पेरी अर्बन एग्रीकल्चर : शहर के पास वाले किसानों की आमदनी बढ़ाने पर ज़ोर

Anusha MishraAnusha Mishra   4 Jun 2018 8:02 AM GMT

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पेरी अर्बन एग्रीकल्चर : शहर के पास वाले किसानों की आमदनी बढ़ाने पर ज़ोरसरकार दे रही है उप शहरी कृषि पर ज़ोर

आपने अक्सर देखा होगा, शहरों के कुछ इलाकों, खासकर बाहरी इलाकों में बड़े पैमाने पर खेती होती है। यहां अक्सर सब्जियां और फल उगाए जाते हैं, जिनकी खेती करने वाले किसान पैसा भी कमाते हैं, क्योंकि वहां बाजार नजदीक होता है। इसे पेरी अर्बन एग्रीकल्चर कहते हैं।

आप ने देखा होगा दिल्ली के यमुना से सटे इलाकों, यूपी में लोनी की तरफ और दूसरी तरफ पंजाब-हरियाणा के बार्डर से सटे इलाकों में बड़े पैमाने पर खेती होती है, यहां सबसे ज्यादा सब्जियां उगाई जाती हैं, क्योंकि मार्केट नजदीक है, सामान हाथ का हाथ बिक जाता है। इन किसानों को मुनाफा इसलिए भी अच्छा होता है कि इनकी ट्रांसपोर्टेशन की लागत कम होती है और शहर के लोगों को भी ताजे उत्पाद मिल जाते हैं।

शहर से सटे ग्रामीण इलाकों में होने वाली इस खेती को पेरी अर्बन एग्रीकल्चर कहते हैं, लगभग हर बड़े शहर में के आसपास ऐसे इलाके होते हैं, जिनसे हजारों लोगों को रोजी-रोटी मिलती है। अमेरिका में बहुत पहले ही इसे बढ़ावा देकर संगठित बाजार का जरिया बनाया जा चुका है, अब भारत में सरकार ऐसे जमीनों पर खेती को और बढ़ावा देना चाहती है, ताकि शहर की मांग पूरी हो और किसानों को भी आमदनी का जरिया मिले।

पेरी अर्बन एग्रीकल्चर पर गुरुग्राम में 29 और 30 नवंबर को दो दिवसीय सेमिनार का आयोजन किया जा रहा है। केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह भी इस आयोजन में शिरकत की।

यूं तो पेरी अर्बन एग्रीकल्चर को किसी एक शब्द में परिभाषित नहीं किया जा सकता लेकिन शहर के बाहरी इलाके को पेरी अर्बन कहा जाता है। शहर और गाँव के बीच की दूरी को कम करने के लिए ही इस क्षेत्र को प्राथमिकता दी गई।

शहरी और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में काफी फर्क होता है लेकिन पेरी अर्बन इलाके की अर्थव्यवस्था कुछ शहरी और कुछ ग्रामीण दोनों तरह की होती है। हालांकि कई बार ऐसा भी मुद्दा उठाया जाता रहा है कि पेरी अर्बन का क्षेत्र बढ़ने से कहीं न कहीं गाँव अपना वजूद खो रहे हैं लेकिन फिर भी ज़्यादातर लोगों का मत यही है कि इसे शहर और ग्रामीण क्षेत्र के बीच की इकाई मानना चाहिए। खैर मुद्दा ये है कि इस क्षेत्र में कृषि की काफी संभावनाएं हैं लेकिन लोगों का ध्यान इस तरफ नहीं जा रहा।

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हमारे देश में अभी भी पेरी अर्बन इलाकों में खेती को लेकर किसानों में इतनी समझ नहीं है कि वो इस क्षेत्र में किस तरह की खेती करके ज़्यादा मुनाफ कमा सकते हैं लेकिन संयुक्त राष्ट्र ने आज से 20 साल पहले ही इस खेती में भविष्य को संभावनाओं को समझ लिया था।

सस्टेनेबल ग्रोथ और इक्विटी पर न्यूयॉर्क शहर में 1997 में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के अंतर्गत हुए दूसरे अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में उप शहरी कृषि को बढ़ाने, इस क्षेत्र की समस्याओं और संभावनाओं के बारे में विस्तार से चर्चा की गई थी। इस बैठक में ये बात सामने आई कि उप शहरी क्षेत्र को दो भागों में बांटा जा सकता है। पहला, शहर के बीच के ऐसे क्षेत्र जो खाली हैं, जहां किसी तरह का कोई निर्माण नहीं हुआ और दूसरा, शहर का बाहरी इलाका, जहां कृषि योग्य भूमि है। सम्मेलन में इस बात की ज़रूरत भी महसूस की गई कि लोगों का ध्यान इस ओर आकर्षित करने की ज़रूरत है ताकि वो यहां खाद्य उत्पादन कर सकें।

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ब्रैसिलिया के गवर्नर बैवर ने बैठक में आज से 20 साल पहले ये कहा था कि किसानों उप शहरी क्षेत्र में खाद्य उत्पादन करने वाले किसानों को बिचौलियों के बंधन से आसानी से मुक्ति मिल सकती है। वे अपने उत्पादों को सीधा बाज़ार या सुपर मार्केट में बेच सकते हैं।

भारत में भी हैं काफी संभावनाएं

2011 की जनगणना के अनुसार भारत की कुल आबादी में से 31 प्रतिशत आबादी शहरी क्षेत्र में रहती है। कृषि विज्ञान केंद्र, सीतापुर में कृषि वैज्ञानिक डॉ. दया श्रीवास्तव बताते हैं कि उप शहरी क्षेत्रों में खेती करने वाले किसानों के लिए स्थानीय बाज़ार तक माल पहुंचाना काफी आसान होता है। इसके साथ उनके पास ये विकल्प भी रहता है कि वे अपना माल किसी संगठन के ज़रिए सीधा उपभोक्ता तक पहुंचा सकें। गाँव में खेती करने वाले किसानों के लिए शहर तक जाकर अपना माल बेचना आसान नहीं होता लेकिन शहरी क्षेत्र से जुड़े किसानों को ये लाभ मिलता है और इसके उन्हें लाभ उठाना चाहिए।

वह कहते हैं कि शहरी आबादी धीरे - धीरे अपने खान - पान को लेकर जागरूक हो रही है। वो ये समझ रही है कि किसान आजकल फसलों में कितने रसायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का इस्तेमाल कर रहे हैं। ऐसे में अब जैविक तरीके से उगाई जाने वाली फसलों को अपने खान - पान में शामिल कर रहे हैं। ऐसे में शहरी क्षेत्रों में किसान जैविक सब्जियों का उत्पादन करके अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।

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विज्ञान नीति अनुसंधान इकाई, ससेक्स विश्वविद्यालय में पर्यावरण और विकास की प्रोफेसर फियोना मार्शल और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू), नई दिल्ली के वरिष्ठ शोधकर्ता प्रीतपाल रंधवा ने भारत की उप-शहरी सीमा: ग्रामीण-शहरी परिवर्तन और खाद्य सुरक्षा पर मार्च 2017 में एक रिसर्च पेपर ज़ारी किया - इसमें उन्होंने लिखा कि भारत में, उप शहरी क्षेत्रों को अक्सर उपेक्षित किया जाता है। बहुत से लोग गरीबी में रहते हैं और इन्हें अच्छा खाना भी नहीं मिलता। ऐसे में उप शहरी कृषि गरीबी उन्मूलन और खाद्य सुरक्षा के लिए एक प्रमुख योगदानकर्ता हो सकती है। उन्होंने लिखा है, ''स्वास्थ्य और पोषण में सुधार करने के लिए, अधिक समग्र खाद्य सुरक्षा की आवश्यकता होती है। इसके लिए उप शहरी क्षेत्रों में कृषि को बढ़ावा देकर इस समस्या से निपटा जा सकता है।''

शहरों में निर्माण बढ़ने के साथ बढ़ती है खाद्य आधारित मांग डॉ. दया श्रीवास्तव बताते हैं कि जैसे - जैसे शहर के आस -पास के इलाकों में निर्माण बढ़ता जाता है वैसे - वैसे उन क्षेत्रों में खाद्य उत्पादों की मांग भी बढ़ती है ऐसे में ज़रूरी है किसानों के लिए उपभोक्ता मांग को समझना ज़रूरी है। वह कहते हैं कि किसी भी कृषि प्रधान देश के लिए ये ज़रूरी है कि वहां ग्रामीण आबादी के साथ - साथ शहरी आबादी भी खेती में सक्रियता से जुड़े। इसके लिए उप शहरी कृषि एक बेहतर विकल्प है।

उप शहरी क्षेत्रों में ये खेती करना फायदेमंद वेबसाइट सिडनी फूड फ्यूचर के मुताबिक उप शहरी क्षेत्रों में सब्जियों की, पशुपालन, दुग्ध उत्पादन, मुर्गी पालन, मछली पालन करना फायदेमंद रहता है। कई ऐसे खाद्य उत्पाद होते हैं जिन्हें दूर गाँव से शहर तक लाना काफी मुश्किल होता है। धनिया, अंडा जैसे उत्पाद गाँव से शहर तक लाने में ख़राब हो सकते हैं। ऐसे में उप शहरी क्षेत्रों में इनका उत्पादन करके इन्हें आसानी से उपभोक्ताओं को उपलब्ध कराया जा सकता है।

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