लखनऊ। बारिश धान की फसल के लिए फायदेमंद तो है लेकिन इस बार ज्यादा बारिश धान के लिए काल साबित हूई है। लगातार हुई बारिश से रोगों और कीटों का प्रकोप इतना ज्यादा बढ़ा है कि इस बार धान के उत्पादन पर असर पड़ सकता है।
अपने खेत में धान की फसल काटते हुए सुनीता बताती हैं, “15 बीघा जमीन बटाई पर ली थी, लेकिन पूरे खेत में रोग लग गया है। बालियां पहली काली हुई फिर पीली पीले गुच्छे बन गए। कई बालियों में धान ही नहीं बने। मेरे तीन बीघा खेत में कुछ भी नहीं निकला, इस खेत (जो काट रही थी) में देखो क्या निकलता है। सुना है पूरे इलाके में रोग लगा है।” सुनीता लखनऊ जिले के बक्शी का तालाब तहसील के गाजीपुर गाँव की किसान हैं। ये सिर्फ सुनीता अकेले परेशानी नहीं है, प्रदेश के कई जिलों में धान की फसल बर्बाद हो गई है।
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इस बार हुई लगातार बारिश, दिन में अधिक तापमान और रात में तापमान में कमी रोग और कीटों के लिए बढ़ने सही वातावरण होता है। एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन केंद्र, लखनऊ के विशेषज्ञ राजीव कुमार बताते हैं, “जलभराव से धान की फसल में ये समस्या आ जाती है, इस बार कंडुआ रोग, ब्राउन प्लांट हॉपर व तना छेदक कीटों का प्रकोप बहुत ज्यादा रहा है, इनके प्रकोप से धान के उत्पादन पर भी असर पड़ सकता है।”
कृषि विभाग, उत्तर प्रदेश के अनुसार खरीफ सत्र 2018-19 में प्रदेश में 59.78 लाख हेक्टेयर में धान की रोपाई हुई है। लगातार बारिश और उसके बाद हुए जलभराव के चलते धान की फसल बर्बाद हो गई है। धान में बाली आने के बाद दाना नहीं पड़ने से फसल की लागत भी न निकल पाने के आसार बन गए हैं। कीट के कारण धान की बालियां खाली हो गई हैं।
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पंजाब के रहने वाले कमलजीत पिछले कई वर्षों से लखनऊ के डींगरपुर गाँव में रह रहे हैं, उन्होंने किसी बीकेटी के पास 9 एकड़ जमीन ठेके पर ली है। इसके लिए पूरे साल के उन्हें एक लाख 20 हजार रुपए देने होते हैं। कमलजीत ने कंबाइन से धान की फसल कटवाई है। वो बताते हैं, “ज्यादा से ज्यादा 140-145 कुंतल धान का उत्पादन होगा। जबकि होना चाहिए था 300 कुंतल.. यानि आधा रोग के चक्कर में बर्बाद हो गया। इस बार धान की जमा नहीं निकल पाएगी।”
इन गाजीपुर और डींगरपुर के नजदीकी बीकेटी कस्बा है, यहां के एक दुकानदार ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “इस बार धान में 4-5 गुना ज्यादा दवाएं पड़ी हैं। कई किसान तो पकने तक डालते रहे, लेकिन कंडुआ रोग अगर लग जाए को रोकथाम मुश्किल हो जाती है। उसी चक्कर में उत्पादन पर असर पड़ा है।”
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मौसम विभाग से मिले आंकड़ों के अनुसार प्रदेश के 75 जनपदों में से 17 जनपदों में सामान्य से अधिक बारिश (120 प्रतिशत से अधिक), 30 जनपदों में सामान्य (80 से 120 प्रतिशत के मध्य), 14 जनपदों में कम बारिश, 11 जनपदों में थोड़ा कम बारिश और 03 जनपदों में बहुत (सामान्य वर्षा की 40 प्रतिशत से कम बारिश) हुई है।
सबसे अधिक वर्षा जनपद कन्नौज में हुई जो सामान्य वर्षा (712.7 मिमी.) के सापेक्ष 1260.7 मिमी. हुई जो सामान्य वर्षा का 176.9 प्रतिशत है और सबसे कम वर्षा जनपद कुशीनगर में हुई जो सामान्य की 21.4 प्रतिशत है।
कृषि विभाग उत्तर प्रदेश के फसल सुरक्षा के सहायक निदेशक विनय सिंह बताते हैं, “धान कटने के बाद ही पता चल पाएगा कि कितना नुकसान हुआ है, कई जिलों में कीट और रोग बढ़ने की जानकारी मिली है। अगर दिन का तापमान ज्यादा है और रात में तापमान तेजी से गिरता है तो इनका प्रकोप बढ़ जाता है, यही कारण से इनको बढ़ने का मौका मिला है।”
मथुरा जिले में हुआ सबसे अधिक नुकसान
मथुरा जिले में धान की फसल में कीट लगने से करीब 35,000 एकड़ फसल पूरी तरह से बर्बाद हो गई है। जनपद के कई विकास खण्डों में धान में बाली आने के बाद दाना नहीं पड़ने से फसल की लागत भी न निकल पाने के आसार बन गए हैं।
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चंद्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय, कानपुर के फसल सुरक्षा विशेषज्ञ डॉ. एसके विश्वास ने मथुरा के कई गाँवों में जाकर धान की फसल का सर्वेक्षण किया है। डॉ. एसके विश्वास बताते हैं, “हमने जिले के सैकड़ों गाँव में धान की फसल का सर्वे किया तो पता चला है कि कीटों की वजह से फसल बर्बाद हुई है, हमने पूरी रिपोर्ट कृषि विभाग को भेज दी है, वहीं से नुकसान का पूरा अंदाजा लगाया जा सकता है।
विशेषज्ञों ने जिला प्रशासन और कृषि विभाग को रिपोर्ट में बताया है कि नन्दगांव, बरसाना, कोसीकलां, चैमुहां, छाता जैसे गाँवों में तो 100 प्रतिशत फसल बर्बाद हुई है।