किसानों की दशा जल्द सुधरने वाली है। ऐसा दावा है केंद्र सरकार का, क्योंकि 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य है। इसी लक्ष्य को साधने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई दिल्ली में 19 और 20 फरवरी को एक महा बैठक बुलाई है। नेशनल कॉन्फ्रेंस एग्रीकल्चर 2022 नाम के इस आयोजन में किसान, कारोबार और इंडस्ट्री के अलावा कृषि क्षेत्र के जानकारों के साथ सरकार मंथन करेगी।
इस मंथन से एग्रीकल्चर को लेकर कोई नयी पॉलिसी बन सकती है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या खेती की लागत घटाएगी सरकार ? सिर्फ एमएसपी बढ़ाने से कैसे बढ़ेगी किसानों की आय ? खेती से जुड़े कारोबारी और कंपनियां तो फायदे में रहती हैं, भला किसानों को फायदा क्यों नहीं हो पाता और सबसे अहम बात, पॉलिसी बनाने में खुद किसानों की कितनी सुनेगी सरकार। बैठक में इकोनॉमिस्ट, इंडस्ट्री और किसानों सहित 300 लोग अपना सुझाव सरकार को देंगे।
कृषि सचिव एसके पटनायक ने इस बारे में एक प्रेस कॉफ्रेंस में बताया “2022 तक किसानों की आय दोगुनी कैसे होगी, हम दो दिनों तक इसी पर मंथन करेंगे। विशेषज्ञों को इसीलिए बुलाया गया है। सरकार हर मुद्दे पर विचार करेगी। किसानों के लिए नयी नीतियां भी बन सकतरी हैं।”
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सरकार के समक्ष खेती को लेकर कई चुनौतियां बनी हुई है। किसानों को उपज का दाम नहीं मिलता और ऐसे में खेती की लगातार बढ़ती लागत के कारण किसान परेशान है। वहीं कृषि उपज के रखरखाव की व्यवस्था का अभाव है। सब्जियों की खेती में काफी अस्थिरत है। 4 साल में एमएसपी 25-30 फीसदी तक बढ़ी है। किसान एमएसपी के नीचे बेचने को मजबूर है क्योंकि सरकार सभी फसलों को नहीं खरीदती।
Today, I’ll participate in 2-day #NationalConference–#Agriculture2022– #DoublingFarmersIncome. Under the aegis of PM Shri @narendramodi Ji, the event aims to find solutions to #AgriSector problems via brainstorming sessions. PM will analyse & review recommendations on 2nd day pic.twitter.com/HDBoHQtJVZ
— Radha Mohan Singh (@RadhamohanBJP) February 19, 2018
देश के 187 किसान संगठनों की अगुवाई वाली अखिल भारतीय किसान समन्वय समिति के संयोजक और और स्वराज इंडिया के संस्थापक योगेंद्र यादव कहते हैं, “उत्पादन में बढ़ोतरी नहीं हो पा रही है। इसमें मौसम और नोटबंदी की भूमिका सबसे ज्यादा रही। सरकार की कृषि निति का पूरा ध्यान उत्पादन पर रहता है। लेकिन उत्पादक की ओर सरकार का कोई ध्यान नहीं है। सरकार पिछले साल में किसानों की आय केवल चार प्रतिशत बढ़ा पायी है। आगामी चार साल में किसानों की आय सरकार दोगुनी नहीं कर सकती।” वो आगे कहते हैं, “सरकार की नीतियां किसान विरोधी हैं। सरकार वोट के चक्कर में किसानों को लाभ नहीं दे पा रही। मौसम परिवर्तन के कारण उत्पादन नहीं बढ़ रहा, ये चिंता की बात है।”
इन चुनौतियों से निपटना बड़ी चुनौती
अशोक दलवई की अध्यक्षता में किसानों की आमदनी दोगुनी करने के संबंध में बनी समिति ने हाल ही में अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंपी। इसमें किसानों की आय दोगुनी करने में आने वाली चुनौतियों का उल्लेख है। रिपोर्ट कृषि की ऐतिहासिक प्रगति से शुरू होकर क्या करना चाहिए पर समाप्त होती है। इस विस्तृत रिपोर्ट में कई सुझाव दिए गए हैं। रिपोर्ट के अनुसार, लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है।
रिपोर्ट बताती है कि 2004-2014 के दौरान कृषि के क्षेत्र में ऐतिहासिक प्रगति हुई है। इस अवधि के दौरान कृषि विकास दर चार प्रतिशत थी जबकि 1995 से 2004 के बीच यह दर 2.6 प्रतिशत ही थी। कृषि के क्षेत्र में चार प्रतिशत विकास दर स्वर्णिम मानी जाती है लेकिन हाल के वर्षों में इस क्षेत्र में सुस्ती आई है।
रिपोर्ट कहती है कि यह विकास दर न्यूनतम समर्थन मूल्य, सार्वजनिक निवेश और बेहतर बाजार मूल्य के कारण संभव हुई है। रिपोर्ट के अनुसार, खेती से होने वाली वास्तविक आय दोगुनी होनी चाहिए। किसान की कुल आमदनी में खेती से होने वाली आय का हिस्सा 60 प्रतिशत है। इसका मतलब यह भी है कि किसान की कुल आय का यह स्रोत ही 2022 तक दोगुना करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
निजी और सार्वजनिक निवेश की जरूरत
रिपोर्ट कहती है कि इससे किसान की कृषि और गैर कृषि आय के अनुपात में बदलाव होगा। अभी यह अनुपात 60:40 है जो 2022 में 70:30 हो जाएगा। इसका मतलब यह कि भारत ने खेती से होने वाली आय को समग्र कल्याण का पैमाना मान लिया है। इसका एक और पहलू है, यह मान लेना कि कृषि संकट के वक्त गैर कृषि आय के विकल्प के सपने को बेकार माना जाना। इस लक्ष्य को हासिल करने की लागत पर नजर डालने की जरूरत है। यह जरूरी इसलिए है क्योंकि कृषि एक निजी व्यवसाय है जिस पर आधिकारिक नीतियों और कार्यक्रमों का असर पड़ता है। इसका अर्थ यह भी है कि किसानों की आमदनी को दोगुना करने के लिए निजी और सार्वजनिक निवेश की जरूरत है।
किसानों की आय दोगुनी करने के दावे को कृषि से जुड़े विशेषज्ञ हवा-हवाई बता रहे हैं। किसानों के मुद्दे पर लिखने वाले देश के जाने-माने पत्रकार पी. साईनाथ कहते हैं, “देश में बीज, उर्वरक, कीटनाशक और साथ ही कृषि यंत्रों की कीमत तेजी से बढ़ी है, जिसका नतीजा है कि कृषि लागत तेजी से बढ़ी है, लेकिन सरकार अपनी ज़िम्मेदारियों से बच रही है। सरकार जानबूझकर कृषि को किसानों के लिए घाटे का सौदा बना रही है ताकि किसान खेती-बाड़ी छोड़ दें और फिर कृषि कॉर्पोरेट के लिए बेतहाशा फ़ायदे का सौदा हो जाए।”
2022 में 2015-16 वाली स्थिति होगी
समिति ने माना है कि निजी और सार्वजनिक निवेश के बाद भी 2022 तक कृषि की विकास दर वही रहेगी जो 2015-16 के दौरान थी। इस हिसाब से देखें तो किसान की आय में सालाना वृद्धि दर 9.23 प्रतिशत रहेगी। ऐसा करने के लिए किसानों को अगले पांच साल में 46,299 करोड़ रुपए (2004-05 के मूल्य) का निवेश करना होगा। 2015-16 के दौरान किसानों ने 29,559 करोड़ रुपए का निवेश किया था। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए 102,269 करोड़ रुपए के सार्वजनिक निवेश की आवश्यकता होगी। यह 2015-16 में 64,022 करोड़ रुपए के निवेश से कहीं ज्यादा है।
मध्य प्रदेश के किसान नेता केदार सिरोही कहते हैं “किसानों को बाजार में उनकी फसल की सही कीमत नहीं मिल पाती। मंडियों में बिचौलियों का दबदबा होने के कारण किसान लाचार है। कुछ कारोबारियों के इशारों पर मंडियों में काम होता है। जिसके कारण केंद्र का ई-नाम प्रोजेक्ट अभी तक बेअसर है। ऐसे में नीतियों ऐसी होनी चाहिए जिससे किसानों को उनकी वास्तविक लाभ मिल पाए। हवा-हवाई करने से तो कुछ होने से रहा।”
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सरकार ने हाल ही में उच्चतम न्यायालय में स्वीकार किया कि मुख्य रूप से नुकसान और कर्ज की वजह से पिछले चार वर्षों में लगभग 48,000 किसान अपनी जान दे चुके हैं। सरकार के राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों से पता चलता है कि 1997-2012 के दौरान करीब ढाई लाख किसानों ने अपना जीवन गंवाया। जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक 2001 और 2011 के बीच 90 लाख किसानों ने खेती करना छोड़ दिया। इसी अवधि में कृषि श्रमिकों की संख्या 3.75 करोड़ बढ़ी, यानी कि 35% की वृद्धि हुई। सरकार के इन दावों के बीच वो ख़बरें और किसान भी हैं, जो अपनी उपज की लागत तक निकालने के लिए जद्दोजहद करे रहे हैं।