स्वदेशी बीजों के बिना कैसे होगी देश में जैविक खेती ?

Kushal MishraKushal Mishra   19 March 2018 5:42 PM GMT

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स्वदेशी बीजों के बिना कैसे होगी देश में जैविक खेती ?तेलंगाना की एक जैविक किसान करती हैं स्वदेशी बीजों का भंडार।  फोटो साभार: आदित्यान

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल में नई दिल्ली में कृषि उन्नति मेले में देश भर के किसानों से जैविक खेती करने के लिए जोर दिया, मगर देश में किसानों के जैविक खेती को अपनाना इतना आसान नहीं है।

कारण, जैविक खेती के लिए देश में स्वदेशी बीजों यानि रसायनमुक्त बीज की उपलब्धता। देश में हरित क्रांति के बाद जैविक खेती को लेकर स्वदेशी बीजों की उपलब्धता गिने जाने योग्य तक नहीं है।

इस बारे में सतत एवं समग्र कृषि संधि से जुड़ी कविता कुरुगंती कहती हैं, “आमतौर पर देश की बीज वितरण प्रणाली में स्वदेशी बीज की उपलब्धता नगण्य है, यहां तक कि निजी खुदरा बीज विक्रेताओं के पास भी नहीं।“

ऐसी स्थिति में देश में जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए किसानों को सरकार की ओर से स्वदेशी बीजों की उपलब्धता सुनिश्चित किए जाने की जरूरत है। दूसरी ओर स्वदेशी बीजों को लेकर देश में किसानों की ओर से की जा रही कोशिशों को समझने की भी बेहद आवश्यकता है।

केरल के किसान लैनेश ने बड़ी उम्मीदों के साथ साल 2014 में 0.60 हेक्टेयर जमीन पर जैविक खेती शुरू की थी, मगर उन्हें जल्द ही स्वदेशी बीजों की उपलब्धता को लेकर मुश्किलें आनी शुरू हो गईं। हालांकि किसान लैनेश को एक हल भी मिला। लैनेश ने बताया, “मैंने पहले संकर बीज खरीदे और बीजामृष्टम में मिलाकर उन बीजों को दो से तीन दिन तक रखा। बीजामृष्टम में गाय के मूत्र और गोबर समेत नीम के तेल का मिश्रण करते हैं, ऐसा माना जाता है कि यह प्रक्रिया बीजों से रासायनिक तत्वों को निकाल देती है।“

जैविक बीज। फोटो साभार: इंटरनेट

किसान लैनेश की तरह 10.11 हेक्टेयर बागान की मालिक उत्तराखंड की जैविक किसान कुशिका शर्मा ने भी इसी प्रक्रिया को अपनाया। लैनेश और कुशिका के अलावा, एक साल पहले 200 किसानों से जुड़ी एक किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) मुक्तेश्वर किसान प्रोड्यूसर कंपनी ने भी जैविक खेती के लिए बीजामृष्टम की विधि को अपनाया।

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मगर सवाल यह है कि क्या संकर बीजों को इस विधि से रसायनमुक्त करना सही है, इस बारे में पंजाब स्थित खेती विरासत मिशन के कार्यकारी निदेशक उमेंद्र दत्त कहते हैं, “बीजामृष्टम एक प्रभावी समाधान नहीं है। यह रसायनों को नहीं हटाता है, केवल रोगज़नक़ों के विकास को रोकते हैं। इसके अलावा, यह सिर्फ साफ बीज के लिए कई तरीकों में से एक है। कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है कि बीजामृष्टम में बीज भिगोने से रासायनिक कोटिंग को हटा दिया जाता है।" बता दें कि ऐसे में कोई भी सरकारी दिशानिर्देश नहीं है और बाजार में उपलब्ध बीजों को बेचा जाने से पहले रसायनों के साथ इलाज किया जाता है।

पिछले साल नवंबर माह में नई दिल्ली में हुए जैविक कृषि विश्व कुंभ में भी देश में जैविक कृषि को बढ़ावा देने के लिए विस्तृत चर्चा की गई थी। दूसरी ओर, कृषि मामलों के जानकारों ने माना कि जैविक बीजों पर एक विशेष सरकारी नीति की कमी ने जैविक खेती के लिए मुश्किलें खड़ी की हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि जैविक भूमि और जैविक उपज के लिए सरकार की ओर से सरकारी प्रमाणन की आवश्यकता भी होती है।

हालांकि साल 2015 में केंद्र सरकार ने जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए परंपरागत कृषि विकास योजना की शुरुआत की थी। वहीं इस वर्ष केंद्र सरकार की ओर से जैविक खेती के लिए बजट में प्रावधान भी किया गया है। इस दौरान केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने घोषणा की कि किसान उत्पादक संगठनों और ग्राम उत्पादक संगठनों के जरिए जैविक खेती को प्रोत्साहित किया जाएगा।

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जैविक खेती करते किसान। फोटो साभार: इंटरनेट

स्वदेशी बीजों की उपलब्धता से जूझने के लिए, सरकार स्वदेशी बीज के लिए सामुदायिक बीज बैंकों और किसान उत्पादक संगठनों के पास आ रही है। इस प्रकार के बीज पारंपरिक रूप से किसानों द्वारा बचाए जाते हैं।

इस बारे में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के उप महानिदेशक (कृषि विस्तार) अशोक कुमार सिंह कहते हैं, "जैविक बीजों का वितरण नहीं होने के कारण, स्वदेशी किसानों को किसानों से एकत्र किया जा रहा है हालांकि, यह सही दृष्टिकोण नहीं है।“

किसानों को धोखा मिलने की संभावना

भारतीय एग्रो इंडस्ट्रीज फाउंडेशन (बीएआईएफ) में कार्यक्रम कार्यकारी संजय पाटिल बताते हैं, “ऐसा इसलिए क्योंकि गैर-लाभकारी बीज बचत करने के लिए देश में कोई भी कानूनी रणनीति नहीं है कि किसानों को धोखा नहीं दिया जाएगा।“

किसानों के साथ धोखा किए जाने का एक मामला महाराष्ट्र के एक किसान दादाजी रामजी खोबरागडे के साथ सन् 1980 में सामने आया। किसान रामजी ने उस वक्त एचएमटी चावल की एक किस्म तैयार की थी। साल 1994 में अकोला स्थित पंजाबराव देशमुख कृषि विद्यापीठ के एक अधिकारी ने किसान रामजी से 5 किलो एचएमटी बीज लिए। इसके चार साल बाद विश्वविद्यालय ने पीकेवी-एचएमटी चावल जारी किया और बीज श्रोत का कोई विवरण नहीं दिया। इसका उल्लेख संपादक भारत मानसता ने अपने एक लेख में किया। बीज चोरी के ऐसे उदाहरणों के कारण किसानों को बीजों को किसी से भी साझा करने में संदेह रहता है।

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फोटो साभार: इंटरनेट

समुदाय के लिए बीज बचत में ज्यादा फायदा

एक समुदाय के लिए बीज बचत में बहुत अधिक फायदा है, ऐसा इसलिए क्योंकि किसानों द्वारा बीज एकत्र करने से खेती में लागत कम हो रही है। जैसे कि मूंगफली की खेती की बात करें तो 0.40 हेक्टेयर भूमि के लिए 40 किलो बीजों की आवश्यकता होती है, जिस पर किसान को करीब 2,000 रुपए खर्च करना पड़ता है। ऐसे में यदि वह बीज का भंडार करता है तो उन्हें दोबारा खेती में उपयोग कर इस राशि को बचा सकता है।

हालांकि इस बारे में तमिलनाडु स्थित गैर लाभकारी धान फाउंडेशन के कार्यक्रम नेता एम. कार्तिकेय बताते हैं, “फसलों के अनुसार बीज पर लागत अलग-अलग होती है, ऐसे में बीज पर होने वाली लागत का मानक तय करना कठिन होगा, मगर इतना जरूर है कि किसान ऐसे बीज बेचकर अच्छा मुनाफा भी कमाते हैं।“

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ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि बीजों का बचत किया जाना एक लाभदायक उद्यम है। इस बारे में गोवा स्थित राष्ट्रीय स्तरीय जैविक खेती ऐसोसिएशन के निदेशक क्लाउड अल्वारेस कहते हैं, “अगर देश में अब जैविक खेती पर जोर दिया जा रहा है तो यह सरकार की जिम्मेदारी है, ऐसे बीजों का उत्पादन करने और उन्हें किसानों के बीच वितरित करने की।“

जैविक किसानों के लिए अच्छी खबर

बीते साल जैविक कृषि विश्व कुंभ में सिक्किम के किसानों ने लगाए थे जैविक उत्पाद। फोटो: गाँव कनेक्शन

दूसरी ओर, जैविक किसानों के लिए अच्छी खबर है। राष्ट्रीय बीज निगम (एनएसजी) के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक विनोद कुमार गौर बताते हैं, “हमारा संगठन 2018 खरीफ सीजन से जैविक बीज उत्पादन शुरू करेगा, खासकर उन क्षेत्रों में जहां लंबे समय तक जैविक खेती नहीं की गई है। इसके अलावा एनएससी की भी नए क्षेत्रों को कवर करने की योजना है।“

सौजन्य: Down To Earth

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