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गन्ने की जैविक खेती के रूप में उत्तराखंड के पिथौरागढ़ को मिलेगी नई पहचान

उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के किसानों को गन्ने की जैविक खेती के रूप में एक नई उम्मीद नजर आ रही है, यहां पर न केवल किसानों को उन्नत किस्म के बीज उपलब्ध कराए जा रहे हैं, बल्कि किसानों को खेती का प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है।
#Pithoragarh

उत्तराखंड के उधमसिंह नगर, हरिद्वार, नैनीताल जैसे जिलों में गन्ने की खेती होती है, लेकिन कम लोगों को ही पता होगा कि यहां के पर्वतीय जिले पिथौरागढ़ के कई ब्लॉकों में बरसों से गन्ने की खेती हो रही है। फिर भी इसका नाम गन्ना उत्पादक जिलों में नहीं आता है, लेकिन एक किसान के प्रयास से अब इसका नाम भी गन्ना उत्पादक जिलों में दर्ज हो जाएगा।

पिथौरागढ़ के कई गाँवों में बहुत सालों से जैविक विधि से गन्ने की खेती होती आ रही है, लेकिन सही बाजार न मिलने और खाली होते गाँवों की वजह से गन्ने की खेती का रकबा भी कम होता गया।

नैनीताल जिले के हलद्वानी ब्लॉक के मल्लादेवला गाँव के किसान नरेंद्र मेहरा को जब पिथौरागढ़ में गन्ने की खेती के बारे में पता चला तो उन्होंने गन्ना विभाग की मदद से एक बार फिर यहां पर गन्ने की एक नए सिरे से शुरू करने की कोशिश की है। नरेंद्र मेहरा बताते हैं, “जब मुझे पिथौरागढ़ में हो रही गन्ने की खेती के बारे में पता चला तो मैंने कई किसानों पता करने की कोशिश की यहां पर किसान कैसे खेती कर रहे हैं। तब मैंने गन्ना विकास विभाग के अधिकारियों को गन्ने की खेती के बारे में बताया।”

किसानों को एक उम्मीद जगी है, शायद गन्ने की खेती से पलायन रुक जाए। फोटो: दिवेंद्र सिंह

पिथौरागढ़ जिला भारत के उत्तराखंड राज्य का सबसे पूर्वी हिमालयी जिला है। यह प्राकृतिक रूप से उच्च हिमालयी पहाड़ों, बर्फ से ढकी चोटियों, दर्रों, घाटियों, अल्पाइन घास के मैदानों, जंगलों, झरनों, बारहमासी नदियों, ग्लेशियरों और झरनों से घिरा हुआ है। पिथौरागढ़ जिले में नेपाल और तिब्बत जैसे देशों की अंतर्राष्ट्रीय सीमा भी हैं।

पिथौरागढ़ समुद्र तल से 1645 मीटर की उंचाई पर स्थित है। पिथौरागढ़ का क्षेत्रफल 2,788 वर्ग मील है, पिथौरागढ़ का अधिकांश भाग पहाड़ी और ऊबड़-खाबड़ है। जबकि गन्ने की फसल ऐसी जंगह पर होती है जहां पर लंबे समय तक गर्मी और पर्याप्त धूप आती है, साथ ही इसे बारिश की भी जरुरत होती है। पिथौरागढ़ एक पहाड़ी इलाका है, लेकिन इसके बावजूद भी यहां बरसों से गन्ने की खेती होती आ रही है।

नरेंद्र मेहरा के जानकारी देने के बाद गन्ना एवं चीनी आयुक्त उत्तराखंड हंसा दत्त पांडेय ने इस पर शोध की जिम्मेदारी डॉ रीना नौलिया को दी। डॉ रीना पिथौरागढ़ के किसानों से जानकारी इकट्ठा की। डॉ रीना गाँव कनेक्शन से बताती हैं, “एक समय था जब यहां से तिब्बत गुड़ जाता था, लेकिन हमने वहां पर जाकर देखा कि तो पता चला कि किसान वही पुरानी किस्मों की खेती करते आ रहे हैं। कभी भी कहीं पर दर्ज ही नहीं किया गया वहां पर गन्ने की खेती होती है, किसान जैविक गुड़ बनाते हैं।”

यह प्राकृतिक रूप से उच्च हिमालयी पहाड़ों, बर्फ से ढकी चोटियों, दर्रों, घाटियों, अल्पाइन घास के मैदानों, जंगलों, झरनों, बारहमासी नदियों, ग्लेशियरों और झरनों से घिरा हुआ है। फोटो: दिवेंद्र सिंह

डॉ रीना ने देखा कि वहां पर किसान पुराने परंपरागत तरीके से गन्ने का गुड़ बनाते हैं, वो बताती हैं, “वहां पर एक-डेढ़ किलो की एक भेली बनती है, इतिहास गवाह है कि कितने रियासते गुड़ के लिए बिक गईं, मैं एक गाँव गई तो लोगों ने बताया कि सामने गांव देख रहीं हैं, ये एक भेली गुड़ के लिए बिक गई थी। अभी वहां के किसानों को और जानकारी देने की जरूरत है, इसीलिए उन्हें गन्ने की नई किस्म का बीज भी उपलब्ध कराया जा रहा है।”

किसानों को दिया जा 25 क्विंटल उन्नत किस्म का बीज

गन्ने की खेती को बढ़ावा देने के लिए किसानों को 25 क्विंटल उन्नत किस्म के गन्ने का बीज उपलब्ध कराया गया है। गन्ना विकास मंत्री सौरभ बहुगुणा ने 6 अप्रैल को हरी झंडी दिखाकर गन्ने को रवाना किया।

आयुक्त गन्ना विकास एवं चीनी उद्योग उत्तराखंड, एचडी पांडे, सहायक आयुक्त कपिल मोहन, विषय वस्तु विशेषज्ञ डॉ रीना नौलिया और किसान नरेंद्र सिंह मेहरा ने जैविक गन्ना बीज के वाहन को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। फोटो: अरेंजमेंट

गन्ना एवं चीनी आयुक्त उत्तराखंड हंसा दत्त पांडेय गाँव कनेक्शन से बताते है, “पिथौरागढ़ में किसान नदी घाटी तलहटी में गन्ने की खेती करते आ रहे हैं, वहां हमने वहां टीम भेजकर जानकारी इकट्ठा की है। किसानों को बीज भेजे गए हैं, किसान उत्सुक हैं कि उन्हें नई वैरायटी का गन्ना मिल जाएगा, हम 25 क्विंटल गन्ने का बीज भेज रहे हैं, गन्ना मंत्री सौरभ बहुगुणा ने हरी झंडी दिखा कर इसे रवाना किया।”

किसानों को है बेहतर खेती की उम्मीद

मुंबई में 20 साल तक मैकेनिकल इंजीनियर की नौकरी करने के बाद जय प्रकाश जोशी अब वापस अपने गाँव आकर गन्ने के साथ दूसरी फसलों की खेती करने लगे हैं।

51 वर्षीय जय प्रकाश जोशी उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में कनालीछीना ब्लॉक के मलान गाँव के रहने वाले हैं, उत्तराखंड के तमाम दूसरे लोगों की तरह वो भी बेहतर जिंदगी की तलाश में मुंबई चले गए, लेकिन साल 2014 में गाँव वापस आ गए। जय प्रकाश बताते हैं, “पिछले सात-आठ साल पहले से गन्ने की खेती शुरू की है, मैं 2014 में गाँव , लेकिन हम पुरानी किस्मों की खेती करते आ रहे हैं। खेती करते हुए हमारा परिचय नैनिताल के जैविक किसान नरेंद्र मेहरा से हुआ, फिर डॉ रीना नौलिया को यहां पर भेजा उन्होंने यहां पर जानकारी इकट्ठा की।”

कनालीछीना ब्लॉक के मलान गाँव के किसान जय प्रकाश जोशी। फोटो: अरेंजमेंट

वो आगे कहते हैं, “एक जमाने में यहां पर गन्ने की बहुत खेती होती थी, हमारा गाँव कैलाश मानसरोवर यात्रा का एक पड़ाव रहा है, उस समय जब कैलाश यात्री जाते थे, चीन, तिब्बत से भी यात्री आते थे, वो वहां से नमक लाते थे और बदले में गुड़ ले जाते हैं। लेकिन धीरे-धीरे ये परंपरा खत्म हो गई। लेकिन अब एक बार फिर उम्मीद जगी है कि शायद एक बार फिर खेती को बढ़ावा मिल जाए।”

150 किसानों को दिया जा रहा प्रशिक्षण

गन्ना किसानों को नई तकनीक से गन्ना बुवाई का प्रशिक्षण देने के लिए विशेषज्ञों की एक टीम भी पिथौरागढ़ पहुंची है। विशेषज्ञों की इस टीम में विषय वस्तु विशेषज्ञ डॉ रीना नौलिया, जैविक किसान नरेंद्र मेहरा भी शामिल हैं। यहां के 150 किसानों को ट्रेंच विधि से गन्ने की बुवाई का प्रशिक्षण दिया जाएगा। स्वयं सहायता समूह की महिलाओं की मदद से गन्ने की प्रोसेसिंग की जाएगी। गुड़ बनाने के परंपरागत तरीकों के साथ ही इसमें नींबू, अदरक के साथ ही पहाड़ी मडुए में मिलाकर इसे और बेहतर बनाने की योजना है। 

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