सहारनपुर (उत्तर प्रदेश)। किसानों की मुश्किलें कम नहीं हो रही हैं, कई जिलों में बारिश न होने से धान की खेती करने वाले किसान परेशान हो रहे हैं, तो वहीं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई किसानों की धान की फसल में निमेटोड के प्रकोप से मुश्किलें बढ़ गईं हैं।
सहारनपुर जिले के पुवारका ब्लॉक के देवला गाँव के किसान आशीष सैनी ने 136 बीघा में धान की फसल लगाई है। आशीष बताते हैं, “इस बार 136 बीघा में धान की फसल लगाई है, एक दिन देखा तो जगह-जगह पर पौधे सूखने लगे थे, पहले समझ में नहीं आया, सोचा कि तेज गर्मी हो रही है, इसलिए पानी में पौधे गलने लगने लगे होंगे, पौधों को पास से जाकर देखा तो पौधे गले नहीं थे। उन्हें उखाड़कर देखा तो उनकी बढ़वार ही रुक गई थी। तब कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. कुशवाहा के पास गए।”
कृषि विज्ञान केंद्र पर जाने पर पता चला कि निमेटोड (सूत्रकृमि) की वजह से फसल की वृद्धि रुक गई है। धान की फसल को नुकसान पहुंचाने वाले कीट और रोगों में निमेटोड भी होते हैं। निमेटोड की वजह से पौधों की वृद्धि रुक जाती है, जिससे उत्पादन पर असर पड़ता है। धान की फसल में ये परजीवी जड़ों पर असर डालते हैं।
कृषि विज्ञान केंद्र सहारनपुर के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. आईके कुशवाहा कहते हैं, “कई किसानों के खेत में निमेटोड का प्रकोप दिखायी दे रहा है। निमेटोड बहुत छोटे कीट होते हैं, जिन्हें खुली आंखों से नहीं देखा जा सकता है। ये फसल की जड़ों का रस चूसकर पौधों को कमजोर कर देते हैं, निमेटोड से प्रभावित पौधे मिट्टी से पूरी तरह से पोषक तत्व नहीं ले पाते हैं, इससे इनकी वृद्धि रुक जाती है और उत्पादन पर असर पड़ता है।”
फसल के लिए निमेटोड परजीवी की तरह होता है, जो मिट्टी या पौधे की ऊतकों में रहते हैं और जड़ों पर आक्रमण करते हैं। किसान इसकी पहचान आसानी से नहीं कर पाते और कीटनाशक रसायनों का छिड़काव कर करते हैं। इससे फसल को ही नुकसान होता है।
वो आगे कहते हैं, “निमेटोड धान की फसल को काफी नुकसान पहुंचाते हैं, से सूत्रकृमि कई महीनों तक मिट्टी में जिंदा रह सकते हैं। धान के साथ ही ये टमाटर, बैंगन जैसी सब्जियों की फसलों को भी नुकसाान पहुंचाते हैं। इससे प्रभावित पौधों की जड़ों में गांठ बन जाती हैं। इस कीट से प्रभावित धान की फसल में फुटाव में कमी, बालियों में बौनापन और दानों की संख्या में कमी आ जाती है।”
इस निमेटोड (सूत्रकृमि) की पहचान सबसे पहले धान की फसल में साल 1993 में हरियाणा में की गई थी, अब भी हर साल वहां पर धान की पैदावार प्रभावित करता है। धान के बीज के जरिए ये एक जगह से दूसरी जगह तक पहुंच जाते हैं।
निमेटोड प्रबंधन के बारे में डॉ. कुशवाहा बताते हैं, “निमेटोड से बचाव को लिए धान लगाने से पहले ही प्रबंधन शुरू हो जाता है। इसके लिए खेत में ढैंचा उगाकर उसे मिट्टी में अच्छी तरह से मिला देने से निमेटोड की संख्या में कमी आ जाती है। इसके साथ ही नीम की खली या सरसों की खली 225 किलो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से प्रयोग करने से अच्छा उत्पादन भी मिलता है और निमेटोड की संख्या में भी कमी आ जाती है।”
फसल में लक्षण दिखने पर पैसिलोमिस लीलसिनस (paecilomyces lilacinus) कवक निमेटोड के प्रकोप के अनुसार एक-दो लीट प्रति एकड़ के हिसाब से सड़ी हुई गोबर की खाद में मिलाकर शाम को खेत में बिखेर दें, इससे भी निमेटोड को नियंत्रित किया जा सकता है।