खेती से ज्यादा से ज्यादा लोगों को फायदा पहुंचाने और जैविक खेती का क्षेत्रफल बढ़ाकर रासायनिक खाद से होने वाले नुकसान से लोगों को बचाने के लिए कृषि उत्पादक संगठनों को सशक्त बनाया जाएगा।
उत्तर प्रदेश में परम्परागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई)/नमामि गंगे योजना के अंतर्गत जैविक खेती में उत्पादन, पैकेजिंग और विपणन को पंख लगाने के लिए अब कृषि उत्पादक संगठनों (एफपीओ) का गठन किया जाएगा। इसके तहत पूर्व में ब्लॉकवार गठित क्लस्टरों को अनिवार्य रूप से एफपीओ में तब्दील कर दिया जाएगा। साथ ही उत्पादों की ब्रांडिंग के लिए लोगो बनाए जाएंगे और बाजार उपलब्ध कराने के लिए नगरीय क्षेत्र के आवासीय इलाकों में सप्ताह में दो दिन स्पेशल कैम्प लगाए जाएंगे।
जैविक खेती को विस्तारित करने के लिए पहला महत्वपूर्ण काम होगा पहले से कार्यरत क्लस्टरों को एफपीओ के रूप में परिवर्तित करने का। इसके लिए विकास खंडों को एक इकाई मानकर शुरुआत होगी। पिछले साल तक गठित क्लस्टरों को एफपीओ में परिवर्तित करने की कार्यवाही 31 अगस्त तक पूरी कर ली जाएगी।
प्राकृतिक खेती/जैविक खेती को बढ़ावा देने को लेकर प्रदेश सरकार ने 25 जून को एक वेबिनार का आयोजन किया था। इसमें कृषि विभाग के अधिकारियों, विशेषज्ञों के साथ जैविक खेती करने वाले किसानों की भी सहभागिता रही। वेबिनार में आए सुझावों के बाद अपर मुख्य सचिव कृषि देवेश चतुर्वेदी ने कृषि निदेशक, मंडी परिषद के निदेशक, सभी जिलाधिकारियों व यूपी डास्प के तकनीकी समन्वयक को नई कार्ययोजना के संबंध में दिशानिर्देश जारी कर दिए हैं।
स्थापित होगी ग्रेडिंग, सॉर्टिंग व पैकेजिंग इकाई
जैविक खेती के उत्पादों की ग्रेडिंग, सॉर्टिंग व पैकेजिंग के लिए इकाइयां लगाई जाएंगी। इसके लिए धनराशि की व्यवस्था भी सुनिश्चित कर ली गई है। एफपीओ के गठित होने पर प्रति किसान दो हजार रुपये वैल्यू एडेड कार्यों के लिए उपलब्ध रहते हैं। इससे ही इकाइयों को लगाने की प्रक्रिया पूरी की जाएगी। इन इकाइयों के स्थापित होने से अच्छी पैकेजिंग में जैविक खेती के उत्पाद के विपणन में काफी सहूलियत होगी। साथ ही स्थानीय स्तर पर ग्रेडिंग,पैकिंग और तैयार उत्पादों के परिवहन में स्थानीय स्तर पर युवाओं को रोजगार भी मिलेगा। इस बात का खास ख्याल रखा जाएगा कि पैकेजिंग में सिंगल यूज प्लास्टिक का इस्तेमाल न हो
स्थानीय मांग के हिसाब से बनेंगे लोगो
जैविक उत्पाद के विपणन को बढ़ावा देने के लिए हर जिले में स्थानीय मांग के अनुरूप लोगो तैयार कराया जाएगा। लोगो बनाने का काम 31 जुलाई तक कर लिया जाएगा। इसके बाद इस लोगो का लोकार्पण कराकर प्रचार प्रसार के जरिये इसकी ब्रांडिंग की जाएगी। ब्रांडिंग होने से मार्केटिंग में आसानी होगी। इसी क्रम में नमामि गंगे परियोजना के तहत गठित समूहों के प्रमाणित कृषि उपजों को केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित नमामि गंगे लोगो का उपयोग भी विपणन में किया जाएगा।
मंडी में जैविक कृषि उपज के लिए होगा अलग आउटलेट
जैविक कृषि उपज की बेहतर मार्केटिंग के लिए हर जिले में मुख्यालय स्थित कृषि मंडी में एक अलग आउटलेट खोला जाएगा। इसके लिए जिलाधिकारी व मंडी परिषद को निर्देशित किया गया है। यही नहीं, परम्परागत या जैविक कृषि उत्पादों की नीलामी के लिए भी कृषि मंडियों में अलग व्यवस्था होगी। इसकी जिम्मेदारी यूपी डास्प के तकनीकी समन्वयक संयुक्त कृषि निदेशक को दी गई है।
मार्केटिंग के लिए शहर की कॉलोनियों में लगेंगे कैम्प
जैविक कृषि उपज के बाजार का आकार बढ़ाने के लिए शहर की आवासीय कॉलोनियों में शनिवार व रविवार को कैम्प लगाए जाएंगे। कैम्प में अच्छी पैकेजिंग में उत्पाद बिक्री के लिए मौजूद रहेंगे। कैम्प लगाने के लिए शासकीय आवासीय कॉलोनियों को प्राथमिकता दी जाएगी। नियमित कैम्प से लोगों का रुझान जैविक कृषि उत्पादों की तरफ बढ़ेगा और कृषकों को बिक्री का मंच भी मिलेगा। इन उत्पादों को पराग के बिक्री केंद्रों पर भी डिस्प्ले व बिक्री के लिए रखने की योजना है।