अगर आप देश के उत्तरी मैदानी क्षेत्र से हैं तो 10 अक्टूबर से 22 अक्टूबर तक सरसों की बुवाई का सबसे सही समय है।
भारत के उत्तरी मैदानी क्षेत्रों में सर्दियों में तिलहन की खेती की जाती है, इसमें सरसों और लाही प्रमुख फसलें होती हैं। इसमें करीब 42 प्रतिशत तक तेल की मात्रा होती है।
समय पर बोई जाने वाली किस्मों में पूसा विजय, पूसा मस्टर्ड-24, 25, 27, 28, 29, 30 और 32 हैं । इसके अलावा गिरिराज, राधिका, एमआरसी डीआरटू, एनआरसी601, एनआरसीएचवी 101, एनआरसीएचवी 506 ये किस्में भी अच्छी हैं।
अगर किसान भाई समय पर बुवाई नहीं कर पाते हैं तो कुछ पछेती किस्में भी हैं, जिनमें स्वर्ण ज्योति, वरदान, नवगोल्ड, आरजीएन 506, पूसा तारक और पीएम 26 या पूसा मस्टर्ड 26 किस्में हैं, इनमें से किसी भी फसल को नवम्बर के पहले सप्ताह में फसल की पछेती बुवाई कर सकते हैं।
लवण प्रभावित मृदा हैं तो उनके लिए सीएस 52 और सीएस 54 अच्छी किस्में हैं।
अब खेत के चुनाव के बारे में हम सभी जानते हैं अच्छी जल धारण क्षमता वाली मृदा होनी चाहिए, जलभराव वाला खेत नहीं होना चाहिए।
प्रति हेक्टेयर के हिसाब से चार-पाँच किलो बीज ही इस्तेमाल करना चाहिए। कई किसान कहते हैं कि सीड ड्रिल से बुवाई करने पर ज़्यादा बीज गिर जाता है तो किसान रेत या बजरी मिला सकते हैं।
बुवाई से पहले बीजोपचार बहुत ज़रूरी होता है, इससे बीज जनित बीमारियों का ख़तरा नहीं होता है।
सरसों की शुरुआती अवस्था में कुछ कीट ज़्यादा नुकसान पहुँचाते हैं, जो छोटे पौधों को काट देते हैं, इससे बचाव के लिए बीज को इमिडाक्लोप्रिड से उपचारित करके बोना चाहिए। इसके साथ ही फफूंद जनित बीमारियों से बचने के लिए ट्राइकोडर्मा से भी उपचारित करना चाहिए।
बीज उपचार के बाद अब बारी आती है बुवाई की। अगर आप सीड ड्रिल से बुवाई करते हैं तो परंपरागत किस्मों में एक पंक्ति से दूसरी पंक्ति की दूरी करीब 30 सेमी होनी चाहिए। जबकि उन्नत किस्मों में करीब 45 सेमी की दूरी रखते हैं और पौधों से पौधों की दूरी 10-12 सेमी रखनी चाहिए।
अगर पौधों की संख्या अधिक है तो पौधों को निकाल कर चारे में भी इस्तेमाल कर सकते हैं। पौधों को जितनी अधिक जगह मिलेगी उतनी ही अच्छी वृद्धि होगी।
अब बात आती है पोषक तत्वों की, क्योंकि पौधों के समग्र विकास और बढ़वार के लिए करीब 17 पोषक तत्वों की जरूरत होती है, जिसमें नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम प्रमुख हैं।
नाइट्रोजन को अधिकतम दो बार में देते हैं, पहले भाग को बुवाई के समय और दूसरे भाग को पहली सिंचाई के बाद में देते हैं।
पोटेशियम के लिए आप एमओपी का प्रयोग कर सकते हैं, क्योंकि आज कल हम दो या तीन फसलें लेते हैं तो सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी देखी गई है। जिंक या आयरन सल्फेट का बुवाई के समय प्रयोग कर सकते हैं। बुवाई के लिए करीब 20 से 25 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से आखिर जुताई से पहले देनी होती है।
एक साल में एक बार ही जिंक और आयरन का प्रयोग करें। अगर खरीफ की फसल में उपयोग किया है तो रबी में इसका इस्तेमाल नहीं करना पड़ेगा। सरसों के लिए सल्फर एक महत्वपूर्ण पोषक तत्व है इसका करीब 30 से 40 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से देनी होगी।
और इसके साथ ही एक और पोषक तत्व है, जिसको हम बोरान के नाम से जानते है। वो भी सरसों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। इसकी कमी से फलियों में दाने नहीं बनते वो खाली रह जाती हैं। इसके लिए एक किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से सभी पोषक तत्वों के साथ में देना होगा।
इसके साथ ही एक महत्वपूर्ण आयाम है खरपतवार, ये फसलों को काफी नुकसान पहुँचाते हैं, अगर खरपतवार का नियंत्रण नहीं किया गया तो करीब 30 से 40 प्रतिशत फसल में नुकसान देखा गया है।
30 से 35 दिन बाद खेत में पहली सिंचाई देते हैं उसके बाद खरपतवार दिखाई देते हैं तो निराई गुड़ाई से उन्हें निकाल सकते हैं।