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भारतीय वैज्ञानिकों ने खोजी बाजरे की फसल में लगने वाली नई बीमारी, अंतर्राष्ट्रीय संगठन से भी मिली मान्यता

सीसीएस कृषि विश्वविद्यालय, हरियाणा के वैज्ञानिकों ने बाजरा की फसल को नुकसान पहुंचाने वाली नई बीमारी खोजी है, यह बीमारी एक ऐसे बैक्टीरिया के कारण फैलती है जो इंसानों के शरीर में पाया जाता है।
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देश ही नहीं दुनिया के एक बड़े हिस्से में बाजरा की खेती होती है, लेकिन इस फसल में कई तरह की बीमारियों के लगने से किसानों को नुकसान भी उठाना पड़ता है। ऐसे में हरियाणा के वैज्ञानिकों ने बाजरे की फसल में लगने वाली एक बीमारी को खोजा है, जो भारत ही नहीं पूरी दुनिया में पहली बार रिपोर्ट की गई है।

चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार, हरियाणा के वैज्ञानिकों ने इस बीमारी को रिपोर्ट किया है। विश्वविद्यालय के प्लांट पैथोलॉजी डिपार्टमेंट के वैज्ञानिक डॉ विनोद मलिक ने खोजा है। बाजरे में लगने वाली इस बीमारी के बारे में डॉ विनोद गांव कनेक्शन से बताते हैं, “साल 2019 में हरियाणा के हिसार, भिवानी और रेवाड़ी जिले के कई किसानों की फसल में इस बीमारी को देखा गया था, तब से हम लगातार इस बीमारी के बारे में जानकारी इकट्ठा करने में लगे हुए थे, तब पता लगा कि यह तो नई तरह की बीमारी है। इसके बाद पिछले साल कोविड-19 के समय भी कई किसानों ने इसके बारे में हमें रिपोर्ट किया था।”

भारत के राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश और हरियाणा जैसे राज्यों में देश के कुल बाजरा उत्पादन का 90% बाजरे का उत्पादन होता है। सबसे ज्यादा बाजरा की खेती खरीफ के मौसम में ही की जाती है।

बाजरा में लगने वाली यह बीमारी क्लेबसिएला एरोजेन्स (Klebsiella aerogenes)नाम के बैक्टीरिया की वजह से फैलती है, डॉ मलिक बताते हैं, “हमने पौधों का सैंपल लेकर इसकी मॉर्फोलॉजिकल, पैथोजेनिक, बॉयोकेमिल और कई तरह की जांच की तो पता चला कि यह बीमारी तो क्लेबसिएला एरोजेन्स बैक्टीरिया की वजह से फैलती है। जबकि क्लेबसिएला एरोजेन्स बैक्टीरिया इंसानों की आंत में पाया जाता है, हो सकता है कि इंसानों की आंत से यह पौधों में आ गया हो।”

वैज्ञानिकों ने इस बीमारी को स्टेम रोट (Stem Rot) नाम दिया है। स्टेम रोट के लक्षण के बारे में डॉ मलिक ने बताया, “इस बीमारी के प्रकोप में आने के बाद पत्तियों में लंबी-लंबी धारियां बन जाती हैं और धीरे-धीरे पूरे पौधे पर दिखायी देने लगती हैं। इसके बाद तनों पर वाटरलॉग्ड जैसे धब्बे दिखने लगते हैं और बाद तना पहले भूरा उसके बाद काला हो जाता है, हल्की सी भी हवा चलने पर पौधे गिर जाते हैं।”

इस बीमारी की खोज के बाद वैज्ञानिकों ने इसे नेशनल सेंटर फॉर बॉयोटेक्नोलॉजी इंफार्मेशन (NCBI) में भेजा, जहां पर पता चला कि इसे पहले किसी ने नहीं रिपोर्ट किया था वहां से मान्यता मिल गई है। डॉ मलिक बताते हैं, “एनसीबीआई में रिपोर्ट करने के बाद बारी थी कि इसे विश्व स्तर पर रिपोर्ट किया जाए, इसलिए हमने अपनी रिपोर्ट यूएस की सोसाइटी अमेरिकन फाइटोपैथोलॉजिकल सोसाइटी (APS) को भेजा, यहां से पूरी दुनिया में होने वाली बीमारियों को मान्यता मिलती है। वहां से पता चला कि इसे हमने पहली बार रिपोर्ट किया है, उसके बाद इस रिपोर्ट को एपीएस के एपीएस पब्लिकेशन में भी प्रकाशित किया गया है।”

विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. बीआर कम्बोज ने वैज्ञानिकों की इस खोज के लिए बधाई देते हुए भविष्य में इसके उचित प्रबंधन के लिए भी इसी प्रकार निरंतर प्रयासरत रहने की अपील की है। डॉ. बीआर कम्बोज ने कहा, “कोरोना महामारी के बाद बीमारियों की सही व शीघ्र पहचान तथा उसके वास्तविक कारण का पता लगाना अधिक महत्वपूर्ण हो गया है। रोग की शीघ्र पहचान योजनाबद्ध प्रजनन कार्यक्रम विकसित करने और रोग प्रबंधन में सहायक होगी।

बाजरे में लगने वाली इस बीमारी का क्या अभी कोई इलाज है, इस बारे में डॉ मलिक कहते हैं, “अभी हमने इस बीमारी के बारे में पता लगाया है, आने वाले समय में इसके इलाज को भी ढूंढ लिया जाएगा, अभी इस पर काम चला है।” वैज्ञानिकों ने इस रोग इलाज पर काम शुरू कर दिया है, जल्द से जल्द इसके जेनेटिक स्तर पर प्रतिरोध स्रोत को खोजने की कोशिश करेंगे। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि वे जल्द ही इस दिशा में भी कामयाब होंगे।

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