उत्तर प्रदेश के लखनऊ, उन्नाव, बाराबंकी, सीतापुर जैसे जिलों में आम का उत्पादन होता है। उन्नाव जिले के हसनगंज ब्लॉक के पमेधिया गाँव के सौरभ अवस्थी के बाग में भी अच्छे बौर आए थे। कीटों से बचाव के लिए कीटनाशकों का छिड़काव भी किया, लेकिन कोई असर नहीं हुआ। सौरभ बताते हैं, “इस बार अच्छे बौर आए थे, लगा था कि अच्छी कमाई हो जाएगी, लेकिन बाग में रूजी (थ्रिप्स) कीट लग गए। इससे बचाव के लिए कई बार धुलाई भी की, लेकिन कोई असर नहीं हुआ।”
वो आगे कहते हैं, “बौर आने के बाद फल भी लगे, लेकिन रूजी और दूसरे कीटों की वजह से पूरे फल गिर गए हैं, अब पेड़ों पर बहुत कम फल बचे हैं। यहां पर किसान लगातार धुलाई कर रहे हैं, जिससे जो आम अभी लगे हैं, वो बच जाएं।” सौरभ लगभग 50 बीघा (12 हेक्टेयर) में आम की खेती करते हैं।
यूपी में दशहरी, चौसा, लंगड़ा, फाजली, मल्लिका, गुलाब खस और आम्रपाली जैसे आम की किस्मों की खेती की जाती है। देश में आम का सबसे बड़ा बाजार उत्तर प्रदेश है। संयुक्त अरब अमीरात, ब्रिटेन, सऊदी अरब, कतर, कुवैत और अमेरिका में भारतीय आम की विभिन्न किस्में निर्यात की जाती है।
केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के अनुसार इस समय उत्तर प्रदेश के मुख्य आम उत्पादक क्षेत्रों में भुनगा, थ्रिप्स (रूजी) और सेमीलूपर के प्रकोप के कारण आम की फसल पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। भुनगा के वयस्क और बच्चों के आक्रमण के कारण आम के फूल और छोटे-छोटे फल गिर जा रहे हैं। इसका मुख्य कारण इनके द्वारा रस चूसना है। भुनगा के कारण लासी का उत्पादन एक आम बात है और यह चिपचिपा पदार्थ पत्तियों और अन्य भागों में कालापन आने का प्रमुख कारण है।
आम की थ्रिप्स जिसे किसान रुजी भी कहते हैं, नए पत्तों और बौर निकलने के साथ ही आक्रमण शुरू कर देती है। इसकी अवयस्क और वयस्क दोनों ही अवस्थाएं आम की फसल को नुकसान पहुंचाती हैं। इसके कारण पत्तियां मुड़ने लगती हैं और फलों पर सिल्वर या भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। इन धब्बों का मुख्य कारण रूजी के द्वारा रस चूसने के बाद कोशिकाओं का मरना है। ज्यादा प्रकोप होने पर यह कीट नई निकल रही वृद्धि को पूरी तरह से खत्म कर देते हैं। सेमीलूपर नई वृद्धि और छोटे फलों को प्रभावित करते हैं। इसके कारण नई वृद्धि और फल दोनों ही प्रभावित होते हैं।
संस्थान के वैज्ञानिकों ने कई वर्षों के अध्ययन में यह पाया की जहां पर एक बड़े क्षेत्रफल में आम की खेती (90 प्रतिशत से अधिक) होती है, वहां पर एक बाग में कीट का नियंत्रण दूसरे बाग से कीटों के आ जाने के कारण बेकार हो जाता है।
ऐसे क्षेत्र जहां लगभग 10 प्रतिशत क्षेत्र में आम के बाग हैं, वहां पर कीटों से समस्या का सामना नहीं करना पड़ रहा है। उत्तर प्रदेश के लखनऊ जिले के मलिहाबाद के मुकाबले बाराबंकी में कीट नियंत्रण आसान है।
केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के निदेशक डॉ. शैलेंद्र राजन कहते हैं, “जहां पर आम के ज्यादा बाग हैं, वहां पर एक किसान कीटनाशकों का छिड़काव करता है, तो दूसरे बाग से दोबारा कीट आ जाते हैं, जबकि जहां पर आम के बाग कम हैं, वहां पर कीटों का प्रबंधन करना आसान होता है।”
कीटों से नियंत्रण के बारे में वो बताते हैं, “थ्रिप्स (रूजी) के नियंत्रण के लिए कीटनाशक थियामेथोक्साम 25 प्रतिशत डब्ल्यूजी (0.3 ग्राम/लीटर) के साथ छिड़काव करें। भुनगा के नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत एसएल (0.3 मिली./लीटर) के साथ छिड़काव करें। जबकि जहां पर सेमीलूपर का प्रकोप हो वहां पर लैम्ब्डा-सायलोथ्रिन 5 ईसी (1 मिली./लीटर) का छिड़काव करें।”
मिज कीट के कारण फलों पर छोटे से काले धब्बे बन जाते हैं, जिससे फलों में बारीक छेद हो जाते हैं। इसका प्रबंधन क्विनाल्फोस 25 ईसी 2 मिली या डाईमेथोएट 30 ई सी के 2 मिली प्रति लीटर के छिड़काव से किया जा सकता है।
छोटे फलों को झड़ने से बचाने के लिए प्लानोफिक्स 4.5 % के 0.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी का भी छिड़काव कर सकते हैं। फलों की अच्छी वृद्धि के लिए एन पी के 19-19-19 के 5 ग्राम और सूक्ष्म पोषक तत्व मिश्रण के 5 ग्राम प्रति लीटर का छिड़काव भी कर सकते हैं। ध्यान रखें कि कीट और रोग नाशी के साथ उर्वरक न मिलाएं। जिन किसानों ने परागण कीटों को बढ़ावा देने के लिए और थ्रिप्स कीट को मिट्टी से निकलने से रोकने के लिए अभी तक जुताई नहीं की है, वह 15 अप्रैल के बाद अगर जरूरी समझें तो खरपतवार नियंत्रण के लिए जुताई कर सकते हैं।