राष्ट्रीय शहद मिशन: कैसे बढ़ रहा है भारत का कदम ‘ग्लोबल हनी हब’ बनने की ओर

भारत में मधुमक्खी पालन अब केवल शौक़ नहीं, बल्कि रोज़गार और आत्मनिर्भरता का मज़बूत साधन बन चुका है। राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन और शहद मिशन (NBHM) के तहत सरकार किसानों और महिला समूहों को वैज्ञानिक तकनीकों से जोड़ रही है, जिससे शहद उत्पादन में रिकॉर्ड बढ़ोतरी और निर्यात में नई ऊंचाई मिली है।
Bringing Sweet Revolution: Buzzing for a Better India

भारत में अब खेती के साथ एक और क्रांति जुड़ गई है – “मीठी क्रांति”। पहले जहाँ मधुमक्खी पालन ग्रामीण इलाकों में एक परंपरागत गतिविधि माना जाता था, वहीं आज यह किसानों और महिलाओं के लिए अतिरिक्त आय का भरोसेमंद साधन बन चुका है।

सरकार द्वारा वर्ष 2020-21 में शुरू किया गया राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन और शहद मिशन (NBHM) इसी दिशा में एक बड़ा कदम है। इस योजना पर लगभग 500 करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं, और इसे 2025-26 तक जारी रखा जाएगा। इसका उद्देश्य है— किसानों को वैज्ञानिक तरीक़े से मधुमक्खी पालन के लिए प्रशिक्षित करना, शहद की गुणवत्ता को बढ़ाना और उत्पादन से लेकर विपणन तक पूरी प्रक्रिया को सशक्त बनाना।

राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड (NBB) इस मिशन की मुख्य एजेंसी है, जो देशभर में प्रशिक्षण, अनुसंधान, लैब और प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना कर रही है। इस अभियान के ज़रिये अब तक हज़ारों किसान और महिला समूह इस व्यवसाय से जुड़ चुके हैं।

मधुमक्खी पालन सिर्फ़ शहद बनाने का काम नहीं है। यह फसलों के परागण (Pollination) में मदद करता है, जिससे कृषि उपज में 20 से 30 प्रतिशत तक वृद्धि होती है। साथ ही, मधुमक्खियों से मिलने वाले मोम, रॉयल जेली, बी-पराग और प्रोपोलिस जैसे उत्पाद औषधि और सौंदर्य उद्योग में भी काम आते हैं, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नई ताकत मिल रही है।

आज भारत दुनिया में शहद उत्पादन के क्षेत्र में तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। वर्ष 2024 में देश ने 1.4 लाख मीट्रिक टन प्राकृतिक शहद का उत्पादन किया। वहीं 2023-24 में भारत ने 1.07 लाख मीट्रिक टन शहद का निर्यात किया, जिससे लगभग 177 मिलियन अमेरिकी डॉलर की आमदनी हुई। यह आंकड़े बताते हैं कि भारत अब दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा शहद निर्यातक देश बन चुका है — जबकि कुछ साल पहले तक यह नौवें स्थान पर था।

शहद उत्पादन में उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, पंजाब, बिहार और राजस्थान अग्रणी राज्य हैं। भारतीय शहद की सबसे अधिक मांग अमेरिका, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, क़तर और लीबिया जैसे देशों में है।

इस मिशन के तहत अब तक 6 बड़े शहद परीक्षण केंद्र, 47 मिनी लैब, 6 मधुमक्खी रोग जांच केंद्र और 26 प्रसंस्करण इकाइयाँ स्वीकृत की जा चुकी हैं। इनसे शहद की गुणवत्ता और शुद्धता की जांच संभव हो सकी है।

शहद मिशन का एक और बड़ा नवाचार है — “मधु क्रांति पोर्टल”। कुल मिलाकर 14 अक्टूबर 2025 तक करीब 14,859 मधुमक्खी पालक, 269 मधुमक्खी पालन व शहद सोसाइटी, 150 फर्म और 206 कंपनियों का पंजीयन मधु क्रांति पोर्टल पर किया गया है। यहाँ से उत्पादन से लेकर बिक्री तक का रिकॉर्ड डिजिटल रूप से रखा जा सकता है, जिससे पारदर्शिता बढ़ी है और किसानों को बाज़ार तक सीधी पहुँच मिली है।

इस “मीठी क्रांति” में महिलाओं की भागीदारी भी लगातार बढ़ रही है। देश के कई राज्यों में महिला स्वयं सहायता समूह मधुमक्खी पालन के जरिये आत्मनिर्भर बने हैं। मेघालय की महिलाओं ने इस काम को नया जीवन दिया है, जहाँ शहद उत्पादन अब उनके परिवार की स्थायी आय का हिस्सा है।

इसी तरह जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा जिले में “कुपवाड़ा हनी” नाम से स्थानीय ब्रांड तैयार किया गया है। यहाँ हर साल सैकड़ों क्विंटल ऑर्गेनिक शहद का उत्पादन हो रहा है, जिसे देशभर में सराहा जा रहा है। सरकार ने यहाँ 25 लाख रुपये की लागत से शहद प्रसंस्करण और पैकेजिंग केंद्र भी स्थापित किया है।

अब सरकार की कोशिश है कि देश के हर ज़िले में किसान उत्पादक संगठन (FPOs) के माध्यम से इस काम को मज़बूती दी जाए। अब तक लगभग 100 एफपीओ शहद उत्पादकों के हैं, जो सीधे बाज़ार से जुड़े हैं।

भविष्य में भारत को “ग्लोबल हनी हब” बनाने की दिशा में काम चल रहा है। इसके लिए ब्लॉकचेन आधारित पहचान प्रणाली, शहद कॉरिडोर और आधुनिक प्रसंस्करण इकाइयों पर ज़ोर दिया जा रहा है।

मधुमक्खी पालन अब सिर्फ़ एक पारंपरिक व्यवसाय नहीं, बल्कि ग्रामीण भारत के लिए विकास का नया रास्ता बन गया है। राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन और शहद मिशन ने किसानों को अतिरिक्त आमदनी, महिलाओं को सम्मान और भारत को वैश्विक पहचान दी है। यह सचमुच भारत की “मीठी क्रांति” है — जो खेतों से लेकर शहरों तक मिठास फैला रही है।

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