दिल्ली हाई कोर्ट ने कपास के किसानों को राहत देते हुए आज बड़ा फैसला लिया है। कोर्ट ने भारत में अमेरिका आधारित कंपनी मोन्सेंटो की बीटी कपास के बीज पर पेटेंट लागू करने की याचिका को खारिज कर दिया।
दिल्ली हाई कोर्ट की न्यायाधीश एस. रवींद्र भट्ट और योगेश खन्ना की पीठ ने उन तीन भारतीय बीज कंपनी के दावों को स्वीकृति प्रदान की है, जो यह कहते हैं कि मोनसेंटो कंपनी के बीटी कपास के बीजों के लिए पेटेंट नहीं है।
स्वदेशी जागरण मंच ने दिल्ली हाई कोर्ट के इस फैसले का स्वागत किया है। इस बारे में स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय सह-संयोजक अश्वनी महाजन ‘गाँव कनेक्शन’ से फोन पर बातचीत में बताते हैं, “इस फैसले ने बीटी कपास के बीज पर पेटेंट के दायरे के बारे में मोनसेंटो के धोखे को उजागर किया है। कोर्ट ने बीटी कपास पर मोनसेंटो के पेटेंट से इंकार कर दिया और भारतीय कानूनों के तहत ब्रीडर के अधिकारों के लिए आवेदन करने को कहा।“ आगे कहा, “यह फैसला बताता है कि पौधे की किस्मों और बीज पेटेंट नहीं किए जा सकते हैं।“
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देय फीस पर भी भारतीय कंपनियों को मिली राहत
इतना ही नहीं, दिल्ली हाई कोर्ट ने तीन भारतीय कंपनियों नुज़वीदु सीड्स लिमिटेड, प्रभात एग्री बायोटेक लिमिटेड और प्रवर्धन सीड्स प्राइवेट लिमिटेड को भी राहत दी है। अदालत ने मोनसेंटों को इन तीन कंपनियों से उप-लाइसेंस के तहत देय फीस के मुद्दे पर एकल न्यायाधीश के भी फैसले पर रोक लगा दी है।
एकल न्यायाधीश ने कहा था कि इन तीन भारतीय कंपनियों को सरकार की निर्धारित दरों के अनुसार मोनसेंटो में विशेष फीस का भुगतान करना होगा। असल में, मोनसेंटो कंपनी अपनी बीज तकनीकी के उपयोग को लेकर भारतीय कंपनियों से उप-लाइसेंस के तहत विशेष फीस का उच्च दर वसूल करना चाह रही थी। अदालत ने इस फैसले पर भी रोक लगा दी है।
भारतीय कंपनियों ने अपनी अपील में एक एकल न्यायाधीश द्वारा अपने दावे की अस्वीकृति को चुनौती दी थी कि अमेरिका आधारित कृषि प्रमुख मोन्सेंटो ने बीटी कपास के बीजों के लिए गलत तरीके से पेटेंट दे दिया था।
महाराष्ट्र में बड़े स्तर पर किसानों को हुआ था नुकसान
असल में मोनसेंटो कंपनी आनुवांशिक रूप से सुधारे हुए बीज बेचती हैं। कंपनी ने कपास किसानों को बीज बेचकर यह दावा किया था कि इन बीजों के इस्तेमाल से उनकी फसल पर रोग नहीं लगेंगे और फसल अच्छी होगी।
किसानों ने बड़ी मात्रा में कंपनी के बीजों का उपयोग किया, मगर गुलाबी कीट लगने की वजह से महाराष्ट्र के किसानों की फसल बर्बाद हो गई थी। इस मामले में कपास किसानों ने मोनसेंटो कंपनी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी।
अश्वनी महाजन ने इस बारे में बताया, “देश के 8000 गरीब किसानों ने 2002 से मोनसेंटो को 7000 करोड़ रुपये का भुगतान किया। यह फैसला सभी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए एक चेतावनी बन जाएगा ताकि भविष्य में भारतीय किसानों को धोखा देने के लिए वे ऐसी संदिग्ध विधियों का सहारा नहीं लेंगे।”