पहाड़ों पर सहफसली खेती खेती से कमा रहे दोगुना मुनाफा

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पहाड़ों पर सहफसली खेती खेती से कमा रहे दोगुना मुनाफाgaonconnection

मोटाहल्दू, (नैनीताल)। उत्तराखण्ड में किसान पॉली हाउस में सह फसली खेती का लाभ उठा रहे हैं। किसान यहां पॉलीहाउस में टमाटर के साथ धनिया,पालक की फसल उगाकर दोहरा मुनाफा कमा रहे हैं।

उत्तराखण्ड के नैनीताल जिले के मोटा हल्दू गाँव के किसान रवीन्द्र शर्मा इन दिनों टमाटर की फसल के साथ अपने पॉलीहाउस में धनिया की पैदावार कर रहे हैं। रवीन्द्र बताते हैं, “पॉलीहाउस के अंदर टमाटर की खेती अच्छे उत्पादन का सफल नुस्खा है, क्योंकि इसकी दिवारों पर पॉलीथीन और जालियों की वजह से फसल में कीट नहीं आ पाते हैं और दवाइयों का भी कम इस्तेमाल होता है।’’

“पॉलीहाउस में उगाया गया टमाटर बाहर खेतों में उगाए गए टमाटर की तुलना में ज्य़ादा मोटा और अधिक दिनों तक चलता है। यह बड़े आराम से दो से ढाई दिन तक टिक जाता है।’’ रवीन्द्र बताते हैं। 

पॉली हाउस के माध्यम से पहाड़ी इलाकों में सहफसली खेत कर किसान अच्छा उत्पादन ले सकते हैं। रवीन्द्र बताते हैं, “पॉलीहाउस में खीरे और टमाटर की फसल बेल की तरह लगाई जाती है, जिसे ऊपर की ओर चढ़ाया जाता है। ऐसे में ज़्यादातर फल ऊपरी सतह पर रहते हैं, इसलिए नीचे की ज़मीन खाली होने से इस पर बड़े आराम से धनिया, पालक जैसी सब्जियों की सहफसली कर सकते हैं।’’

पॉली हाउस में सब्जियों की खेती से जहां यहां के स्थानीय किसानों को पहले के मुकाबले अच्छी पैदावार मिल रही है वहीं इस आधुनिक तरीके से बाज़ार में सब्जियों का दाम बाकी फसलों से दुगना मिल रहा है। 

पॉलीहाउस लगवाने के बाद मिले अच्छे मुनाफे के बारे में रवीन्द्र बताते हैं, “खेत में उगाए गए टमाटर की तुलना में पॉलीहाउस में उगाए गए टमाटर का भाव अच्छा मिलता है। पहले हमारा टमाटर मंडी में 10 रुपए किलो के रेट से बिकता था वहीं अब पॉली हाउस में उगाया गया टमाटर 15 से 17 रुपए प्रति किलो में बिकता है।’’

पॉलीहाउस विधि से पहाड़ों पर सहफसली खेती कम जोत के किसानों के लिए न सिर्फ मौसमी सब्जियां उगाने में मददगार है बल्कि फल, फूलों के उत्पादन के लिए भी यह तरीका उपयोगी साबित हो रहा है।

रवीन्द्र शर्मा को उत्तराखण्ड सरकार ने पॉलीहाउस लगाने के लिए 40 फीसदी की आर्थिक सहायता दी। पॉलीहाउस लगवाने का पूरा खर्च 10 लाख रुपए था, जिस पर नेश्ानल हॉर्टीकल्चर बोर्ड की तरफ से 20 फीसदी और स्टेट हॉर्टीकल्चर बोर्ड की तरफ से 20 प्रतिशत का अनुदान मिला। 

इसके अलावा बारिश के पानी का भंडारण कर नई तकनीक को इजाद करके रवीन्द्र ने ड्रिप विधि से टमाटर व धनिया की पौध में सिंचाई कर पानी की खपत को भी कम किया है, जिससे लागत घटी है।

 

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