किसानों की आय दोगुनी करने के पीएम मोदी के वादे की राह में अड़ंगे ही अड़ंगे

Ashwani NigamAshwani Nigam   5 Nov 2017 5:48 PM GMT

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किसानों की आय दोगुनी करने के पीएम मोदी के वादे की राह में अड़ंगे ही अड़ंगे2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने के सरकार लगातार कर रही है वादे।

अश्वनी निगम/अरविंद शुक्ला

नई दिल्ली। देश की मौजूदा एनडीए सरकार लगातार इस बात को दोहराती रही है कि साल 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करनी है। लेकिन दिल्ली के बाहर दूरदराज के इलाकों से जो ख़बरें आती हैं वो कुछ और इशारा करती हैं।

देश में सबसे ज्यादा खेती, सबसे ज़्यादा किसान और सबसे ज्यादा पैदावार वाले उत्तर प्रदेश के हजारों कोल्ड स्टोर भरे पड़े हैं और खरीदार नहीं मिल रहे। पिछले वर्ष 23 रुपए किलो बीज खरीदकर बोने वाले आलू किसानों ने इस बार 2 रुपए में अपनी उपज बेची है और आलू से तौबा कर ली है। जिन किसानों ने आलू बोया भी है उन्होंने रकबा कम कर लिया है।

यूपी की कन्नौज बेल्ट में आलू के बीज की कीमत 40 फीसदी से ज्यादा गिरी है। पिछले वर्ष बंपर आलू उगाने वाले बाराबंकी जिले के एक किसान नरेंद्र शुक्ला ने इस बार सिर्फ 5 बीघे आलू बोया है वो बताते हैं, पिछले वर्ष 25 बीघा बोया था, करीब 2 लाख का नुकसान हुआ था, इसलिए बस बीज भर का बोया है।" किसान की आमदनी के सवाल पर वो कहते हैं, " आमदनी छोड़िए किसान अपनी लागत नहीं निकाल पा रहा है।"

किसान के खेत में माटी मोल, बाजार जाते ही इतनी महंगाई कहां से आती है ?

सिर्फ आलू ही नहीं, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र का प्याज किसान परेशान रहा है। मूंगफली की खेती करने वाले राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश और यूपी के किसान मौसम और सरकार की उदासीनता के शिकार हैं। कम बारिश होने से एक तो पैदावार कम हुई है, ऊपर से सरकार की तय एमएसपी पर बिक्री नहीं हो रही है। राजस्थान के बीकानेर के किसान आसूराम गोदारा की मानें तो मूंगफली किसान इस बार जमा नहीं निकाल पाएगा।

ये किसान सवाल करते हैं, "जहां दो महीने पहले प्याज 2 रुपए किलो था वो 50 रुपए में कैसे पहुंचा और फिर सड़क पर फेंका जा रहा टमाटर 100 रुपए में कैसे बिक सकता है। यहांं किसान कैसे कमाई कर पाएंगे, क्योंकि इन बढ़ी कीमतों का फायदा किसान नहीं उठा पाते।

केंद्र की योजनाएं धरातल पर कितना उतरती हैं, ये जानने के लिए 36 हजार करोड़ का कर्ज माफ कर चुके उत्तर प्रदेश में लखनऊ जिले के किसान संतराम (45 वर्ष) का जवाब पढ़िए, "हर साल खेती की लागत बढ़ रही, उपज भी अच्छी हो रही है, लेकिन उपज का भाव अच्छा नहीं मिल रहा। दूसरा कुछ काम नहीं कर सकते इसलिए खेती कर रहे हैं, मौका मिले तो खेती छोड़ दूंगा।"

धान काटते किसान।


केंद्रीय कृषि मंत्रालय किसानों की आय दोगुनी करने के लिए जिस प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, मृदा स्वास्थ्य कार्ड और कृषि बाजार में सुधार की योजनाओं का अपनी बड़ी उपलब्धि बता रही है, मगर जमीनी हकीकत यह है कि अधिकतर किसानों तक यह योजना पहुंची ही नहीं है। संतराम आगे बताते हैं, "कृषि विभाग की किसी भी योजना का लाभ हमें नहीं मिल रहा है। चक्कर लगाए पर फसल बीमा नहीं हो पाया।"

संतराम जैसे अधिकतर किसानों का यही हाल है। लखनऊ से 400 किलोमीटर दूर ललितपुर के ग्राम टीकरा तिवारी, कचनौंदाकला के रमेश तिवारी बताते हैं, "10 बीघा खेत में पिछले साल उर्द लगाया था, कर्ज लेकर खाद पानी की व्यवस्था की थी, लेकिन अच्छी उपज के बाद सिर्फ इतनी आय हुई कि किसी तरह कर्ज दे पाया।" आगे कहा, "दोगुनी आय छोड़िए जो थोड़ी बहुत आमदनी है वह भी दिनों-दिन घट रही है।"

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से करीब 1400 किलोमीटर दूर गुजरात के भाव नगर के ऊंचड़ी गाँव में रहने वाले लवजी भाई नाकराणी की बातों में देशभर के किसानों दर्द का दर्द झलकता है। फोन पर वो गांव कनेक्शन को बताते हैं, "जब किसी फैक्ट्री मालिक एक स्क्रू बनाता है, जो उसे पता होता है कितना मुनाफा मिलेगा, लेकिन किसान अनुमान पर जिंदा रहता है। उसे नहीं पता होता है जो अनाज उसके खेतों में तैयार हो रहा है वो कितने में बिकेगा, या फिर बिकेगा ही नहीं।"

लवजी भाई मूंगफली और कपास की खेती में पिछले कई वर्षों से घाटा उठा रहे हैं। वो आगे बताते हैं, किसान को फसल से मुनाफा शायद ही कभी हो, क्योंकि सरकार की नीतियां सही नहीं है। मैं पिछले 10 वर्षों से मूंगफली और कपास में किसानों की बदतर हालत देख रहा हूं। कारोबारी सिंडीकेट चला रहे हैं।"

लवजी भाई उसी सिंडीकेट की तरफ इशारा कर रहे हैं, जो किसानों से सस्ते में उपज खरीदता है और फिर स्टोर कर कई गुना कीमत पर बाजार में बेचता है।

खेती की लागत बढ़ रही है। सरकार जानबूझकर कृषि को किसानों के लिए घाटे का सौदा बना रही है ताकि किसान खेती-बाड़ी छोड़ दें और फिर कृषि कॉर्पोरेट के लिए बेतहाशा फ़ायदे का सौदा हो जाए।
पी. साईनाथ, रेमन मैग्सेसे पुरस्कार विजेता पत्रकार

किसानों की आय दोगुनी करने के दावे को कृषि से जुड़े विशेषज्ञ भी हवा-हवाई बता रहे हैं। किसानों के मुद्दे पर लिखने वाले देश के जाने-माने पत्रकार पी. साईनाथ कहते हैं, "देश में बीज, उर्वरक, कीटनाशक और साथ ही कृषि यंत्रों की कीमत तेजी से बढ़ी है, जिसका नतीजा है कि कृषि लागत तेजी से बढ़ी है, लेकिन सरकार अपनी ज़िम्मेदारियों से बच रही है। सरकार जानबूझकर कृषि को किसानों के लिए घाटे का सौदा बना रही है ताकि किसान खेती-बाड़ी छोड़ दें और फिर कृषि कॉर्पोरेट के लिए बेतहाशा फ़ायदे का सौदा हो जाए।"

उत्तर प्रदेश कृषि विभाग की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, यूपी के किसानों की औसत मासिक आय मात्र 4,923 रुपए है, जो किसानों की राष्ट्रीय मासिक औसत आय 6,426 से कम है। वहीं, किसान का मासिक खर्च 6230 रुपए है, जो उसकी मासिक आय से 1307 रुपए अधिक है। ऐसे में प्रदेश का किसान हर महीने कर्जदार हो रहा है।

अच्छी उपज के बाद जो आय हुई उससे किसी तरह कर्ज दे पाया। दोगुनी आय छोड़िए जो थोड़ी बहुत आमदनी है वह भी दिनों-दिन घट रही है।
रमेश तिवारी, (40 वर्ष) ग्राम टीकरा तिवारी, ललितपुर

यह पूछने पर कि केंद्र सरकार वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने की बात कह रही है, क्या यह संभव है, उसके जवाब में इलाहाबाद जिले के दांडी गाँव निवासी गोविंद पासवान बताते हैं, "ऐसा कोई ठोस कदम सरकार की तरफ से नहीं दिखा जिससे यह सपना पूरा होता मान लिया जाए कि वर्ष 2022 तक हम किसानों की आय दोगुनी हो सकती है।"

किसानों के अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले स्वराज इंडिया के संयोजक योगेन्द्र यादव बताते हैं, "आज देश एक बहुत बड़े कृषि संकट के दौर से गुज़र रहा है। किसान भारी कर्ज़े में डूबा हुआ है। हर दिन कहीं न कहीं से अन्नदाता के खुदकुशी करने की खबरें आती हैं। देश का पेट भरने वाला किसान खुद अपने परिवार का पेट नहीं पाल पा रहा। कर्ज़ न चुका पाने के अपमान के कारण अपनी जान तक देने को मजबूर हो रहा है। जिन कारणों से खेतीबाड़ी की ये स्थिति है, उनको दूर करने के लिए सरकारें काम नहीं कर रही हैं।"

योगेंद्र यादव आगे कहते हैं, "आज स्थिति ऐसी है कि कोई भी किसान अपने बच्चे को किसान नहीं बनाना चाहता। जिनके पास खेती की ज़मीन है वो लोग भी मजबूर होकर गाँव से पलायन कर रहे हैं। गाँव में खेती करने के बजाए शहर में रिक्शा चलाने को, मज़दूरी करने को भी तैयार हैं किसान। ऐसे में केन्द्र सरकार का वर्ष 2022 तक किसान की आय दोगुनी करने का दावा सिर्फ लोकलुभावन घोषणा के अलावा कुछ नहीं है।"

जब कोई फैक्ट्री मालिक एक स्क्रू बनाता है, जो उसे पता होता है कितना मुनाफा मिलेगा, लेकिन किसान को नहीं पता होता है जो अनाज उसके खेतों में तैयार हो रहा है वो कितने में बिकेगा, या फिर बिकेगा ही नहीं।"
लवजी भाई नाकराणी, भावनगर, गुजरात

यह भी पढ़ें- सरकारी रिपोर्ट : किसान की आमदनी 4923 , खर्चा 6230 रुपए

किसानों की स्थिति दिनों-दिन खराब कैसे हो रही है, इसको लखनऊ से सटे चिनहट ब्लाक के डल्लखेड़ा गाँव के रहने वाले किसान रामदुलारे यादव बताते हैं, "खेती में लागत बढ़ती जा रही है, खाद पानी देने से उपज भी ठीक-ठाक हो रही, लेकिन उपज का जो दाम मिलना चाहिए, नहीं मिल रहा है।

उत्तर प्रदेश में एटा जिले के मारहरा निवासी किसान नुसूर अहमद बताते हैं, "पिछले साल मटर और मक्का की अच्छी खेती की थी। छह हजार रुपए बीघा मटर की लागत आई, मटर की पैदावार अच्छी रही लेकिन मण्डी में दाम नहीं मिल सके, तीन हजार रुपए बीघा मक्का में लागत आई, लेकिन 4-5 बीघा मक्का कम हुई और दाम भी कम रहा, इस हिसाब से कोई अच्छा लाभ नहीं मिल सका, मेहनत लगाकर देखा जाए तो इस वर्ष घाटे में रहे।"

'किसान को एमएसपी नहीं लाभकारी मूल्य चाहिए'

दिल्ली में रहने वाले और सोशल मीडिया पर किसानों की आवाज उठाने वाले कृषि विशेषज्ञ रमनदीप सिंह मान अक्सर कहते हैं, किसान को एमएसपी से फायदा नहीं होने वाले क्योंकि उसका फायदा ही 5-17 फीसदी किसान उठाते हैं, किसान की आमदनी तब बढ़ेगी तब उसकी उपज का उसे लाभकारी मूल्य मिलेगा।"

किसानों की आमदनी, देश की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था और प्रधानमंत्री मोदी के किसानों की आमदनी दोगुनी करने के वादे को दिल्ली में एक बड़ी कंपनी में मैनेजिंग एडिटर अपने तजुर्बे और अनुभव को दो बातों में समेटते हैं, न्यूनतम समर्थन मूल्य बना था कि किसानों को इससे कम उपज का रेट ना मिले, लेकिन अब ये अधिकतम समर्थन मूल्य ज्यादा नजर आता है। इन हालातों में खेती लाभकारी व्यवसाय बनें ये तो दूर की बात, लोग किसानी करें तो ही बड़ी बात होगी।"

ये जरूर पढ़ें- किसान का दर्द : "आमदनी छोड़िए, लागत निकालना मुश्किल"

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