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परंपरागत कृषि विकास योजना: किसानों को दिया रहा जैविक खेती के साथ कृषि उत्पादों को बाजार पहुंचाने का प्रशिक्षण

परंपरागत कृषि विकास योजना योजना के तहत किसानों को जैविक खेती के लिए प्रोत्साहन दिया जा रहा है, इस योजना में किसानों को बुवाई से लेकर अपने उत्पाद को बाजार में भेजने के सही तरीकों के बारे में प्रशिक्षित किया जा रहा है।
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किसानों को खेती की नई जानकारियों के साथ ही फसल तैयार होने के बाद उत्पाद की ग्रेडिंग, पैकिंग, ब्रांडिंग और मार्केटिंग का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इससे किसानों न केवल अच्छी उपज मिलेगी, बल्कि उनकी उपज का सही दाम भी मिलेगा।

केंद्रीय उपोष्ण भागवानी संस्थान, 10 जैविक किसान उत्पादक समूहों के 211 किसानों को परंपरागत कृषि विकास योजना के तहत प्रशिक्षित कर रहा है। किसानों को जैविक उत्पादन के लिए आवश्यक विभिन्न प्रकार के इनपुट जिसमें वर्मी कंपोस्ट, बायोडायनेमिक और नाडेप खाद बनाने का प्रशिक्षण किसानों के खेत में ही दिया गया किसानों की जमीन का पीजीएस के माध्यम से प्रमाणीकरण कराने का कार्य किया जा रहा है जिससे उन्हें देश के विभिन्न भागों में प्रमाणित जैविक उत्पादों को बेचने में सुविधा मिलेगी। इसके अतिरिक्त किसानों को फसल तैयार होने पर उनके उत्पाद को ग्रेडिंग, पैकिंग, ब्रांडिंग और मार्केटिंग की ट्रेनिंग भी दी जाएगी।

संस्थान के निदेशक डॉ शैलेंद्र राजन बताते हैं, “व्यावसायिक और सफल जैविक उत्पादन के लिए हमें अपनी सोच में परिवर्तन करना पड़ेगा और बागवानी फसलों में जैविक उत्पादन की अपार संभावनाएं हैं। फसल का सही चुनाव और अच्छी मात्रा में उत्पादन करके ही मार्केटिंग में सफलता प्राप्त की जा सकती है। अच्छी मार्केटिंग के द्वारा जैविक उत्पादों से प्राप्त होने वाली आय में जोखिम को कम किया जा सकता है।”

अपने ही खेत में जैविक उत्पादन के लिए आवश्यक सामग्री का उत्पादन करने के लिए 10 जैविक उत्पादन समूहों के लिए ट्रेनिंग प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना की गई है। यह जैविक उत्पादक समूह बाराबंकी, बांदा और हमीरपुर जिलों में चुने गए हैं और वहीं जाकर उन्हें जैविक इनपुट्स को बनाने की ट्रेनिंग दी जाएगी ताकि वे इस कार्य में आत्मनिर्भर बन सकें। इससे उत्पादन की लागत में कमी आएगी और किसानों का मुनाफा भी बढ़ेगा।

इसी श्रृंखला में एक ट्रेनिंग संस्थान के वैज्ञानिकों द्वारा शैली किरतपुर गांव (बाराबंकी) में की गई जहां 21 रजिस्टर्ड फार्मर किसानों को प्रशिक्षण दिया गया। जरूरी जैविक उत्पादन के लिए आवश्यक वस्तुएं जैसे नीम की खली, स्प्रेयर, स्टिकी इंसेक्ट ट्रैप, नीम का तेल, वर्मी कंपोस्ट बेड और केंचुए भी दिए गए।

संस्थान ने एक विशेष प्रकार के जैविक इनपुट सीआईएसएच-बायो-इनहासर का विकास किया है जिसे छोटे और सीमांत किसानों के बीच में वितरित किया गया ताकि वे मिट्टी का स्वास्थ्य सुधार सकें और जैविक उत्पादन में अच्छी उपज प्राप्त हो। एक विशेष प्रकार का फॉर्मूलेशन है जिसमें परंपरागत रूप से इस्तेमाल किए जाने वाले पंचगव्य, वर्मीवाश अमृतवाणी एवं काऊ पेट पिट के लाभकारी बैक्टीरिया का समावेश किया गया है।

किरतपुर गांव में स्थापित किए गए इस ट्रेनिंग सेंटर पर उपलब्ध विभिन्न प्रकार के यन्त्र एवं अन्य सुविधाओं का प्रयोग करके किसान अपने उपयोग के लिए जैविक इनपुट्स का निशुल्क उत्पादन कर सकते हैं। वैज्ञानिकों द्वारा दिए गए मार्गदर्शन से जैविक उत्पादन तकनीकी एवं फसल की कटाई के बाद ग्रेडिंग, ब्रांडिंग और मार्केटिंग में भी सहायता मिलेगी। 

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