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वैज्ञानिकों ने विकसित की सोयाबीन की नई कीट प्रतिरोधी किस्म, मिलेगी बढ़िया पैदावार

सोयाबीन की अधिक उत्पादन देने वाली और कीट प्रतिरोधी किस्म को पूर्वोत्तर राज्यों के लिए आघारकर रिसर्च इंस्टीट्यूट ने विकसित की है।
#Soybean crop

वैज्ञानिकों ने सोयाबीन की नई किस्म विकसित की है, जिसकी खेती करने पर किसानों का कीटनाशक और दवाओं का खर्चा बचेगा और उत्पादन भी अच्छा मिलेगा।

आघारकर रिसर्च इंस्टीट्यूट (एआरआई), पुणे के वैज्ञानिकों सोयाबीन की नई किस्म एमएसीएस 1407 विकसित की है। यह किस्म असम, पश्चिम बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़ और पूर्वोत्तर राज्यों में खेती के लिए सही है।

एआरआई के वैज्ञानिक संतोष ए जयभाई इस नई किस्म की खासियत के बारे में बताते हैं, “अभी तक सोयाबीन की खेती मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र जैसे ज्यादातर होती है, इस नई किस्म को हमने असम, पश्चिम बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों के लिए विकसित किया है। अभी तक जिन किस्मों की खेती इन क्षेत्रों में होती थी, उनसे ये किस्म कई मामलों में बेहतर है।”

फोटो: एआरआई, पुणे

वो आगे बताते हैं, “इस किस्म की सबसे खास बात ये होती है कि गर्डल बीटल, लीफ माइनर, लीफ रोलर, स्टेम फ्लाई, एफिड्स, व्हाइट फ्लाई और डिफोलिएटर जैसे कई कीट-पतंगों का प्रतिरोधी भी है। ये किस्म 104 दिनों में तैयार हो जाती है और प्रति हेक्टेयर 39 क्विंटल मिलता है। जहां पर वर्षा आधारित खेती होती है वहां के लिए किस्म सही है।”

वर्ष 2019 में, भारत ने व्यापक रूप से तिलहन के साथ-साथ पशु आहार के लिए प्रोटीन के सस्ते स्रोत और कई पैकेज्ड भोजन के तौर पर सोयाबीन की खेती करते हुए इसका लगभग 90 मिलियन टन उत्पादन किया और वह दुनिया के प्रमुख सोयाबीन उत्पादकों में शुमार होने का प्रयास कर रहा है। सोयाबीन की अधिक उपज देने वाली और रोग प्रतिरोधी ये किस्में भारत के इस लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद कर सकती हैं।

वैज्ञानिकों ने पारंपरिक क्रॉस ब्रीडिंग तकनीक का उपयोग करके एमएसीएस 1407 को विकसित किया, जोकि प्रति हेक्टेयर में 39 क्विंटल का पैदावार देते हुए इसे एक अधिक उपज देने वाली किस्म बनाता है। इसके पौधों का तना मोटा होता है और इनकी फलियां बिखरती नहीं है, इसलिए यांत्रिक विधि से कटाई के लिए उपयुक्त रहता है।

फोटो: एआरआई, पुणे

“20 जून से 5 जुलाई के बीच इस किस्म की बुवाई कर सकते हैं, क्योंकि इस समय मानसून आ जाता है, जिससे इसकी अच्छी वृद्धि हो जाती है, “संतोष जयभाई ने आगे बताया।

एमएसीएस 1407 किस्म में बुवाई से 43 दिनों फूल आ जाते हैं और फसल तैयार होने में 104 दिन लग जाते हैं। इसमें सफेद रंग के फूल, पीले रंग के बीज और काले हिलम होते हैं। इसके बीजों में 19.81 प्रतिशत तेल की मात्रा, 41 प्रतिशत प्रोटीन की मात्रा होती है और यह अच्छी अंकुरण क्षमता दर्शाती है।

अधिक उपज, कीट प्रतिरोधी, कम पानी और उर्वरक की जरूरत वाली और यांत्रिक कटाई के लिए उपयुक्त सोयाबीन की इस किस्म को हाल ही में भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत आने वाली फसल मानकों से जुड़ी केन्द्रीय उप–समिति, कृषि फ़सलों की किस्मों की अधिसूचना और विज्ञप्ति द्वारा जारी किया गया है और इसे बीज उत्पादन और खेती के लिए कानूनी रूप से उपलब्ध कराया जा रहा है।

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