कृषि आय पर कर, सही या गलत?

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कृषि आय पर कर, सही या गलत?कृषि आय को कर के दायरे में लाने का कई हलकों से विरोध किया गया (फोटो: विनय गुप्ता)

शशांक पाठक

कर यानि टैक्स जिसका प्रयोग सरकार देश और समाज के विकास संबंधी कामों में करती है। कर एक प्राचीन प्रणाली है जो आज भी जारी है, हालांकि समय के साथ इसके स्वरूप में परिवर्तन तो हुआ ही।

भारत में आयकर अधिनियम के तहत कृषि से होने वाली आमदनी पर आयकर नहीं लगता। अधिनियम की धारा 10 में इसका प्रावधान है। हालांकि कृषि आय पर कर लगना चाहिए या नहीं ये आज़ादी के बाद से ही बहस का मुद्दा रहा है लेकिन हाल ही में नीति आयोग के सदस्य बिबेक देबरॉय और भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रह्मण्यम ने कृषि आय पर कर लगाने की वक़ालत की। इनका सुझाव था कि एक निश्चित सीमा के बाद कृषि से होने वाली आमदनी पर कर लगना चाहिए। पिछले आम बजट से पहले पेश आर्थिक सर्वेक्षण में धनी किसानों की आय पर कर लगाने का सुझाव दिया गया। वहीं नीति आयोग ने अपने 15 साल के 'विज़न डॉक्यूमेंट' में भी कृषि आमदनी को निजी आयकर के दायरे में लाने का प्रस्ताव किया है। इन सबका मकसद 'कर आधार' यानि टैक्स बेस को बढ़ाना है लेकिन इन तर्कों का कई कृषि विशेषज्ञों और आर्थिक जानकारों से खंडन किया। उनका कहना है कि सरकार बेवजह किसानों पर भार डालने की कोशिश कर रही है।

हालांकि वित्त मंत्री अरुण जेटली इन सभी अटकलों को खारिज कर दिया और बताया कि सरकार को ऐसा कोई इरादा नहीं है।

जानकारों का कहना है कि ऐसे किसी भी विचार या फैसले का असर देश की 50 आबादी पर पड़ेगा। तो क्या धनी किसानों पर कर लगाने के अन्य तरीके नहीं हो सकते हैं? तमाम सवाल इसके क्रियांवयन को लेकर भी हैं।

सवाल ये है कि क्या सरकार वाकई ऐसा करने पर विचार कर रही है? सबसे बड़ा सवाल है कि क्या कृषि से होने वाली आय पर कर नहीं लगना चाहिए, और नहीं तो क्यों नहीं लगना चाहिए?

देश में कृषि के हालात तो किसी से छिपे नहीं हैं। किसान बड़ी संख्या में पलायन कर रहे हैं, आत्महत्या कर रहे हैं। यहाँ तक कि राजधानी दिल्ली में कई दिनों तक तमिलनाडु के किसानों ने जो प्रदर्शन किया उसने इस क्षेत्र का बीभत्स चित्र सबके सामने रखा है। ऐसे में क्या कृषि पर कर की बात करना जायज है? लेकिन इस बहस के बीच एक बात पर भी ध्यान देना होगा कि कृषि राज्य के अधिकार क्षेत्र में आता है लेकिन उपरोक्त बहस कृषि से होने वाली आय पर है और आयकर केंद्र के अधीन आता है।

ये भी पढ़ें: कॉर्पोरेट कर छूट खत्म किए बिना अमीर और बनावटी किसानों पर टैक्स लगाने से नहीं होगा देश को फायदा

जानकारों का कहना है कि ऐसे किसी भी विचार या फैसले का असर देश की 50 आबादी पर पड़ेगा। तो क्या धनी किसानों पर कर लगाने के अन्य तरीके नहीं हो सकते हैं? तमाम सवाल इसके क्रियांवयन को लेकर भी हैं।

प्रस्ताव का विरोध

कृषि आय को कर के दायरे में लाने का कई हलकों से विरोध किया गया। मोटे तौर पर आम राय यही है कि किसान कर नहीं दे सकते। पर इस प्रस्ताव के विरोध में जो सबसे बड़े तर्क ये हैं-

आधी आबादी पर असर- देश में कृषि क्षेत्र के हालात चाहे जितने खराब हों, रोजगार के लिए करीब 50 फीसदी आबादी इसी से जुड़ी है। ऐसे में अगर कर लगता है तो इस 50 फीसदी आबादी पर बड़ा असर पड़ेगा। हालांकि ये सारे मौजूदा प्रस्ताव के मुताबिक कर दायरे में नहीं आएंगे।

मुनाफे का गणित- दूसरा और सबसे वाज़िब सवाल ये है कि किसी किसान की आमदनी का आकलन कैसे किया जाएगा? क्योंकि आयकर तो आय पर लगता है, ऐसे में कृषि से होने वाली आय की गणना कैसे होगी? यहां ये भी ध्यान देना होगा कि किसान के परिवार के कई सदस्य खेत के एक ही टुकड़े में मिलकर काम करते हैं तो उनका पारिश्रमिक कैसे तय होगा और किसकी आय पर कर लगाया जाएगा? संभव है कि इतनी पेचीदगियां होने पर कर आकलन आसान नहीं रह जाएगा, ऐसे में कम पढ़े-लिखे किसान इसे कैसे समझ सकेंगे?

पलायन बढ़ेगा- एक तर्क ये भी है कि कृषि क्षेत्र और किसानों की हालत पहले से ही नाजुक है, तो क्या कर जैसी कोशिश इस क्षेत्र में काम कर रहे लोगों को हतोत्साहित नहीं करेगी? जिससे पहले से ही जारी पलायन और बढ़ सकता है, जो किसी भी क्षेत्र के लिए चिंता की बात है।

गैर-बराबरी बढ़ेगी- कृषि क्षेत्र में गैर-बराबरी एक बड़ा मुद्दा है। क्या कर लगाने से गैर बराबरी और नहीं बढ़ेगी क्योंकि बड़े किसानों को शायद कर चुकाने में इतनी परेशानी ना हो लेकिन छोटे और मछोले किसानों के लिए ये एक बड़ा मुद्दा है।

कृषि पर कर लगाने के विचार के विरोध में और भी कई तर्क हैं लेकिन जो इसके पक्ष में ये तर्क दिए जा रहे हैं-

प्रस्ताव का पक्ष

कर चोरी से रोकथाम– कई जानकार मानते हैं कि कृषि आय को कर मुक्त रखने से ये कर चोरी का बड़ा माध्यम बन गया है। कृषि आय पर कर के प्रावधान से इस समस्या से निजात पाया जा सकता है।

बढ़ेगा कर का दायरा- नीति आयोग के मुताबिक देश के 22 करोड़ परिवारों का दो तिहाई हिस्सा ग्रामीण इलाकों में रहता है, जहाँ कृषि रोजगार का बड़ा साधन है। कृषि आय पर कर लगाने से आयकर का दायरा बढ़ेगा।

धनी किसान और एग्री-इंडस्ट्री पर नियंत्रण- वित्त मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक 2007-08 से 2015-16 के बीच 2,746 इकाइयों और व्यक्तियों ने एक करोड़ रुपए से अधिक की कृषि आय घोषित की। कई बड़ी फर्में करोड़ों की आमदनी को कृषि आय के अन्तर्गत दिखा कर कृषि आय पर मिलने वाली छूट का फायदा उठाती हैं। इस फैसले से इन पर नियंत्रण किया जा सकता है।

अन्य करदाताओं के साथ न्याय- एक तर्क ये भी है कि किसानों से कर ना लेना अन्य कर दाताओं के साथ न्याय नहीं है। इसीलिए अगर कोई किसान एक निश्चित सीमा से ज्यादा आय कमाता है तो उसे भी कर देना चाहिए।

दरअसल, जो मौजूदा बहस है, वह उस आय पर है जो एक निश्चित सीमा से ज्यादा होगी क्योंकि आयकर का यही प्रावधान है। साल 2002 में प्रत्यक्ष करों पर विजय केलकर समिति की एक रिपोर्ट आई। इसमें कहा गया कि कृषि आय पर कर ना लगाना, दूसरे आयकर-दाताओं के साथ नाइंसाफी है। इससे कर चोरी को बढ़ावा मिलता है। रिपोर्ट में कहा गया कि राज्यों को एक प्रस्ताव पास कर केंद्र को कर लेने के लिए अधिकृत कर देना चाहिए और केंद्र कर की इकट्ठा की गई रकम राज्यों को बांट दे।

सवाल ये है कि क्या धनी किसानों और उद्यमियों की आय पर कर लगाना सही नहीं होगा? कृषि के नाम पर हो रही करोड़ों की कर चोरी को कैसे रोका जाएगा? एक सवाल ये भी है कि क्या कृषि पर कर लगाने की, जो बात अभी की जा रही है, वह देश में कृषि के हालात और किसानों के साथ ज्यादती नहीं होगी।

सरकार को चाहिए कि वो एक ऐसी व्यवस्था बनाए जिसमें सबसे पहले तो किसानों की स्थिति में सुधार हो। दूसरा बड़े और धनी किसानों और कृषि से संबंधी उद्योगों को होने वाली आय को किसी दूसरे तरह से कर दायरे के अधीन लाया जाए।

साभार: ऑफप्रिंट

     

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