इत्र नगरी के तरबूज की मांग अन्य जिलों में भी

Ajay MishraAjay Mishra   10 May 2017 7:39 PM GMT

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इत्र नगरी के तरबूज की मांग अन्य जिलों में भीइत्रनगरी के नाम से मशहूर जिले में तरबूज की भी खूब पैदावार होती है।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

कन्नौज। इत्रनगरी के नाम से मशहूर जिले में तरबूज की भी खूब पैदावार होती है। इसकी मिठास सूबे के कई जनपदों में फैल रही है। हर रोज सैकड़ों ट्रैक्टर-ट्राली भरकर तरबूज बाहर जाता है।

कन्नौज जिले के कटरी और गंगा नदी क्षेत्र में तरबूज की पैदावार हर साल होती है। जिला मुख्यालय से करीब आठ किमी दूर बसे मेहंदीघाट निवासी 38 वर्ष रामचंद्र बताते हैं, ‘‘बहराइच, गोरखपुर, झांसी, ललितपुर, नानपारा और गोंडा आदि क्षेत्रों से तरबूज खरीदने के लिए लोग आते हैं। कार्तिक में बुवाई होती है और चैत्र में फल तैयार हो जाता है।’’

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सरायमीरा निवासी धारम सिंह (55 वर्ष) कहते हैं, ‘‘मैं पिकप से तरबूज कानपुर समेत अन्य जिलों में ले जाता हूं। कन्नौज शहर में तरबूज की तीन मंडियां हैं। एक मंडी में फलों से भरी करीब एक सैकड़ा ट्रैक्टर-ट्राली हर रोज आती है।”

फिरोजबाद के रहने वाले व्यापारी अनोखेलाल (45वर्ष) ने बताया, ‘‘मेरे यहां देर से तरबूज होता है। इसलिए यहां खरीदने आए हैं। आठ-दस दिन बाद तरबूज तैयार हो जाएगा।” सहजापुर गांव निवासी कासिम (16वर्ष) का कहना है, ‘‘एक ट्राली में 400-450 तरबूज आता है। झांसी और मौरानेपुर के लिए अभी लोग खरीदकर ले गए हैं।”

मंडी में कम रेट से शुरू होती है बोली

मंडी में तरबूज की बोली कम रेट से शुरू होती है। इसके बाद बढ़ती जाती है। इस समय भरी हुई ट्रैक्टर-ट्राली चार हजार से सात हजार तक बिक्री होती है। उसमें 400-450 फल होते हैं। किसान रामदीन (45 वर्ष) कहते हैं, ‘‘तरबूज बिक्री करने वाले और खरीदने वाले को 300-300 रुपए वहां मौजूद लोगों को देने पड़ते हैं। यह मौजूद लोग जमीन पर वाहन खड़ा करने का किराया और बिक्री और खरीदवाने में सहयोग करते हैं। बाद में 100 रुपए टैक्टर चालक को दे दिया जाता है।”

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तड़के आने लगती गाड़ियां

किसान तरबूज से भरे वाहन मंडी में तड़के ही ले आते हैं। बाद में खरीदारी करीब 10-11 बजे तक होती है। कोई-कोई किसान तो रात दो बजे से ही ट्राली लेकर इसलिए पहुंच जाता है कि भीड़ होने की वजह से जगह नहीं मिल पाती है।

इस बार कम हुआ उत्पादन

किसान रामचंद्र (38) का कहना है कि ‘‘इस बार तरबूज का उत्पादन कम हुआ है। उनके यहां ठडिया रोग भी लग गया है। पानी लगाते समय फल टूटकर गिर गया या फिर सूख गया। इस बार पांच बीघा खेत में दो ट्राली फल निकला। पहले तीन ट्राली निकला था।’’

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