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ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती का सही समय, बढ़िया उत्पादन के लिए बीजोपचार के बाद ही करें बुवाई

मार्च-अप्रैल के महीने में जिन किसानों के खेत आलू की खुदाई व सरसों की कटाई के बाद खाली हो जाते हैं, वो इस समय जायद की मूंग कर सकते हैं।
mung bean

किसान इस समय गर्मी यानी जायद में बोई जाने वाली मूंग की बुवाई कर सकते हैं। मूंग जैसी दलहनी फसलों की बुवाई से यह फायदा होता है कि यह खेत में नाइट्रोजन की मात्रा को बढ़ाती हैं, जिससे दूसरी फसलों से भी बढ़िया उत्पादन मिलता है।

मूंग की फसल के लिए ज्यादा बारिश नुकसानदायक होती है, ऐसे क्षेत्र जहां पर 60-75 सेमी तक वार्षिक बारिश होती है, मूंग की खेती वहां के लिए उपयुक्त होती है। मूंग की फसल के लिए गर्म जलवायु की जरूरत पड़ती है।

मूंग की खेती सभी प्रकार की मिट्टी में सफलतापूर्वक की जाती है, लेकिन मध्यम दोमट, मटियार भूमि समुचित जल निकास वाली, जिसका पीएच मान 7-8 हो इसके लिए उत्तम होती है।

ऐसे करें खेत की तैयारी

खेत की पहली जुताई हैरो या मिट्टी पलटने वाले रिज़र हल से करनी चाहिए। इसके बाद दो-तीन जुताई कल्टीवेटर से करके खेत को अच्छी तरह भुरभरा बना लेना चहिए। आखिरी जुताई में लेवलर लगाना अति जरूरी है, इससे खेत में नमी लम्बे समय तक संरक्षित रहती है। दीमक से ग्रसित भूमि को फसल की सुरक्षा के लिए क्यूनालफास 1.5 प्रतिशत चूर्ण 25 किलोग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से अंतिम जुताई से पहले खेत में बिखेर दें और उसके बाद जुताई कर उसे मिट्टी में मिला दें।

मूंग की इन किस्मों की करें बुवाई

पूसा वैसाखी – फसल अवधि 60-70 दिन , पौधे अर्ध फैले वाले, फलियाँ लम्बी , उपज 8-10 क्विंटल/ हैक्टेयर

मोहिनी – फसल अवधि 70-75 दिन, उपज 10-12 क्विंटल/ हैक्टेयर पीला मोजैक वायरस व सर्कोस्पोरा लीफ स्पोट रोग के प्रति सहनशील।

पन्त मूंग 1 : – फसल अवधि 75 दिन ( खरीफ ) तथा 65 (जायद ) दिन , उपज क्षमता 10-12 क्विंटल/ हैक्टेयर

एमएल 1 : – फसल अवधि 90 दिन , बीज छोटा व हरे रंग का , उपज क्षमता 8-12 क्विंटल/ हैक्टेयर।

वर्षा – यह अगेती किस्म है , उपज क्षमता 10 क्विंटल/ हैक्टेयर

सुनैना – फसल अवधि 60 दिन , उपज क्षमता 12-15 क्विंटल/ हैक्टेयर ग्रीष्म मौसम के लिए उपयुक्त .

जवाहर 45 : – इस किस्म को हाइब्रिड 45 भी कहा जाता है, फसल 75-85 दिन अवधि उपज क्षमता 10-13 क्विंटल/ हैक्टेयर, खरीफ के मौसम के लिए उपयुक्त .

कृष्ण 11: – अगेती किस्म फसल अवधि 65-70 दिन , उपज क्षमता 10-12 क्विंटल/ हैक्टेयर .

पन्त मूंग 3 : – फसल अवधि 60-70 दिन, ग्रीष्म ऋतू में खेती के लिए उपयुक्त, पीला मोजैक वायरस तथा पाउडरी मिल्ड्यू रोधक ।

अमृत – फसल आधी 90 दिन यह खरीफ मौसम के लिए उपयुक्त की है , पीला मोजैक वायरस रोग के प्रति सहनशील , उपज क्षमता 10-12 क्विंटल/ हैक्टर।

बीज की मात्रा और बीजोपचार

खरीफ मौसम में मूंग का बीज 12-15 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर लगता है।

जायद में बीज की मात्रा 20-25 किलोग्राम प्रति एकड़ लेना चाहिए। 3 ग्राम थायरम फफूंदनाशक दवा से प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित करने से बीज और भूमि जन्य बीमारियों से फसल की सुरक्षित रहती है।

600 ग्राम राइज़ोबियम कल्चर को एक लीटर पानी में 250 ग्राम गुड़ के साथ गर्म कर ठंडा होने पर बीज को उपचारित कर छाया में सुखा लेना चाहिए और बुवाई कर देनी चाहिए। ऐसा करने से नत्रजन स्थरीकरण अच्छा होता है।

फसल बुवाई का समय

बुवाई खरीफ और जायद दोनों फसलो में अलग अलग समय पर की जाती है।

खरीफ में जून के अन्तिम सप्ताह से जुलाई के अंतिम सप्ताह तक बुवाई करनी चाहिए।

जायद में मार्च के प्रथम सप्ताह से अप्रैल के द्वितीय सप्ताह तक बुवाई करनी चाहिए।

कतार से कतार के बीच दूरी 45 से.मी. तथा पौधों से पौधों की दूरी 10 सेमी उचित है l

खाद और उर्वरक

खाद एवं उर्वरकों के प्रयोग से पहले मिटटी की जाँच कर लेनी चहियेl फिर भी कम से कम 5 से 10 टन गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद देनी।

मूंग के लिए 20 किलो ग्राम नाइट्रोजन तथा 40 किलो ग्राम फास्फोरस 20 किलो ग्राम पोटाश 25 किलो ग्राम गंधक एवम् 5 किलो ग्राम जिंक प्रति हैक्टेयर की आवश्कता होती है।

सिंचाई

खरीफ की फसल में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है. परंतु फूल आने की अवस्था पर सूखे की स्थिति में सिंचाई करने से उपज में काफी बढ़ोतरी होती है.

खरीफ की फसल में वर्षा कम होने पर फलियाँ बनते समय एक सिचाई करने की आवश्यकता पड़ती है तथा जायद की फसल में पहली सिचाई बुवाई के 30 से 35 दिन बाद और बाद में हर 10 से 15 दिन के अंतराल पर सिचाई करते रहना चाहिए जिससे अच्छी पैदावार मिल सकती है।

खरपतवार नियंत्रण 

प्रथम निराई बुवाई के 20-25 दिन के भीतर व दूसरी 40-45 दिन में करना चाहिये।

फसल की बुवाई के एक या दो दिन बाद तक पेन्डीमेथलीनकी बाजार में उपलब्ध 3.30 लीटर मात्रा को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए। फसल जब 25 -30 दिन की हो जाये तो एक गुड़ाई कस्सी से कर देनी चहिये या इमेंजीथाइपर की 750 मिली . मात्रा प्रति हेक्टयर की दर से पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर देना चाहिए।

रोग और कीट नियंत्रण

दीमक: बुवाई से पहले अंतिम जुताई के समय खेत में क्यूनालफोस 1.5 प्रतिशत या क्लोरोपैरिफॉस पॉउडर की 20-25 किलो ग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में मिला देनी चाहिए।

कातरा:- इस कीट की लट पौधों को आरम्भिक अवस्था में काटकर बहुत नुकसान पहुंचती है l कतरे की लटों पर क्यूनालफोस 1 .5 प्रतिशत पाउडर की 20-25 किलो ग्राम मात्रा प्रति हैक्टेयर की दर से भुरकाव कर देना चाहिये I

मोयला, सफ़ेद मक्खी और हरा तेला : इनकी रोकथाम के किये मोनोक्रोटोफास 36 डब्ल्यू ए.सी या मिथाइल डिमेटान 25 ई.सी. 1.25 लीटर को प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए ।

फली छेदक: फली छेदक को नियंत्रित करने के लिए मोनोक्रोटोफास आधा लीटर या मैलाथियोन या क्युनालफ़ांस 1.5 प्रतिशत पॉउडर की 20-25 किलो हेक्टयर की दर से छिड़काव /भुरकाव करनी चहिये।

रस चूसक कीट: इन कीट की रोकथाम के लिए एमिडाक्लोप्रिड 200 एस एल का 500 मिली. मात्रा का प्रति हेक्टयर की दर से छिड़काव करना चाहिए। आवश्कता होने पर दूसरा छिड़काव 15 दिन के अंतराल पर करें I

चीती जीवाणु रोग: इस रोग की रोकथाम के लिए एग्रीमाइसीन 200 ग्राम या स्टेप्टोसाईक्लीन 50 ग्राम को 500 लीटर में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए I

पीत शिरा मोजैक: यह रोग एक मक्खी के कारण फैलता हैI इसके नियंत्रण के लिए मिथाइल डेमेटान 0.25 प्रतिशत व मैलाथियोन 0.1प्रतिशत मात्रा को मिलकर प्रति हेक्टयर की दर से 10 दिनों के अंतराल पर घोल बनाकर छिड़काव करना काफी प्रभावी होता है I

तना झुलसा रोग: इस रोग की रोकथाम हेतु 2 ग्राम मैकोजेब से प्रति किलो बीज दर से उपचारित करके बुवाई करनी चहिए। बुवाई के 30-35 दिन बाद 2 किलो मैकोजेब प्रति हेक्टयर की दर से 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चहिये ।

पीलिया रोग : इस रोग के कारण फसल की पत्तियों में पीलापन दिखाई देता है। इस रोग के नियंत्रण हेतू गंधक का तेजाब या 0.5 प्रतिशत फैरस सल्फेट का छिड़काव करना चहिये I

जीवाणु पत्ती धब्बा, फफुंदी पत्ती धब्बा और विषाणु रोग: इन रोगो की रोकथाम के लिए कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम , स्ट्राप्टोसाइलिन की 0.1 ग्राम और मिथाइल डेमेटान 25 ई .सी.की एक मिली.मात्रा को प्रति लीटर पानी में एक साथ मिलाकर पर्णीय छिड़काव करना चहिये l

फसल कटाई और गहाई का समय 

मूंग की फलियों जब काली पड़ने लगे तथा सुख जाये तो फसल की कटाई कर लेनी चाहिएI अधिक सूखने पर फलियों चिटकने का डर रहता हैI फलियों से बीज को थ्रेसर द्वारा या डंडे द्वारा अलग कर लिए जाता है I

उत्पादन

वैज्ञानिक विधि से खेती करने पर मूंग की 7 -8 कुंतल प्रति हेक्टयर वर्षा आधारित फसल से उपज प्राप्त हो जाती है I सिंचित फसल की औसत उपज 10-12 क्विटंल / हैक्टेयर तक हो सकती है।

भण्डारण

बीज के भण्डारण से पहले अच्छी तरह सुखा लेना चाहिए. बीज में 8 से 10 प्रतिशत से अधिक नमी नहीं रहनी चाहिए. मूंग के भण्डारण में स्टोरेज बिन का प्रयोग करना चाहिए।

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