नीलम, गरिमा, श्वेता और पार्वती बढ़ाएंगी अलसी की खेती
Ashwani Nigam 13 Oct 2017 4:36 PM GMT
लखनऊ। तिलहन की प्रमुख व्यावसायिक फसल अलसी यानि तीसी की खेती देश में लगातार घट रही थी ऐसे में इस बार के रबी सीजन की प्रमुख फसल अलसी की खेती को बढ़ाने के लिए नई किस्मों को जारी किया गया है। नीलम, गरिमा, श्वेता, शुभ्रा लक्ष्मी-27, पद्मिनी और पार्वती नाम से अलग-अलग क्षेत्रों के लिए अलसी की नई किस्मों को जारी किया गया है।
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नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यलाय के कृषि वैज्ञानिक डा. ए.के. सिंह ने बताया '' अलसी की बुवाई करने का अक्टूबर का मध्य सही समय होता है। देश में अलसी की वैज्ञानिक खेती को बढ़ावा देने लिए जो नई किस्में जारी की गईं है किसान उसकी बुवाई करके लाभ कमा सकते हैं। '' पूरे देश में अलसी की खेती सबसे ज्यादा उत्तर प्रद्रेश और मध्यप्रदेश में की जाती है। देश में पैदा होने वाला कुल अलसी का 60 प्रतिशत इन्हीं दोनों प्रदेशों में होता है।
उन्होंने बताया कि अलसी की खेती मटियार व चिकनी दोमट मिट्टी में सफलता पूर्वक की जा सकती है। खरीफ की फसले काटने के बाद एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए और उसके बाद कल्टीवेटर अथवा देशी हल से दो बार जुताई करके खेत अच्छी तरह समतल कर लेना चाहिए।
अलसी बोने के लिए बीज की मात्रा प्रति हेक्टेयर 25 से 30 किलोग्राम होनी चाहिए। असिंचित क्षेत्र में अच्छी उपज के लिए प्रति हेक्टेयर नाईट्रोजन 50 किलोग्राम ,फास्फोरस 40 किलोग्राम और पोटाश 40 किलोग्राम डालना चाहिए।
सिंचित क्षेत्रों के लिए 100 किलोग्राम नाइट्रोजन और 75 किलोग्राम फास्फोरस प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए। अलसी की फसल में झुलसा और उकठा रोग का खतरा रहता है। ऐसे में यह बीमारियां इस फसल में न लगे इसके लिए बीज शोधन करना बहुत जरूरी है। बीज शोधन के लिए बीज को 2.5 ग्राम थिरम या 2 ग्राम कैप्टन या दो ग्राम कार्बोन्डाजिम से प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचार करके बोना चाहिए।
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अलसी की खेती के लिए कम सिंचाई की जरुरत पड़ती है। देश में वह क्षेत्र जहां पर सिंचाई की कम सुविधा है वहां पर इसकी अच्छी खेती हो सकती है। उत्तर प्रदेश में बुंदेलखंड में हालांकि इसकी खेती हो रही है लेकिन इसकी खेती को यहां पर और अधिक बढ़ाया जा सकता है। देश के वह क्षेत्र जहां पर आवारा पशुओं खासकर नीलगाय के आतंक से खेत में खड़ी फसलों को खतरा है वहां पर अलसी की खेती बेहतर विकल्प है, क्योंकि इसकी खेती को पशु नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। अलसी के पौधे के तने में सेल्यूलोज युक्त एक रेशा पाया जाता है। जिसके कारण इसके पौधे केा अगर पशु खाता है तो यह उसके गले की फंसने की संभावना रहती है। यह झाड़ीयुक्त फसल होती है जिसके कारण भी इसको चरन से पशु बचते हैं।
अलसी देश के कुटीर उद्योग भी एक नई दिशा दे सकती है। अलसी के ठंडल में रेशे पाए जाते हैं जिनसे बैग्स, दरी और मोटे वस्त्र भी बनते हैं। इसको लिनेन फाइबर भी कहते हैं। हिमांचल प्रदेश में इसके अलसी के रेश से बनने वाले कपडों केा लेकर बड़ी-बड़ी ईकाइयां काम कर रही हैं।
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