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जामुन की नई किस्म ‘जामवंत’, जिसमें होगी नाममात्र की गुठली

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लखनऊ। बहुत जल्द ही ऐसी जामुन खाने को मिलेगी, जिसमें 90 प्रतिशत से अधिक गूदा पाया जाता है और नाममात्र की गुठली होती है। यही नहीं ये किस्म एंटीडायबिटिक और बायोएक्टिव यौगिकों में भरपूर है।

केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के वैज्ञानिकों ने जामुन की नई किस्म ‘जामवंत’ विकसित की है, संस्थान के अनुसंधान सलाहकार समिति के अध्यक्ष डॉ. बीएस चुंडावत, गुजरात कृषि विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति ने इसे वाणिज्यिक खेती के लिए जारी किया। विमोचन से पहले इस किस्म की उपज और गुणवत्ता के लिए विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में परीक्षण में इसे उत्तम पाया गया।

संस्थान के पास बेहतर जामुन किस्मों का एक बड़ा संग्रह है, जिसमें से अत्यधिक विविधता विधमान है। सीआईएसएच–जामवंत ताजे फल और प्रसंस्करण दोनों के लिए उपयुक्त है। इसका अधिक गूदा प्रतिशत और छोटी गुठली उपभोक्ताओं को आकर्षित करती है और ग्राहक भुगतान की बेहतर वापसी संतुष्ट रहता है। किस्म की गुणवत्ता से प्रभावित आईटीसी ने अलीगढ़ में इसके क्लस्टर प्लांटेशन को बढ़ावा दिया ताकि मूल्यवर्धित उत्पाद बनाने के लिए कच्चा माल आसानी से उपलब्ध हो सके।

संस्थान ने इन किसान समूहों को स्थापित करने में मदद की और किसानों को जामुन के व्यावसायिक उत्पादन के लिए प्रशिक्षित किया। सीआईएसयच को देश के अधिकांश हिस्सों से हजारों की संख्या में ग्राफ्ट की नियमित मांग मिल रही है और इसके रिलीज होने से पहले ही परीक्षण के लिए कई बाग लगाए जा चुके हैं। आजकल जामुन पॉश बाजारों में अच्छा पैसा कमा रहा है और जामवंत के स्वादिष्ट फल अपने बोल्ड आकार, गूदे और नगण्य कसैलेपन के कारण आकर्षित करने के लिए विशेष रूप से उपुक्त हैं। विशेष रूप से जामुन में कसैलेपन की समस्या से मुक्त हैं।


संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. आनंद कुमार सिंह बताते हैं, “जामुन में बहुत विविधता है क्योंकि जामुन को बीज के माध्यम से व्यापक रूप से प्रसारित किया जाता रहा है। सीआईएसएच ने जामुन में वेज ग्राफ्टिंग तकनीक का मानकीकरण किया। देश के प्रमुख जामुन उत्पादक क्षेत्रों में सर्वेक्षण के परिणामस्वरूप एकत्र किए गए विभिन्न बेहतर जामुन प्रकारों को ग्राफ्टिंग तकनीक के माध्यम से संरक्षित किया गया था। संस्थान में जामुन की किस्मों की काफी संख्या है, जिसमें से 90% से अधिक गूदे की अनूठी विशेषता के कारण ‘जामवंत’ की पहचान की गई थी। चयनित पौधों को देश के विभिन्न भागों में परीक्षण के लिए दिया गया। संस्थान ने लगभग दो दशक पहले चयन के माध्यम से जामुन की किस्म विकसित करने पर काम करना शुरू किया।

जामुन की बढ़ती खपत और लोकप्रियता किसानों को इसकी व्यावसायिक खेती के लिए प्रेरित कर रही है। उपभोक्ताओं की मांग के कारण सड़क के किनारे पर उगने वाले पेड़, अनजान भूमि या बंजर भूमि में लगे वृक्ष का ही उत्पादन बाज़ार में आ रहा हैं। नया बाग लगाने के लिए किसान संसथान से जामुन की अच्छी किस्म की मांग करते हैं, क्योंकि वे अबतक ज्यादातर अपने आप उगे या बीजू पेड़ों पर निर्भर थे।

कुछ दशक पहले, मानक किस्में उपलब्ध नहीं थीं क्योंकि जामुन बीज के माध्यम से उगाया गया था, जाहिर है कि फलों में बहुत भिन्नता होगी। विभिन्न स्थानों पर प्रसिद्ध जामुन के कई प्रकार पौधों का जन्म मौजूदा बीजू पौधों के उपयोग का परिणाम है। अद्वितीय जामुन के पेड़ों के मालिक पौधे बना कर पौधे बांटने में सक्षम नहीं थे, क्योंकि इस फल के लिए ग्राफ्टिंग तकनीक उपलब्ध नहीं थी।

इसकी खेती में बढ़ती मांग और इच्छुक लोगों की संख्या ने इसे भविष्य की फसल बना दिया है। अधिकांश लोग स्वाद के लिए इसका सेवन नहीं करते हैं, उन्हें जामुन के मधुमेह रोधी और कई औषधीय गुणों में रुचि है। यह गुण इसे मई से जुलाई के दौरान मधुमेह के लिए दैनिक उपयोग का फल बनाता है।

किस्मों की अनुपस्थिति में, एक दशक से अधिक समय तक प्रतीक्षा करके भी बीजू पौधों के बाग़ से अच्छे फलों की कोई निश्चितता नहीं है| इसलिए किसानों व्यवसाइक वृक्षारोपण के लिए आकर्षित नहीं होते थे। ग्राफ्टिंग तकनीक ने काम को सरल बना दिया है क्योंकि 5 साल के भीतर ग्राफ्टेड पौधे फल देने लगते हैं। छोटे आकार के पेड़ को बनाने की तकनीक संस्थान में विकसित की गई है।

“जामवंत” की बढ़ती मांग के साथ, संस्थान हजारों की संख्या में ग्राफ्टेड पौधे तैयार कर रहा है और इच्छुक किसानों ने पहले से ही इस पौधों को प्राप्त करके करके बाग़ लगाया है। इस तरह से बड़े पैमाने पर लगे बागों से जामवंत के फल बाजार में अधिक मात्रा में आना संभव हैं और साथ ही प्रसंस्करण उद्योग के लिए भी उत्तम क्वालिटी का कच्चा माल उपलब्ध होगा।

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