Gaon Connection Logo

गुड़, मट्ठे और गोबर से होगा पराली का प्रबधंन, वैज्ञानिकों ने तैयार किया नया फॉर्मूला

अगर आप भी फसल अवशेष से छुटकारा पाना चाहते हैं तो दो किलो मट्ठा, 500 ग्राम गुड़, दो किलो गोबर, 200 लीटर पानी और वैज्ञानिकों का इजाद नया फॉर्मूला काम आएगा। इससे न केवल फसल अवशेष से छुटकारा मिलेगा, साथ ही खेत की मिट्टी भी उपजाऊ होगी।
#Crop residue

पिछले कुछ वर्षों में किसानों के लिए पराली एक बड़ी समस्या बन गई है, जिससे निपटने के लिए कई राज्यों में किसान पराली जलाते हैं, लेकिन अब किसानों को अब पराली की समस्या से और परेशान नहीं होना होगा, वैज्ञानिकों ने पराली से निपटने का सस्ता और आसान फॉर्मूला बनाया है।

केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान केंद्र के लखनऊ केंद्र के वैज्ञानिकों ने यह फॉर्मूला बनाया है। वैज्ञानिकों के अनुसार हेलो सीआरडी नाम के इस फॉर्मूले से न केवल पराली का आसानी से प्रबंधन हो जाएगा, साथ ही मिट्टी की उर्वरता भी बढ़ेगी।

केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान केंद्र के प्रधान वैज्ञानिक डॉ संजय अरोड़ा इस फार्मूले के बारे में बताते हैं, “किसानों के लिए पराली एक बड़ी समस्या है, हम पिछले कई साल से इसके प्रबंधन पर काम कर रहे थे, कि कोई ऐसा फॉर्मूला बनाए जिससे आसानी से प्रबंधन हो सके।”

हरदोई जिले में धान के फसल अवशेष में हेलो सीआरडी का परीक्षण करते डॉ अरोड़ा। सभी फोटो: अरेंजमेंट

वो आगे कहते हैं, “क्योंकि बहुत जगह की मिट्टी में साल्ट की मात्रा ज्यादा है, यानी वहां पर पीएच की मात्रा ज्यादा रहती है तो वहां पर पराली का प्रबंधन करना और मुश्किल हो जाता है। इसलिए हमने हेलो सीआरडी को बनाया है, जो किसानों की मुश्किल को कम करेगा। इसे इस्तेमाल करने का तरीका भी बहुत आसान होता है।”

हेलो सीआरडी में बैक्टीरिया के मदद से पराली का अपघटन किया जाता है। डॉ अरोड़ा के अनुसार, बैक्टीरिया युक्त हेलो सीआरडी की मदद से पराली जलाने को तो रोका ही जाएगा, साथ ही मिट्टी की उर्वरता और स्वास्थ्य में भी सुधार होगा। इससे अगली फसल को भी फायदा होगा। क्योंकि बैक्टीरिया की मदद से फसल अवशेष को अच्छी तरह से अपघटन हो जाता है, जो फसल वृद्धि में मदद करेंगे।

विभिन्न फसलों की कटाई से बड़ी मात्रा में फसल अवशेष होता है। केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान केंद्र के अनुसार देश में साल में लगभग 600 मीट्रिक टन फसल अवशेष होता है। फसल अवशेषों के उत्पादन में पहले स्थान पर उत्तर प्रदेश और दूसरे स्थान पर पंजाब आता है। 

पिछले कुछ वर्षों में केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान केंद्र ने उत्तर प्रदेश के लखनऊ, रायबरेली, उन्नाव, सीतापुर, हरदोई, सुल्तानपुर, कौशांबी, प्रतापगढ़, आगरा और इटावा जैसे जिलों के कृषि विज्ञान केंद्रों की मदद से वहां के किसानों तक हेलो सीआरडी को पहुंचाया है। इन जिलों में इसका अच्छा रिजल्ट भी मिला है।

इससे पहले आईसीएआर ने पराली प्रबंधन के लिए पूसा डीकम्पोजर किसानों तक पहुंचाया था, ऐसे में हेलो सीआरडी उससे कितना अलग के सवाल पर डॉ अरोड़ा बताते हैं, “पूसा डीकम्पोजर भी अच्छा फार्मूला है, लेकिन जहां की मिट्टी में पीएच की मात्रा ज्यादा होती है, वहां पर ये काम नहीं करता है, जबकि हेलो सीआडी वहां पर भी अच्छे से प्रबंधन करता है और साथ ही मिट्टी को उपजाऊ भी बनाता है।”

ऐसे करते हैं प्रयोग

100 मिली हेलो फार्मूला को 200 लीटर पानी में 500 ग्राम गुड़ और दो किलो अच्छे से सड़ा हुआ गोबर मिला दें। इसके बाद इसे 2 से 3 दिनों तक छाया में रख दें, 2-3 दिनों बाद इसमें दो लीटर मट्ठा भी मिला दें, जितना पुराना मट्ठा होगा, उतना ही बढ़िया काम करेगा। 200 लीटर मिक्सचर एक एकड़ के लिए पर्याप्त होता है। इस मिश्रण की आधी मात्रा को पूरे खेत में छिड़क दें और सात दिन बाद एक बार फिर आधी मात्रा का छिड़काव कर दें। 25-30 दिनों में पराली पूरी तरह से अपघटित हो जाएगी।

यहां मिलेगा हेलो सीआरडी

अगर आप भी हेलो सीआरडी लेना चाहते हैं तो अपने जिले के कृषि विज्ञान केंद्र में संपर्क कर सकते हैं। 100 मिली की एक बोतल का 50 रुपए है।

More Posts

मलेशिया में प्रवासी भारतीय सम्मेलन में किसानों की भागीदारी का क्या मायने हैं?  

प्रवासी भारतीयों के संगठन ‘गोपियो’ (ग्लोबल आर्गेनाइजेशन ऑफ़ पीपल ऑफ़ इंडियन ओरिजिन) के मंच पर जहाँ देश के आर्थिक विकास...

छत्तीसगढ़: बदलने लगी नक्सली इलाकों की तस्वीर, खाली पड़े बीएसएफ कैंप में चलने लगे हैं हॉस्टल और स्कूल

कभी नक्सलवाद के लिए बदनाम छत्तीसगढ़ में इन दिनों आदिवासी बच्चों को बेहतर शिक्षा मिलने लगी है; क्योंकि अब उन्हें...