बाराबंकी(उत्तर प्रदेश)। बाराबंकी जिले का नाम आते ही यहां की मेथा की खेती की बात जरूर चलती है, यहां के किसान बड़े पैमाने पर मेंथा की खेती करते हैं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से तरबूज की खेती किसानों को भाने लगी और आलम यह है कि इस बार जिले में तरबूज की बड़े पैमाने पर खेती की जा रही है।
जिला मुख्यालय से 38 किलोमीटर दूर तहसील फतेहपुर में इस बार करीब 200 हेक्टेयर से भी ज्यादा क्षेत्रफल तरबूज की खेती की जा रही है, कभी इस क्षेत्र में मेथा की बड़े पैमाने पर खेती की जाती थी।
तरबूज की खेती राजस्थान, गुजरात ,महाराष्ट्र ,आंध्र प्रदेश के साथ ही उत्तर प्रदेश में भी बड़े पैमाने पर की जा रही है। बाराबंकी जिला उद्यान अधिकारी महेंद्र कुमार ने बताते हैं, “तरबूज की खेती में अच्छा मुनाफा होने के कारण इस बार किसानों ने जिले में बड़े पैमाने पर तरबूज की खेती शुरू कर दी है। लगभग 400 हेक्टेयर क्षेत्रफल में तरबूज की खेती जिले में होने का अनुमान है जिसका उत्पादन 14400 टन का होगा।”
तरबूज की खेती करने वाले दुन्दपुर निवासी बबलू चौहान बताते हैं, “हम सब लोग मेथा की खेती करते थे, जिसमें अधिक पानी की आवश्यकता पड़ती थी और मेहनत भी ज्यादा लगती थी। लेकिन तरबूज की खेती में पानी की कम आवश्यकता रहती है और मेहनत भी कम होने के बावजूद भी मेंथा से कई गुना ज्यादा मुनाफा हमें तरबूज की फसल में मिलता है।”
आगे बताते हैं कि शुरू-शुरू में सात आठ वर्ष पहले लगभग सात साल पहले हमारे क्षेत्र में मात्र एक एकड़ क्षेत्रफल में तरबूज की खेती शुरू हुई थी, जो अब करीब 200 हेक्टेयर से भी ज्यादा क्षेत्रफल में तरबूज की खेती शुरू हो गई है। अब हर किसान इस मौसम में तरबूज की खेती करना ही पसंद कर रहा है कारण कम लागत और अच्छा मुनाफा है।
वहीं केशराई पुरवा के अलीमुद्दीन जो पिछले कई सालों से तरबूज की खेती करते आ रहे हैं बताते हैं, “हमने करीब पांच साल पहले सिर्फ एक एकड़ क्षेत्रफल से तरबूज की खेती शुरू की थी, लेकिन हमें जैसे-जैसे अच्छा मुनाफा होता गया वैसे-वैसे हमने तरबूज की खेती का क्षेत्रफल बढ़ाते चले गए इस वक्त हमारे पास आठ एकड़ क्षेत्रफल में तरबूज की खेती हो रही है।”
वो आगे बताते हैं कि तरबूज की खेती फरवरी के प्रथम सप्ताह से लेकर फरवरी के अंत तक बुवाई हम लोग कर देते हैं इसकी खेती के लिए 10 से 12 फीट की दूरी पर नाली बनाते हैं नालों के दोनों सतहों पर करीब एक फीट की दूरी पर बीज को बोया जाता है अधिकतर किसान मल्चिंग का इस्तेमाल करते हैं जिससे नमी बनी रहती है और अनावश्यक खरपतवार भी नहीं पैदा होते हैं।
वहीं तरबूज की खेती करने वाले किसान नारायण मुनाफे का गणित बताते हैं, “एक एकड़ में करीब 25000 रुपए की लागत आती है और अगर अच्छा उत्पादन हो जाए तो 150 कुंतल तक का उत्पादन हो जाता है। हमारा तरबूज बाजार में 1500 रुपए कुंटल से लेकर 3000 रुपए कुंतल तक बिक जाता है, जिससे लगभग एक एकड़ में एक लाख का शुद्ध मुनाफा होने की संभावना रहती है जबकि मेंथा में खूब मेहनत करने के बाद भी एक एकड़ में 30 से 40 हजार से ज्यादा का मुनाफा नहीं होता था।”
कृषि विशेषज्ञ सिद्धार्थ मिश्रा बताते हैं, “बीजों को बोने से पहले थीरम ढाई ग्राम रसायन प्रति किलो बीज की दर से उपचारित कर लेना चाहिए। इससे फफूंद से लगने वाले विभिन्न रोगों से फसल का बचाव होता है। इसके अतिरिक्त बीज को बोने से पहले अगर 24 घंटे पानी में भिगोकर रख दिया जाए तो अंकुरण जल्दी और अच्छा होता है और पूरे फसल काल में किसान की फसल लगभग चार से पांच दिन जल्दी तैयार होती है।
इसके अलावा तरबूज की फसल में खरपतवार नियंत्रण का भी महत्वपूर्ण स्थान है। हालांकि अगर मल्चिंग करके उठी हुई क्यारियों में बुवाई की जाए तो खरपतवार काफी हद तक कम होते हैं फिर भी खरपतवार नियंत्रण के लिए ब्यूटाक्लोर नामक रसायन की 2 लीटर मात्रा को 500 लीटर पानी में घोलकर फ्लैट फैन नोजल स्प्रेयर से अंकुरण से पूर्व छिड़काव करें।
वो आगे बताते हैं कि तरबूज में विभिन्न प्रकार के कीटों का प्रकोप होने की आशंका रहती है, जिससे बचने के लिए नियमित खेत की निगरानी करना बहुत आवश्यक है। तरबूज की फसल में लगने वाला प्रमुख कीट रेड पम्पकिन बीटल है, इसके कैटरपिलर पौधों की जड़ों को काटते हैं जबकि वयस्क कीट पत्तियों को खाकर नुकसान पहुंचाते हैं। इसके नियंत्रण के लिए कार्बारिल डस्ट 20 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से बुरकाव करना चाहिए।
दूसरा कीट फल मक्खी है जोकि फलों में छेद करके फलों की गुणवत्ता को खराब कर देती है। इसके नियंत्रण के लिए मैलाथियान 50 ईसी रसायन को 1000 लीटर पानी में घोलकर संक्रमित फसल पर छिड़काव करना चाहिए जैविक तरीके में फेरोमेन ट्रैप का प्रयोग किया जा सकता है। फलों के ससमय तुड़ाई और विपणन पर भी विशेष ध्यान देना चाहिए जिससे किसान को अच्छी आय प्राप्त हो सके।