लखनऊ। किसानों के लिए अच्छी ख़बर है, वैज्ञानिकों ने सरसों की नई किस्म विकसित की है, जो कम पानी में पैदा होगा। चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय ने सरसों की नई किस्म आर एच 725विकसित की है। यह किस्म शुष्क क्षेत्रों में समय पर बिजाई की स्थिति के लिए उत्तम किस्म है। ऐसे क्षेत्र जहां पानी की कमी है, वहां ये फसल आसानी से लहलहाएगी, जिससे किसानों को काफी लाभ होगा।
कुलपति प्रो. के.पी. सिंह ने बताया कि विश्वविद्यालय के तिलहन वैज्ञानिकों ने सरसों की आर एच 725किस्म विकसित की है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् के सहायक महानिदेशक (तिलहन व दलहन) डॉ. एस.के. चतुर्वेदी की अध्यक्षता में हाल ही में जयपुर में फसल किस्म पहचान कमेटी की हुई बैठक में इस किस्म के विभिन्न गुणों के दृष्टिगत हरियाणा, पंजाब, जम्मु, दिल्ली और उत्तरी राजस्थान के शुष्क क्षेत्रों में समय पर बिजाई के लिए इसकी पहचान की गई है। उन्होंने उम्मीद जताई कि अधिक उत्पादन तथा तेल की अधिक मात्रा के कारण यह किस्म अन्य किस्मों की अपेक्षा उपरोक्त राज्यों में अधिक लोकप्रिय होगी जिससे तिलहन उत्पादन में वृद्धि के साथ किसानों की आर्थिक स्थिति भी मजबूत होगी।
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यहां उल्लेखनीय है कि सरसों की इस नई किस्म को तिलहन वैज्ञानिकों डॉ. धीरज सिंह, डॉ. नरेश ठकराल, डॉ. राम अवतार, डॉ. आर.के. श्योराण, डॉ. यशपाल यादव, डॉ. पी.के. वर्मा, डॉ. अशोक छाबड़ा व डॉ. सुभाष चन्द्र ने डॉ. अजीत सिंह राठी, डॉ. सुनीता यादव, डॉ. सुरेश कुमार, निशा कुमारी, अनीता कुमारी व डॉ. मनमोहन के सहयोग से तैयार किया है। कुलपति ने इन वैज्ञानिकों के इस उत्कृष्ट कार्य की प्रशंसा करते हुए आशा व्यक्त की कि वे भविष्य में और ज्यादा उन्नत किस्में विकसित कर देश में तिलहन उत्पादन एवं उत्पादकता बढ़ाने के लिए प्रयास जारी रखेंगे। उन्होंने कहा कि तिलहन अनुभाग के वैज्ञानिकों द्वारा अब तक विकसित की गई विभिन्न उन्नत किस्मों की बदोलत आज हरियाणा सरसों की उत्पादकता में देश में अग्रणी राज्य है।
अनुसंधान निदेशक डॉ. एस.के. सेठी ने आर एच 725 की विशेषताओं बारे बताया कि यह किस्म लगभग 136-143 दिन में पककर तैयार हो जाती है जिसकी औसत पैदावार 25-26 क्ंिवटल प्रति हैक्टेयर है। इस किस्म की फलियां लम्बी और इसमें दानों की संख्या अधिक होती है जिसके कारण अन्य उन्नत किस्मों की अपेक्षा इस किस्म की लगभग 22.6 प्रतिशत अधिक पैदावार है। इस किस्म का दाना आकार में बड़ा है जिसमें तेल की मात्रा लगभग 40 प्रतिशत होती है।
उधर, तिलहन अनुभाग के अध्यक्ष डॉ. आर.के. श्योराण ने बताया कि हकृवि के तिलहन अनुभाग की देश के सर्वश्रेष्ठ अनुसंधान केन्द्रों में गिनती होती है। यहां के वैज्ञानिकों ने अब तक सरसों तथा राया की 12 उन्नत किस्में विकसित करके किसानों को दी है जिनमें से अधिकांश किस्मों की अन्य राज्य में भी बीजाई की जा रही है।