कुसुम की नई किस्म से अधिक मिलेगा तेल

Ashwani NigamAshwani Nigam   6 Nov 2017 7:01 PM GMT

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कुसुम की नई किस्म से अधिक मिलेगा तेलकुसुम की खेती। फोटो: इंटरनेट

लखनऊ। देश में खेती की बहुत सारी ऐसी जमीनें हैं, जहां पर पानी के अभाव में खेती नहीं हो पाती है, ऐसी जमीनों पर तिलहनी फसल में कुसुम की खेती किसान कर सकते हैं। कृषि विभाग की तरफ से किसानों के लिए कुसुम की नई किस्म को विकसित किया गया है, जिसमें तेल की मात्रा अधिक पाई जाती है। कुसुम की यह प्रजाति है के-65 है, जो 180 से 190 दिन में पकती है। इसमें तेल की मात्रा 30 से 35 प्रतिशत है और औसत उपज 14 से 15 कुंतल प्रति हेक्टेयर है। दूसरी प्रजाति मालवीय कुसुम 305 है, जो 160 दिन में पकती है, इसमें तेल की मात्रा 36 प्रतिशत होती है।

दोनों किस्मों की बुवाई करके ले सकते हैं अच्छा उत्पादन

भारतीय तिलहन संघ के निदेशक डॉ. केएस वाराप्रसाद बताते हैं, “कुसुम की बुवाई का सही समय नवंबर महीना होता है, ऐसे में इस बार रबी सीजन में किसान कुसुम की इन दोनों किस्मों की बुवाई करके अच्छा उत्पादन ले सकते हैं। भारतीय तिलहन अनुसंधान संस्थान कुसुम की खेती को बढ़ावा देने के लिए लगातार काम कर रहा है।''

सूखा सहने की क्षमता अन्य फसलों से ज्यादा

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर (छत्तीसगढ़) के कृषि वैज्ञानिक डॉ. गजेन्द्र सिंह तोमर बताते हैं, “देश के शुष्क भागों (असिंचित क्षेत्रों) में उगाई जाने वाली कुसुम प्रमुख तिलहनी फसल है, जिसमें सूखा सहने की क्षमता अन्य फसलों से ज्यादा होती है। कुसुम की खेती तेल और रंग प्राप्त करने के लिए की जाती है।''

कई तरह से काम आता है तेल

डॉ. गजेंद्र ने बताया, “इसके दाने में तेल की मात्रा 30 से लेकर 35 प्रतिशत होती है। कुसुम का तेल खाने-पकाने और प्रकाश के लिए जलाने के काम आता है। यह साबुन, पेंट, वार्निश, लिनोलियम और इनसे संबंधित पदार्थों को तैयार करने के काम मे भी लिया जाता है।“ डॉ. गजेन्द्र सिंह तोमर ने बताया कि कुसुम के तेल में उपस्थित पोली अनसैचूरेटेड वसा अम्ल अर्थात लिनोलिक अम्ल (78 प्रतिशत) खून में कोलेस्ट्राल स्तर को नियंत्रित करता है, जिससे हृदय रोगियों के लिए विशेष उपयुक्त रहता है। इसके तेल से वाटर प्रूफ कपड़ा भी तैयार किया जाता है।

सिर्फ इतना ही नहीं…

कुसुम के तेल से रोगन तैयार किया जाता है जो शीशे जोड़ने के काम आता है। इसके हरे पत्तों में लोहा और केरोटीन (विटामिन-ए) प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इसलिए इसके हरे और कोमल भाग स्वादिष्ट और पौष्टिक सब्जी बनाने के लिए सर्वोत्तम है।

खाद्य तेल खपत की वृद्धि दर बढ़कर 4.3 प्रतिशत

कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय भारत सरकार की रिपोर्ट के अनुसार, देश में खाद्य तेल खपत की वृद्धि दर बढ़कर 4.3 प्रतिशत हो गई है, जबकि तिलहनों के वार्षिक उत्पादन में लगभग 2.2 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। ऐसे में देश में खाद्य तेलों का बड़ी मात्रा में आयात करना आवश्यक हो गया है। देश को 50 प्रतिशत से अधिक खाद्य तेल का आयात करना पड़ता है। घरेलू मांग को पूरा करने के लिए पिछले वर्ष 69,717 करोड़ रुपए मूल्य के खाद्य तेलों का आयात करना पड़ा।

कुसुम की खेती पर दिया जा रहा जोर

इस रिपोर्ट के अनुसार देश में वर्ष 2020 तक प्रति व्यरक्ति खाद्य तेलों की खपत 16.43 किलोग्राम रहने का अनुमान है। देश में वनस्पति तेलों की वार्षिक खपत को पूरा करने के लिए 86.84 मिलियन टन तिलहन उत्पादन की जरूरत पड़ेगी। ऐसे में देश में सोयाबीन, मूंगफली, तोरिया सरसों, तिल, सूरजमुखी और अलसी के साथ ही कुसुम की खेती पर जोर दिया जा रहा है।

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