किसानों की आमदनी बढ़ाएंगी बासमती की नई किस्में, पुरानी किस्मों के मुकाबले मिलेगा ज्यादा उत्पादन

शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, जम्मू द्वारा विकसित बासमती की नई किस्मों की खेती जम्मू के साथ ही दूसरे भी कई राज्यों में कर सकते हैं।
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जम्मू के किसानों को अब सिर्फ बासमती पुरानी किस्म पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा, जिसकी गुणवत्ता तो अच्छी है, लेकिन उत्पादन बहुत कम मिलता है। ऐसे में वैज्ञानिकों ने बासमती की नई किस्में विकसित की हैं, जिनसे अच्छी पैदावार भी मिलेगी।

जम्मू-कश्मीर के कठुआ, जम्मू और सांबा जिलों में किसान पिछले कई साल से बासमती 370 किस्म की खेती करते आ रहे हैं, लेकिन इसमें उत्पादन उतना नहीं मिलता था। ऐसे में शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने बासमती की तीन किस्में विकसित की हैं, जिसकी गुणवत्ता तो बासमती 370 की तरह ही है, लेकिन उत्पादन काफी ज्यादा मिलता है।

जम्मू के कठुआ, जम्मू और सांबा में बासमती की खेती होती है। जम्मू के सुचेतगढ़ गाँव में धान की रोपाई करती महिलाएं। सभी फोटो: Jaipal Singh Bandra/Flickr

शेर-ए-कश्मीर कृषि विश्वविद्यालय, जम्मू के शोध विभाग के निदेशक डॉ जगपाल शर्मा गाँव कनेक्शन से नई किस्मों के बारे में बताते हैं, “अभी तक जम्मू में किसान बासमती 370 किस्म की खेती करते आ रहे हैं, जिसकी गुणवत्ता तो बहुत अच्छी है और विश्व स्तर पर यह किस्म प्रसिद्ध भी है, लेकिन इस किस्म का उत्पादन बहुत कम था। इसलिए हम इसका विकल्प ढूंढ रहे थे, जिसकी गुणवत्ता ऐसी ही हो, लेकिन उत्पादन इससे ज्यादा मिले।”

वो आगे कहते हैं, “कई साल के रिसर्च के बाद हमने बासमती की तीन नई किस्में, जम्मू बासमती 143, जम्मू बासमती 118 और जम्मू बासमती 123 विकसित की है, जिनकी गुणवत्ता तो 370 की तरह ही लेकिन उत्पादन बहुत ज्यादा मिलता है। यहां पर हर एक किसान धान का बीज अपने घर पर रखता है, जो सदियों से चला आ रहा है, इसलिए हमने उन्हीं किसानों से 143 अलग-अलग तरह के धान के बीज इकट्ठा किए, जिनसे हम ये तीन नई किस्में विकसित कर पाएं हैं। बासमती 370 बहुत अच्छी किस्म है, लेकिन कुछ कमियां थीं, जिसकी वजह से हमें नई किस्में विकसित करनी पड़ी।”

बासमती 370 से प्रति हेक्टेयर 20 से 22 क्विंटल उत्पादन मिलता था। नई किस्मों में सबसे अधिक देने वाली किस्म जम्मू बासमती 118 है, इसमें इसमें 45-47 क्विंटल प्रति हेक्टेयर धान का उत्पादन होता है। ये दूसरी किस्मों से जल्दी तैयार भी हो जाती है। बासमती 370 में उत्पादन भी कम मिलता था और इसकी ऊंचाई 150 से 160 सेमी थी, ज्यादा हवा चलने पर गिर जाती थी, जबकि जम्मू बासमती 118 बौनी किस्म है, जो गिरती नहीं है।

यहां पर पैदा होने वाला अपनी गुणवत्ता की वजह से विश्वभर में प्रसिद्ध है। Photo: Jaipal Singh Bandra/Flickr

इसके बाद दूसरी किस्म है, जम्मू बासमती 123 इसमें 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन मिलता है, इसमें सभी क्वालिटी 370 की तरह ही है, इसके दाने भी बड़े होते हैं।

तीसरी किस्म में 40 से 45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन मिलता है, ये दूसरी किस्मों से थोड़ी अलग होती है, इसके पौधो काफी लंबे होते हैं। बहुत किसान यहां पर कहते थे कि पशुओं के चारे के लिए पुआल की कमी हो जाती है, लेकिन इसके पुआल काफी ज्यादा मिलते हैं।

वो आगे कहते हैं, “जम्मू डिवीजन के आरएस पुरा, बिशनाह, अखनूर, संबा, हीरानगर और कठुआ तहसील में बासमती की खेती होती है। इनमें से आरएस पुरा क्षेत्र में बहुत सालों से बासमती की खेती हो रही है और यहां की बासमती काफी मशहूर भी है।”

विश्वविद्यालय ने जम्मू खरीफ सत्र 2020-21 में 400 किसानों को नई किस्मों के बीज ट्रायल के तौर पर दिए थे, जिनका अच्छा परिणाम भी मिला।

फोटो: Jaipal Singh Bandra/Flickr

भारत के सात राज्यों में हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और जम्मू कश्मीर के बासमती को जीआई टैग भी मिला हुआ है। जम्मू के साथ ही दूसरे राज्यों में नई किस्मों की खेती के बारे में डॉ शर्मा बताते हैं, “जिन राज्यों में बासमती के लिए जीआई टैग मिला हुआ है, वहां के किसान भी इन नई किस्मों की खेती कर सकते हैं, पंजाब और दूसरे राज्यों किसानों के तो फोन भी आने लगे हैं, अभी हमारे पर लिमिटेड बीज है, उसी से हम किसानों को बीज उपलब्ध कराएंगे।

शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, जम्मू कैंपस में हर वर्ष कृषि मेला का आयोजन हो रहा है, इस साल 16 मार्च से 20 मार्च तक किसान मेला लग रहा है, जहां से किसान बीज ले सकते हैं। “अभी हमारे पास 600 कुंतल के करीब बीज उपलब्ध है, हमने दो किलो की पैकिंग बना कर रखी है, हर किसान को दो किलो बीज दिया जाएगा। आने वाले साल में बीज की मात्रा बढायी जाएगी, जिससे ज्यादा से ज्यादा किसानों को बीज मिल सके, “डॉ शर्मा ने आगे कहा।

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