लखनऊ। “मैंने ढाई बीघे खेत में लौकी लगाई है। पिछले एक महीने से रोजाना 200-300 लौकियां निकल रही हैं। अभी ये एक महीना कम से कम और चलेंगी। क्योंकि मैंने समतल खेत की जगह स्टेकिंग (तारों) पर खेती की है, इससे करीब चार गुना तक उत्पादन बढ़ जाता है।” अपने खेत में लौकी काटते किसान अश्वनी वर्मा बताते हैं।
प्रगतिशील किसान अश्वनी वर्मा, उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से करीब 65 किलोमीटर दूर बाराबंकी जिले से बेलहरा के पास गंगापुर गाँव में रहते हैं। गंगापुर सुमली नदी की तराई में बसा है।
खरीफ के सीजन गंगापुर और उसके आसपास के दर्जनों को गाँवों के करीब 90 फीसदी किसान धान की खेती करते हैं। कुछ किसान सब्जियों की खेती करते भी हैं, लेकिन उन्हें इस बार भारी बारिश से नुकसान हुआ है। लेकिन अश्वनी की फसल न सिर्फ लहलहा रही, बल्कि वो अच्छा मुनाफा भी कमा रहे हैं।
अश्वनी वर्मा ने पिछले कुछ वर्षों में यहां नई-नई तरकीबों से खेती शुरू की है। साल में दो बार तरबूज की खेती करने वाले अश्वनी वर्मा ने गर्मियों के सीजन में तरबूज के खेत में ही लौकी बोई थी, जिससे न सिर्फ उनकी लौकी अगैती रही बल्कि स्टेकिंग के चलते भारी बारिश के बावजूद पौधों को नुकसान नहीं पहुंचा और उत्पादन अच्छा मिल रहा है।
“ज्यादातर किसान कद्दू वर्गीय सब्जियों को समतल खेत में सीधे बो देते हैं। अगर ज्यादा बारिश होती है तो पूरी फसल चौपट हो जाती है, जैसा आपने कई खेतों में देखा होगा। मैंने नालियों में लौकी बोई थी और उसके ऊपर बांस गाड़ कर तारों का झाल बना दिया था, इससे मेरे हर पौधे को अच्छी बढ़त मिली है और पर्याप्त हवा-पानी मिलने के साथ एक-एक फल ताजा और स्वस्थ है।” लौकी की एक बेल को दिखाते हुए वो बताते हैं।
स्टेकिंग में एक बार लगती है लागत लेकिन उत्पादन 4 गुना ज्यादा
अश्वनी वर्मा के मुताबिक स्टेकिंग या बाड़ विधि से खेती करने में शुरुआत में थोड़ी लागत आती है क्योंकि बांस और तार-रस्सी आदि खरीदना पड़ता है लेकिन वो बार-बार काम आता है।
अश्वनी बताते हैं, “एक एकड़ की फसल के लिए अगर आप स्टेकिंग (तार के सहारे) या बाड़ (जमीन से ऊपर पूरे खेत में कुछ जाल जैसा) बनाते हैं तो करीब 30-35 हजार रुपए प्रति एकड़ का खर्चा आता है, लेकिन आपका उत्पादन तीन से चार गुना बढ़ जाता है, दूसरा ज्यादा बारिश का भी असर नहीं होता है, तो ये हर तरह से मुनाफे का सौदा है।”
लौकी, कद्दू, तरोई और करेला जैसी सब्जियों से एक ही सीजन में अच्छी कमाई की जा सकती है। लेकिन ज्यादातर किसान इन फसलों को समतल खेत में ही बुवाई कर देते हैं। खरीफ के सीजन में अगर ज्यादा बारिश हो गई और जलभराव हुआ तो इसके पौधे गल जाते हैं।
“कद्दू वर्गीय पौधे काफी कोमल होते हैं, इसके तनों में पानी नहीं लगना चाहिए। बारिश के दौरान अगर ज्यादा पानी हुआ तो इसके कोमल तने गल जाते हैं, जड़ों में रोग लग जाते हैं और अगर फल पानी के संपर्क में आए तो वो भी सड़ जाते हैं इसलिए किसानों के लिए बाड़ या स्टेकिंग जैसी कोई विधि जरूर अपनाएं।”केवीके सीतापुर के फसल सुरक्षा वैज्ञानिक डॉ. दया शंकर श्रीवास्तव बताते हैं।
अश्वनी वर्मा (41 वर्ष) अपने इलाके में नई पद्धतियों से खेती के लिए जाने जाते हैं। अमूमन तरबूज को गर्मियों की फसल कहा जाता है लेकिन वो सर्दियों में तरबूज की तैयारी कर रहे हैं और सितंबर महीने के पहले हफ्ते में मक्का काटकर तरबूज लगाएंगे। वह साल में दो बार तरबूज की खेती करते हैं। पिछले वर्ष उन्होंने दिसंबर में लोटनल विधि से तरबजू बोए थे। लोटनल और मल्च के जरिए उनकी फसल काफी पहले तैयार हो गई थी, जिससे उन्हें मार्केट में अच्छे रेट मिले थे।
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एक महीने पहले तैयार हो जाती है फसल
किसान अश्वनी बताते हैं, “लो टनल (पॉलीथीन से कवर नालियां) और मल्च के इस्तेमाल से हमारी फसल दूसरे किसानों की अपेक्षा एक महीने पहले तैयार हो जाती है। मिट्टी पर पॉलीथीन की मल्चिंग के बाद उसमें बीज बोए जाते हैं फिर उसे पॉलीथीन से ढक देते हैं। इससे अंदर का तापमान बाहर के तापमान में 10-15 डिग्री ज्यादा होता है तो अंकुरण बहुत तेज होता और पौधे भी सुरक्षित रहते हैं। मौसम अनुकूल होने पर लो टनल को हटा दिया जाता है।”