नैनीताल (उत्तराखंड)। पिछले कुछ वर्षों में इन्होंने सात हजार से भी ज्यादा किसानों को जैविक खेती का प्रशिक्षण दिया है, अब इनका एक ही लक्ष्य है उत्तराखंड की खेती को पूरी तरह से जैविक बनाना। जैविक खेती के प्रति इनकी लगन देखकर मुख्यमंत्री ने इन्हें सम्मानित भी किया है।
नैनीताल जिले की हल्द्वानी ब्लॉक की ग्रामसभा फत्ताबंगर के गांव हिम्मतपुर मोटाहल्दू के रहने वाले अनिल पांडेय के परिवार में खेती का काम पीढ़ी दर पीढ़ी होता आ रहा है। लेकिन रसायनिक खेती से दूरी और पुराने पद्धति से जैविक खेती को बढ़ावा देने का काम अनिल पांडे ने शुरू किया।
अनिल पांडेय बताते हैं, “पिताजी पशुपालन विभाग में कार्यरत थे तो मैंने पशु उपचार और कृत्रिम गर्भाधान का काम भी सीखा। साल 2002 से दुध व्यवसाय में जुड़ने के बाद मन में विचार आया कि दुध के अतिरिक्त किसान की आय को कैसे बढ़ाया जाय। सोचा कि उनके गोबर व गोमूत्र का इस्तेमाल कर कुछ नया किया जा सकता है। इसी कारण मेरा रूझान जैविक खेती की ओर बढ़ा। सबसे पहले मैंने खुद के प्रयोग के बाद आस-पास के किसानों को इसका महत्व समझाया और उन्हें जैविक खेती के लिए प्रेरित किया। जब कृषि विभाग के अधिकारियों को मेरे काम की जानकारी हुई तो मुझे वर्ष 2005 में बतौर जैविक प्रशिक्षक (मास्टर ट्रेनर) के तौर पर हल्द्वानी में अल्प मानदेय पर इस कार्य को आगे बढ़ाने का मौका मिला।”
वो आगे कहते हैं, “उसके बाद अपने जुनून और जज्बे के तहत मैं गांव-गांव घर-घर घूमता हुआ पूरे विकासखण्ड को जैविक ब्लॉक बनाने का संकल्प लेकर अपनी मुहिम में डटा रहा। धीरे-धीरे लोगों का रूझान भी जैविक के प्रति बढ़ता गया। इसके तहत मैं हरी खाद, जैव उर्वरक, वर्मी कम्पोस्ट, नाडेप कम्पोस्ट, नीम ऑयल, गोमूत्र (तरल खाद), ट्राइकोडर्मा, सुडोमनास, एजोला, विवेरिया बेसियाना आदि का किसानों को प्रयोग करना सिखाता रहा।”
साल 2013 में किया जैविक कृषि पर डिप्लोमा
अनिल पांडे बताते हैं, “बीच-बीच में अपने ज्ञान को बढ़ाने के लिए प्रशिक्षण के लिए जैविक कृषि प्रशिक्षण केन्द्र मजखाली (रानीखेत) में प्रशिक्षण प्राप्त करता रहा। इसी दौरान मैंने 2013 में उत्तराखण्ड ओपन युनिवर्सिटी से जैविक कृषि पर डिप्लोमा भी प्राप्त किया एवं प्रदेश से बाहर भी भ्रमण व प्रशिक्षण प्राप्त किये। साथ-साथ विकासखण्ड के लगभग 2000 किसानों को जैविक कृषि का प्रशिक्षण और उनके घरों पर वर्मी कम्पोस्ट, नाडेप, वर्मी कल्चर सेन्टर, तरल खाद की पक्की संरचनाओं का निर्माण भी करवाता रहा और विभागीय कार्यों में सहयोग करते हुए मिट्टी की जांच, विभिन्न कृषि मेलों का आयोजन और विकास खंड के किसानों का जैविक खेती में रजिस्ट्रेशन भी करवाया। इसके साथ-साथ मुझे विकास खंड से बाहर भी विभिन्न स्वयं सेवी संस्थाओं से जुड़ने का मौका मिला। सहकारिता के क्षेत्र में कार्य कर रही इफको ने भी अब जैव रसायनों और उर्वरकों पर कार्य करना प्रारम्भ कर दिया है। और इफको भी मेरा कार्य अनुभव का लाभ ले रही है। जिससे मुझे जैविक के वृहद प्रचार-प्रसार को अग्रसर करने का मौका मिल रहा है।”
राष्ट्रीय जैविक किसान भारत भूषण त्यागी से ली ट्रेनिंग
अनिल पांडे बताते हैं, “जैविक पर कार्य करते-करते मेरा परिचय अनेक किसानों से हुआ। जिनमें से कुछ प्रगतिशील किसानों से मुझे भी खेती किसानी में बहुत कुछ सीखने का मौका मिला है। इसी बीच राष्ट्रीय जैविक केन्द्र, गजियाबाद द्वारा निर्मित वेस्ट डी-कम्पोजर की जानकारी मुझे प्रगतिशील किसान नरेन्द्र सिंह मेहरा द्वारा प्राप्त हुई। तत्काल हमने वहां सम्पर्क कर इसका एक प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजन करने का आग्रह किया। जिसे उन्होंने सहज स्वीकार करते हुए राष्ट्रीय जैविक किसान भारत भूषण त्यागी जी और डॉ शालिनी फत्र्याल जी को किसानों के ज्ञानवर्द्धन के लिए उनके द्वारा प्रशिक्षण दिलवाया। जिससे दर्जनों किसान प्रभावित हुए और कई किसानों ने जैविक खेती करने का संकल्प लिया। इसी कार्यक्रम में क्षेत्रीय विधायक नवीन चन्द्र दुम्का द्वारा तीन गांवों को पूर्ण जैविक बनाने का आश्वासन दिया गया।”
मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत कर चुके हैं सम्मानित
प्रदेश में जैविक खेती को बढ़ावा दे रहे अनिल पांडे को उत्तराखण्ड़ के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत सहित कई अन्य लोगों द्वारा भी सम्मानित किया जा चुका है। अनिल पांडे बताते हैं कि “दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय स्तर के प्रगतिशील किसान सम्मेलन व पुरूस्कार में प्रतिभाग करने का अवसर मिला। जहां हमने उत्तराखण्ड की जैविक में सम्भावनाओं व समस्याओं को कृषि राज्य मंत्री गजेन्द्र सिंह सेखावत से वार्ता की। तत्पश्चात उत्तराखण्ड में आयोजित प्रगतिशील किसान सम्मेलन व पुरूस्कार में मुझे जैविक कृषि में एक्सीलेंस सर्विस और ट्रेनिंग पर मुख्यमंत्री और कृषि मंत्री द्वारा पुरस्कृत भी किया गया और पुनर्नवा महिला समिति, हल्द्वानी ने 18 विशिष्ट कार्यक्षेत्र में कार्य करने वाले लोगों में सम्मिलित कर जैविक कृषि के लिए मुझे सम्मानित किया।”
जैविक किचन गार्डन बनाने की लोगों को दे रहे सलाह
अनिल पांडे जैविक खेती के लिए किसानों को तो प्रेरित कर ही रहे हैं वहीं वह आम लोगों को भी जैविक खेती के फायदे के साथ उनको अपने घरों में जैविक गार्डन बनाने की सलाह दे रहे हैं। अनिल पांडे बताते हैं कि “रासायनिक दुष्परिणामों के कारण आज हमारी भोजन की थाली विशाक्त हो गयी है। इसको दृष्टिगत रखते हुए मैं एवं नरेन्द्र सिंह मेहरा ने मिलकर शहरवासियों को ”जैविक किचन गार्डन” बनाने के लिए प्रेरित करने का संकल्प लिया। जिसके अंतर्गत घर में पड़े अपशिष्ट पदार्थ, जैसे- सब्जी व फल के छिलके के द्वारा कम्पोस्ट खाद बनाने का प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है।
वो बताते हैं, “मेरे द्वारा मेरे निवास स्थान हिम्मतपुर मोटाहल्दू में जैविक कृषि प्रशिक्षण केन्द्र (जैविक पाठशाला) का निर्माण किया गया है और वर्मी कल्चर सेन्टर द्वारा वर्मी कम्पोस्ट और जैविक उत्पादक उप समूह का गठन भी किया जा चुका है। विभिन्न जैव उत्पादों का उत्पादन और विपणन भी किया जा रहा है जिससे अतिरिक्त आय में बढ़ोत्तरी भी हो रही है। जिसको देखने अन्य गांवों के कृषक प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए आ रहे हैं और हमारी ग्राम सभा फत्ताबंगर में जैविक क्रियायें प्रारम्भ हो जाने के कारण ग्राम परम्परागत कृषि विकास योजना के अन्तर्गत जैविक गांव के अन्तर्गत चयनित हो गया है और पूरी ग्रामसभा जैविक ग्राम के नाम से पहचान बनाने जा रही है।”
अपनी ग्रामसभा को बना डाला जैविक, किसानों को मिल गई जैविक किसान की पहचान
अनिल पांडे बताते हैं, “वर्तमान में मेरे द्वारा जैविक खेती के प्रति जुनून वह जज्बे के कारण मेरा पूरा गांव सहित पूरी ग्राम सभा जैविक खेती से जुड़ गई और वहां के किसान जैविक किसान के रूप में पहचाने जाने लगे है। जैविक खेती को बढ़ावा देने हेतु मैंने अपने घर पर “जैविक पाठशाला”का निर्माण भी करवाया जहां पर जैविक की विभिन्न ट्रेनिंग प्रोग्राम, मिट्टी की जांच, व पंचगव्य, पंचामृत, जीवामृत आदि खादों को बनाने की बृहद ट्रेनिंग क्षेत्र व जिले के किसानों को दी जा रही है।
जैविक बुके देकर करते हैं अतिथियों का सम्मान
अनिल पांडे की जैविक खेती के प्रति दीवानगी इस कदर है कि वह अपने यहां आने वाले अतिथियों का सम्मान उन्हें जैविक बुके देकर करते हैं। वह कई बार जैविक बुकों से कृषि अधिकारियों व मंत्रियों का सम्मान कर चुके हैं। जैविक बुकों में वह फूलों के स्थान पर जैविक सामग्री उसमे रखते हैं। वह बताते हैं, “मेरे द्वारा उपहार स्वरूप गणमान्य व्यक्तियों को “जैविक बुके” जो कि मैं स्वयं विभिन्न जैविक उत्पादों के द्वारा तैयार करता हूं भेंट किए जाते हैं। मेरा मानना है कि अगर हम फूलों से स्वागत ना कर “जैविक बुके” और “जैविक टोकरी” के द्वारा विभिन्न आगंतुकों का सम्मान करेंगे तो कहीं ना कहीं जैविक का प्रचार-प्रसार भी होगा।”
अपने खेत मे उगा डाली अनोखी जैविक लौकी की बेल, लोगों को उपहार में दे रहे जैविक लौकी
जैविक ट्रेनर अनिल पांडे ने नया प्रयोग कर अपने घर के समीप खेत मे जैविक लौकी की दो बेल लगाई। उस बेल पर करीब 70 से अधिक लौकी आ चुकी हैं। इन लौकियों को वह घर आने वाले मेहमानों के साथ अन्य लोगो को उपहारस्वरूप दे रहे हैं। अनिल पांडे बताते हैं कि “वर्तमान में मेरे द्वारा अपने जैविक फॉर्म में जैविक सब्जियों पर कार्य किया जा रहा है जैसे जैविक लौकी, कद्दू, तुरई, करेला। उन्हें जैविक खेती सीखने आने वाले लोगों को उपहार स्वरूप वितरित भी किया जा रहा है व जैविक विधि, जैविक खाद से लौकी के एक पौधे से लगभग 100 लौकी से अधिक उत्पादन कैसे प्राप्त किया जाता है उसके बारे में भी बताया जा रहा है। इसके साथ साथ पॉली हाउस, ड्रिप इरिगेशन (टपक सिंचाई) के बारे में प्रशिक्षक के तौर पर किसानों को जैविक खेती व पॉलीहाउस तकनीकी को आगे बढ़ाने के लिए “स्किल इंडिया प्रोग्राम” के तहत मुख्य प्रशिक्षक के तौर पर कार्य करने का अवसर मिल रहा है।”
जैविक खेती से हैं लाभ इसलिए कर रहे किसानों को जागरूक
उत्तराखण्ड़ के करीब सात हजार किसानों को जैविक खेती की ट्रेनिंग देने वाले जैविक ट्रेनर अनिल पांडे जैविक खेती के लाभ गिनाते हुए बताते हैं, “जैविक कृषि वह पद्धति है, जहां प्रकृति व पर्यावरण को स्वच्छ व संतुलित रखते हुए भूमि की सजीवता, जल की गुणवत्ता, जैसे विविधता आदि को बनाये रखते हुए वह पर्यावरण एवं वायु को प्रदूषित किए बिना, दीर्घकालीन व टिकाऊ उत्पादन प्राप्त किया जाता है। जैविक कृषि वह पद्धति है, जहां प्रकृति व पर्यावरण को स्वच्छ व संतुलित रखते हुए भूमि की सजीवता, जल की गुणवत्ता, जैसे विविधता आदि को बनाये रखते हुए वह पर्यावरण एवं वायु को प्रदूषित किए बिना, दीर्घकालीन व टिकाऊ उत्पादन प्राप्त किया जाता है।”
वो आगे कहते हैं, “जैविक कृषि से जहां एक ओर जैविक कृषक की भूमि की गुणवत्ता संरक्षित रखती है, वहीं दूसरी ओर आसपास के परिवेश का पर्यावरण भी संतुलित रखता है क्योंकि रासायनों का प्रयोग नहीं होता इसलिए भूमि में नमी संवर्धन भी बढ़ता है जिससे सिंचाई की आवश्यकता में खासी कमी हो जाती है। जहां एक ओर जैविक खेती, कृषक के लिए एक वरदान स्वरूप है वहीं दूसरी ओर जैविक पद्धति से प्राप्त अनाज को भोजन के रूप में ग्रहण करने वाले साधारण मनुष्य के लिए भी जैविक उत्पाद वरदान से कम नहीं है। जैविक उत्पाद में शरीर के लिए आवश्यक सभी प्रकार के पोषक तत्व अपनी प्राकृतिक अवस्था में रहते हैं, जिस कारण यह उत्पाद शरीर में भोजन से होने वाली किसी भी व्याधि को पैदा नहीं होने देते साथ ही कुछ जैविक उत्पाद तो ऐसे भी हैं जो कि शरीर में पहले से मौजूदा व्याधि के लिए उपचार स्वरूप होते हैं। जैविक उत्पादों के गुणों के आधार पर राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर वृहद जैविक बाजार की स्थापना हुई है। इसी बाजार के कारण जैविक उत्पादों का मूल्य सामान्य उत्पादों की अपेक्षा कहीं अधिक मिलता है जिससे काश्तकार की आय में अच्छी खासी बढ़ोत्तरी हो जाती है।”
पर्वतीय क्षेत्रों में जैविक कृषि
पर्वतीय इलाकों में जैविक कृषि के बारे में अनिल पांडे बताते हैं, “विशिष्ठ भौगोलिक परिस्थितियों के कारण पर्वतीय क्षेत्रों में कृषि की एक विशेष परम्परा रही है। हमारी जोतें मैदानी क्षेत्रों के मुकाबले बहुत ही सीमित होती हैं जिस कारण यहां की मृदा में प्रचुर मात्रा में पोषक तत्व पाये जाते हैं जिस कारण पर्वतीय कृषि उत्पाद की गुणवत्ता यहां की सर्वोत्तम और प्रमुख विशेषता है। इसके साथ ही पर्वतीय उत्पाद को जैविक उत्पाद के परिप्रेक्ष्य में इसलिए भी विशिष्ट माना जायेगा क्योंकि मैदानी क्षेत्रों की तरह यहाँ रसायनों का प्रभाव बहुत ही न्यून रहा है। यदि कुछ गिने-चुने क्षेत्रों को छोड़ दिया जाये तो यहां रसायनों का प्रयोग बहुत ही नहीं है। कृषि उत्पादन सीमित है, भूमि सीमित है, जिस कारण पर्वतीय युवा का कृषि क्षेत्र में पहले की तरह रूझान नहीं रहा है और यही पर्वतीय क्षेत्रों में यवुा वर्ग के पलायन का सबसे प्रमुख कारण है।”