोचेंगे कि यह बहुत अनुचित और अप्राकृतिक है।

मुझे यकीन है कि अब तक आप समझ गए होंगे कि छोटी जगहों में पौधे उगाने की ‘प्रसिद्ध’ मियावाकी शैली है। जब हम एक पेड़ के रूप में पौधा लगते हैं। तो हम शायद ही कभी पौधे और प्रक्रियाओं के बारे में परेशान होते हैं जो भूमिगत होते हैं और जमीन पर आसानी से दिखाई देने वाली चीज़ों पर ध्यान केंद्रित करते हैं। यह एक गलती है जिसे सुधारने की जरूरत है।

हम इंसानों को ‘उपवास’ के लिए जाना जाता है और लंबे समय तक बिना खाने के रहना पड़ता है, लेकिन यह पानी के बारे में सच नहीं है, जिसका सेवन हम स्वास्थ्य या धार्मिकक कारणों से उपवास करते समय करते हैं। पौधों का भी यही हाल है। वे जानते हैं कि वे प्रकाश-संश्लेषण की सहायता से अपनी इच्छा से भोजन का उत्पादन कर सकते हैं, लेकिन वह भी बिना पानी के नहीं हो सकता।

स्पष्ट रूप से पानी पौधे और इंसान दोनों के लिए एक अमृत है। इंसान इसका उपयोग करने के लिए स्वेच्छा से प्रबंधन कर रहा है, लेकिन पौधों के लिए मिट्टी और भूमिगत ही एकमात्र स्रोत है और जड़ों द्वारा जटिल तरीके से लिया जाता है जो फिर से दोबारा भूमिगत चला जाता है।

यह भी मालूम होना चाहिए कि एक पौधा कुछ इंसानों की तरह उपलब्ध जल आपूर्ति को हलके में लेता है. यह ज़मीं से प्राप्त होने वाले कुल पानी का ९५ प्रतिशत वायुमंडल में छोड़ कर देता है और शेष 5 प्रतिशत या उससे भी कम का उपयोग अपनी शारीरिक जरूरतों को पूरा करने के लिए करता है।

तो एक पौधे को एक पेड़ के रूप में विकसित करने के लिए पानी की एक विशाल मात्रा की आवश्यकता होगी और अगर कई पौधे एक साथ लगे हों और वे बढ़ रहे हों, तो पानी का पर्याप्त स्रोत चाहिए होगा। दूसरे शब्दों में पानी वातावरण में जल्दी खत्म हो सकता है और एक साथ करीब से लगाए गए पेड़ों से पानी सूख रहा है।

मियावाकी तकनीक ऐसी जगहों के लिए सही नहीं होती है, जहां पर नमी नहीं पाई जाती है। नम समशीतोष्ण, उपोष्णकटिबंधीय या द्वीप पारिस्थितिकी जैसे जापान और इसी तरह के इलाकों के लिए तो ठीक है, लेकिन दूसरे इलाके विशेष रूप से उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में के लिए अनुपयुक्त होती है, जहां पानी जलवायु की दृष्टि से दुर्लभ है या साल भर में कम उपलब्ध होता है।

तरीके अलग हैं लेकिन शोध में पाया गया है कि पेड़ हमारी तरह सूंघ सकते हैं, महसूस कर सकते हैं, देख सकते हैं, यहां तक कि बात भी कर सकते हैं। तो हमारी तरह उनके लिए भी पर्याप्त जगह की शारीरिक व सामाजिक जरूरतें क्यों नहीं होगी?

मियावाकी पद्धति यही मानती है। यह जानना भी दिलचस्प होगा कि मियावाकी स्टैंड में पौध कीट के हमले, मिट्टी के पोषक तत्वों की कमी और सूखे की स्थिति से कैसे निपटते हैं, जब तक कि कीटनाशक का उपयोग, कृत्रिम खाद और सिंचाई पैकेज का हिस्सा न हो।

तो अगर एक मियावाकी स्टैंड को कृषि फसल की तरह उर्वरक, सिंचाई, कीटनाशकों आदि के उच्च इनपुट के साथ उठाया जा रहा है तो स्पष्ट रूप से यह एक ऐसी विधि है जो न केवल अप्राकृतिक है बल्कि निषेधात्मक रूप से महंगी भी है। इसके अलावा मियावाकी पारिस्थितिक रूप से भी वन-हुड का दावा नहीं कर सकती, जैसे अनाज की फसल को प्राकृतिक मजबूत घास नहीं कहा जा सकता है। और अगर जलवायु परिवर्तन के दौर में कार्बन का पृथक्करण उनके बढ़ने का बहाना है, तो यह अभी भी तेजी से भूजल के नुकसान और जलभृत के सूखने के संदर्भ में संदिग्ध है।

क्योंकि मियावाकी के जंगल शहरी योजनाकारों और यहां तक कि कुछ वनवासियों को पसंद आ रहे हैं, इसलिए हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि कम समय में जो चमकता है वह बाद में बेकार हो सकता है। शोध में ने पाया गया है कि पौधे वास्तव में सामाजिक प्राणी के रूप में बड़े दिल वाले होते हैं और एक दूसरे के साथ खूबसूरती से सहयोग करते हैं। लेकिन किसी के भी बड़े दिल की एक हद होती है। मियावाकी इसे बेवजह फैलाती है। अकलमंदी से अपने विवेक का प्रयोग करें!

मनोज मिश्र पूर्व वन अधिकारी हैं और यमुना जिए अभियान के संयोजक हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं। यह लेख मूल रूप से अंग्रेजी में प्रकाशित हुआ था।

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