मेरठ। किसानों और गन्ना विभाग की मेहनत से गन्ने ने शुगर मिलों की झोली तो बंपर चीनी उत्पादन से भर दी है, लेकिन मिलें किसानों को अब भी भुगतान में हिलाहवाली कर रही हैं। शुगर मिलें कम लागत में चीनी का अधिक उत्पादन होने के बाद भी गन्ना किसानों को सरकार के दावे के मुताबिक भुगतान नहीं कर रही है।
एक जनवरी तक मिलों ने किसानों का 40 फीसदी पैसा दबाया हुआ है। जबकि सरकार 14 दिन के अंदर शत-प्रतिषत भुगतान के आदेश जारी कर चुकी है।
पिछले साल मंडल में अगेती और सामान्य गन्ना प्रजाति का आदर्श बुवाई मानक 60-40 बिगड़ने से गन्ने में चीनी का परता कम हो गया था। जिससे शुगर मिल औसत न आने की बात कहकर किसानों का पैसा दबाए रखते थे, लेकिन इस बार गन्ना किसान और गन्ना विभाग की मेहनत के बूते मंडल में चीनी से भरपूर बढोतरी हुई है। इसका परिणाम इस साल देखने को भी मिल रहा है। अब तक मंडल के चीनी मिलों की औसत चीनी रिकवरी 9.48 चल रही है। चीनी का होलसेल रेट भी 3700 से 3900 रुपए प्रति कुंतल चल रहा है। इससे मिलों के वारे के न्यारे हो रहे हैं। मवाना, दौराला, सकौती, नंगलामल, सिंभावली और अनामिका मिलों की रिकवरी तो 10 फीसदी को भी पार कर रही है।
गन्ना विभाग उत्तर प्रदेश के अनुसार प्रदेश में 33 लाख गन्ना किसान हैं, जो गन्ने की खेती करते हैं।
गन्ना विभाग के आंकड़े
गन्ना विभाग के आंकड़ों के मुताबिक एक जनवरी तक मंडल की मिलों ने 472.31 लाख कुंतल चीनी उत्पादन कर लिया है। औसत मूल्य 3800 के हिसाब से यह चीनी 1800 करोड़ से अधिक की बैठती है। यह उत्पादन महज 1254 करोड़ के गन्ने से हुआ है। जबकि मंडल की शुगर की मिलों ने किसानों को अभी तक महज 60 फीसदी ही भुगतान किया है। मिलों पर किसानों का अभी लगभग 400 करोड़ रूपए बकाया है। देय मूल्य भुगतान के सापेक्ष शुगर मिलों ने अभी 60 फीसदी ही भुगतान किया है। दौराला, सकौती और अनामिका शुगर मिल ने किसानों को लगभग 80 फीसदी तक भुगतान करके राहत दी है, लेकिन सरकार की और से किए गए दावों को मिल पूरी तरह झुटला रही हैं।
इस सीजन में चीनी की रिकवरी बहुत अच्छी आ रही है। सरकार के आदेशानुसार शुगर मिलों को 14 दिनों में भुगतान के लिए कहा जा रहा है। जो मिल आदेश का पालन नहीं करेगी, कार्रवाई निश्चित है।
हरपाल सिंह, गन्ना उपायुक्त मेरठ परिक्षेत्र
भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता चौधरी राकेश टिकैत कहते हैं, “इस सीजन में चीनी की रिकवरी भी ज्यादा आ रही है, और रेट भी महंगा है। लेकिन मिलों को किसानों का पैसा दबाने की आदत हो गई है। संगठित नहीं होने से किसान परेशान है।”
सरकार की हिलाहवाली से शुगर उद्योग बेखौफ हो गया है। किसी भी मिल को घाटा नहीं है। चीनी के अलावा भी गन्ने से अनेक उत्पाद तैयार करके मुनाफा कमा रही हैं। इसके बावजूद भी किसानों का पैसा दबाए बैठी हैं। इसके बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
राजकुमार सांगवान, संगठन प्रभारी रालोद
- कुल गन्ना खरीद 451 लाख कुंतल
- चीनी उत्पादन 42.31 लाख कुंतल
- उत्पादित चीनी की औसत कीमत 1800 करोड़
- देय गन्ना मूल्य लगभग 1385 करोड
- भुगतान 700 करोड़ रूपए
- बकाया गन्ना मूल्य लगभग 585 करोड़